गुरुवार, 29 जून 2017

हिंदू उत्पीड़न पर जागे मानवाधिकार

 पाकिस्तान,  बांग्लादेश और मलेशिया में रह रहे हिंदुओं पर आई रिपोर्ट बताती है कि कैसे दुनिया के कई हिस्सों में हिंदुओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जा रहा है। उन्हें सामाजिक, आर्थिक और मानसिक उत्पीडऩ का सामना करना पड़ रहा है। खासकर, पाकिस्तान और बांग्लादेश से हिंदू उत्पीडऩ की घटनाएं अधिक सामने आती हैं। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं कि इन देशों के कट्टरपंथियों की नजर में हिंदुओं को जीने का अधिकार भी नहीं है। यहाँ हिंदू आबादी में लगातार गिरावट दर्ज की जा रही है। हिंदुओं की हत्या और उनका धर्मांतरण यहाँ के कट्टरपंथी मुस्लिमों के लिए एक तरह से नेकी का काम है। पाकिस्तान और बांग्लादेश में सिलसिलेवार ढंग से हिंदुओं की हत्या की जाती रही है। नाबालिग लड़कियों का अपहरण करके उनसे जबरन निकाह किया जाता है। हिंदुओं को बरगला कर और दबाव डाल कर उनका धर्मांतरण किया जाता है। अभी कुछ दिन पहले ही पाकिस्तान के थार जिले में एक नाबालिग हिंदू लड़की का कथित तौर पर अपहरण करके उसका धर्मांतरण करा दिया गया। यह प्रमाणित सच है। पाकिस्तान और बांग्लादेश की जनसंख्या के आंकड़े भी इसकी गवाही देते हैं कि वहाँ देश के बँटवारे के बाद से ही हिंदुओं को नारकीय परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है।

शनिवार, 24 जून 2017

पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने वाले लोग कौन हैं?

 आईसीसी  चैंपियंस ट्रॉफी में भारत पर पाकिस्तान की जीत के बाद जम्मू-कश्मीर में ही नहीं, बल्कि देश के अनेक हिस्सों में जश्न मनाया गया, पाकिस्तानी झंडे फहराए गए और पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे बुलंद किए गए।  पाकिस्तान की जीत पर आतिशबाजी भी की गई। भारत की हार पर पटाखों का यह शोर और पाकिस्तान की जय-जयकार किस बात का प्रकटीकरण है? आखिर भारत में कोई पाकिस्तान से इतनी मोहब्बत कैसे कर सकता है कि उसका विजयोत्सव मनाए? पाकिस्तान परस्त चंद लोगों की यह प्रवृत्ति एक पूरे समुदाय की निष्ठा और देशभक्ति पर प्रश्न चिह्न खड़ा करती है। दुनिया का कोई हिस्सा ऐसा नहीं होगा, जहाँ अपने देश की पराजय पर हर्ष व्यक्त किया जाता हो। भारत में पाकिस्तान परस्ती मानसिकता को परास्त करने की आवश्यकता है। पाकिस्तान की जय-जयकार करने वाले देशद्रोहियों को उनकी सही जगह दिखाने की आवश्यकता है। सुखद बात है कि पाकिस्तान की जीत पर जश्न मनाने वालों को पकड़कर जेल की हवा खिलाई जा रही है। सबसे पहले मध्यप्रदेश के बुरहानपुर जिले के मोहद गाँव से 15 युवकों को पकड़ा गया, जो पाकिस्तान की जीत के बाद उन्माद फैला रहे थे। देश में अन्य जगहों पर भी धरपकड़ जारी है। कर्नाटक के कोडागू जिले से तीन लोगों को पकड़ा गया है। उत्तराखंड के मसूरी में भी पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाने वाले तीन किशोरों को पकड़ा गया है। पाकिस्तान परस्त मानसिकता को हतोत्साहित करने के लिए इस प्रकार की कार्रवाई स्वागत योग्य है। यकीनन समाजकंटकों में कानून का डर होना चाहिए। देशविरोधियों को ऐसा सबक सिखाया जाना चाहिए कि देश को पीड़ा पहुँचाने की हरकत करने से पहले वह दस बार सोचें। दरअसल, इस प्रकार की प्रवृत्ति का दमन इसलिए भी आवश्यक है ताकि दो समुदायों के बीच बढ़ रही खाई की चौड़ाई को रोका जा सके।

बुधवार, 21 जून 2017

रामनाथ कोविंद : कम्युनिस्टों के दलित प्रेम का पर्दाफाश

 बिहार  के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम को सामने कर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की जोड़ी ने एकबार फिर से सबको चौंका दिया है। सबके कयास धरे रह गए। भाजपा संसदीय बोर्ड की बैठक के पहले रामनाथ कोविंद का नाम किसी तरह की चर्चा में भी नहीं था। लेकिन, जब भाजपा की ओर से राष्ट्रपति पद के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद के नाम की घोषणा की गई, तब विपक्ष मुश्किल में पड़ गया। अपने फैसले से सबको चौंकाने वाली मोदी-शाह की जोड़ी ने एक बार फिर से इस मुद्दे पर विरोधियों के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी हैं। इस दांव से सब हैरान हैं, शायद इस पर भाजपा विरोधियों को विरोध करना इतना आसान नहीं होगा। हालाँकि, समाज को बाँटने वाली विचारधारा के 'झूठ बनाने के कारखाने' में काम शुरू हो चुका है। दलित उत्थान का नारा लगाने वाले यह समूह अब इस बात के लिए पीड़ा जाहिर कर रहे हैं कि राष्ट्रपति पद के लिए 'योग्यता' को वरीयता न देकर 'जाति' को प्राथमिकता देना उचित नहीं।

शनिवार, 10 जून 2017

शांति और संवाद की राह पर लौटें किसान

थाना जलाने के लिए उकसाती कांग्रेस विधायक
 मध्यप्रदेश  में किसान आंदोलन ने जिस तरह हिंसक एवं अराजक रूप धारण कर लिया है, उससे यह स्पष्ट होता है कि उसे भड़काया जा रहा है। पिछले दो दिन में इस प्रकार के वीडियो भी सामने आए हैं, जिनमें स्पष्ट दिखाई देता है कि कुछ लोग और नेता अपनी राजनीतिक रोटियाँ सेंकने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर उन लोगों की टिप्पणियाँ भी साझा की गई हैं, जिन्होंने किसानों के पीछे खड़े होकर शांतिपूर्ण आंदोलन को भड़काया। सरकार द्वारा किसानों की माँग मान लेने के बाद जो आंदोलन शांतिपूर्ण ढंग से समाप्त हो जाना चाहिए था, उसके अचानक उग्र होने के पीछे राजनीतिक ताकतें नहीं हैं, यह नहीं माना जा सकता। आग पर पानी डालने की जगह नेताओं द्वारा आग को हवा दी जा रही है। आज जिन नेताओं को किसानों के हित याद आ रहें, वह नेता उस दिन कहाँ थे, जब किसानों को उनकी सबसे अधिक जरूरत थी। तब न तो सरकार के विधायक मंत्री किसानों से मिलने आए थे और न ही मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेता आंदोलन की अगुवाई करने खड़े हुए थे। लेकिन, अब कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गाँधी प्रशासन के मना करने के बाद भी तिकड़म भिड़ा कर वहाँ पहुँच गए। किसानों के बीच आकर किया भी तो क्या? क्या राहुल गाँधी ने किसानों से अंहिसा की राह चुनने की अपील की?

शुक्रवार, 9 जून 2017

कम्युनिस्टों का एजेंडा, सेना को करो बदनाम

 भारतीय  सेना सदैव से कम्युनिस्टों के निशाने पर रही है। सेना का अपमान करना और उसकी छवि खराब करना, इनका एक प्रमुख एजेंडा है। यह पहली बार नहीं है, जब एक कम्युनिस्ट लेखक ने भारतीय सेना के विरुद्ध लेख लिखा हो। पश्चिम बंगाल के कम्युनिस्ट लेखक पार्थ चटर्जी ने सेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत की तुलना हत्यारे अंग्रेस जनरल डायर से करके सिर्फ सेना का ही अपमान नहीं किया है, बल्कि अपनी संकीर्ण और बीमार सोच का भी परिचय दिया है। तथाकथित समाजविज्ञानी और इतिहासकार चटर्जी ने एक बार पुन: यह सिद्ध किया है कि कम्युनिस्टों के मन में सेना के प्रति कितना द्वेष भरा है। इतिहास गवाह है कि कम्युनिस्टों ने हमेशा सेना का अपमान करने का ही प्रयास किया है। कम्युनिस्ट कभी सेना को बलात्कारी सिद्ध करने के लिए बाकायदा शोध पत्र पढ़ते हैं, तो कभी सैनिकों की मौत पर जश्न मनाते हैं। कम्युनिस्ट सैनिकों को वेतन लेने वाले आम कर्मचारी से अधिक नहीं मानते हैं। सैनिकों की निष्ठा और देश के प्रति उनके समर्पण को पगार से तौलने का प्रयास वामपंथी विचारक ही कर सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि जम्मू-कश्मीर में सेना को बदनाम करने का षड्यंत्र या तो पाकिस्तान रचता है या फिर पाकिस्तान परस्त लोग। सेना पर लांछन लगाकर कम्युनिस्ट भी पाकिस्तान की लाइन पर आगे बढ़ते रहे हैं। वह कौन-सा अवसर है जब कम्युनिस्टों ने जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना को 'विलेन' की तरह प्रस्तुत करने की कोशिशें नहीं की हैं? जबकि भारतीय सेना जम्मू-कश्मीर में अदम्य साहस और संयम का परिचय देती है। जम्मू-कश्मीर के लोगों का भरोसा जीतने के लिए उनके बीच रचनात्मक कार्य भी करती है। जब भी प्राकृतिक आपदा आती है, तब यही सेना जम्मू-कश्मीर के लोगों के आगे ढाल बनकर खड़ी हो जाती है। जम्मू-कश्मीर और समूचे देश की सुरक्षा के लिए अपनी जान दाँव पर लगाने वाली सेना और सेना प्रमुख की तुलना जनरल डायर से करना कहाँ तक उचित है? क्या यह सरासर सेना का अपमान नहीं है?

बुधवार, 7 जून 2017

दु:खद है किसानों की मौत

 मध्यप्रदेश  में दो जून से किसान आंदोलन प्रारंभ हुआ था। किसी ने नहीं सोचा था कि शांतिपूर्ण ढंग से प्रारंभ हुआ यह आंदोलन इतना उग्र हो जाएगा कि छह किसानों का जीवन छीन लेगा। कर्जमाफी और अपनी फसल के वाजिब दाम की माँग को लेकर मध्यप्रदेश के मंदसौर, रतलाम और उज्जैन में किसान प्रदर्शन कर रहे थे। प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किसान संगठनों की माँगें मान भी ली थीं। मुख्यमंत्री ने तत्काल घोषणा कर दी थी कि सरकार किसानों से इस साल 8 रुपये किलो प्याज और गर्मी में समर्थन मूल्य पर मूंग खरीदेगी। खरीदी 30 जून तक चलेगी। कृषि उपज समर्थन मूल्य पर खरीदने के लिए 1000 करोड़ रुपये का एक फंड भी बनाने की घोषणा मुख्यमंत्री ने की है। सरकार द्वारा किसानों की प्रमुख माँग मान लेने के बाद एक-दो संगठन ने आंदोलन वापस लेने की घोषणा भी कर दी थी। प्रमुख संगठनों द्वारा आंदोलन वापस लेने की घोषणा के बाद मध्यप्रदेश सरकार और उसका प्रशासन लापरवाह हो गया। उसने आंदोलन से पूरी तरह ध्यान हटा लिया। जबकि, एक-दो संगठन आंदोलन पर अड़े हुए थे। किसानों की मौत साफतौर पर प्रशासन की लापरवाही का मामला है।

सोमवार, 5 जून 2017

कांग्रेस और पाकिस्तान की भाषा एक कैसे?

 गोहत्या  के खून के दाग अभी धुल भी नहीं पाए थे कि कांग्रेस पाकिस्तान की बोली बोलकर एक बार फिर जनता की नजरों में गिर गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा नीत केंद्र सरकार के विरोध में कांग्रेस इतनी अंधी हो गई है कि उसे राष्ट्रहित दिखाई नहीं देते हैं। मोदी सरकार का विरोध करते-करते कांग्रेस के नेता भारत और उसकी संस्कृति के विरोध पर उतर आते हैं। कांग्रेस ने इस बार तो हद ही कर दी। मोदी सरकार की निंदा से भरी १६ पृष्ठ की एक पुस्तिका कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद और राज बब्बर ने बीते शनिवार को जारी की है, जिसमें उसने जम्मू-कश्मीर के संबंध में एक भयंकर गलती की है। कांग्रेस ने पुस्तिका में चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर का जिक्र करते हुए एक नक्शा प्रकाशित किया है। इस नक्शे में उसने जम्मू-कश्मीर के क्षेत्र को 'इंडियन ऑक्युपाइड कश्मीर' बताया है। जम्मू-कश्मीर के संदर्भ में इस प्रकार की भाषा का उपयोग पाकिस्तान करता है या फिर पाकिस्तान परस्त अलगाववादी। भारत के प्रति निष्ठावान संगठन या व्यक्ति सम्पूर्ण जम्मू-कश्मीर को भारत का अभिन्न अंग मानते हैं। पाक अधिक्रांत कश्मीर के क्षेत्र पर भी भारत अपना दावा जताता है। लेकिन, मोदी सरकार के विरोध में अंधी कांग्रेस भारत के अभिन्न अंग को 'भारत अधिकृत कश्मीर' बता गई। यह कांग्रेस की भूल है या फिर जम्मू-कश्मीर के मसले पर उसकी नीति?