शनिवार, 15 अप्रैल 2017

ईवीएम प्रकरण : पराजयवादी मानसिकता

 ईवीएम  में छेड़छाड़ का आरोप लगाकर संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग और देश की जनता के अभिमत पर प्रश्न खड़ा कर रहे लोगों को अब उनके ही सहयोगी आईना दिखा रहे हैं। कांग्रेस के तीन बड़े नेताओं ने ईवीएम पर अपनी ही पार्टी के मत की आलोचना की है। पंजाब में कांग्रेस को उम्मीद से अधिक बहुमत दिलाने वाले वरिष्ठ नेता और मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने ईवीएम में छेड़छाड़ के आरोपों को सिरे से खारिज किया है। उनका कहना उचित ही है कि यदि ईवीएम में छेड़छाड़ संभव होती, तब क्या कांग्रेस पंजाब में सत्ता में आ पाती? यदि ईवीएम में छेड़छाड़ होती तो वह मुख्यमंत्री की कुर्सी पर नहीं बैठे होते बल्कि अकाली दल का कोई नेता वहाँ होता। पंजाब के मुख्यमंत्री के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी ईवीएम में छेड़छाड़ के मुद्दे को नकारा है। उन्होंने नानजांगुड और गुंडलूपेट विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में कांग्रेस की दोबारा जीत का उदाहरण देकर यह बात कही है। इससे पूर्व कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता और पूर्व कानून मंत्री वीरप्पा मोइली ने तो अन्य दलों के सुर में सुर मिलाकर ईवीएम का विरोध करने के अपने पार्टी के फैसले की कड़ी आलोचना की है। यहाँ तक कि उन्होंने इसे 'पराजयवादी मानसिकता' कह दिया।
          ईवीएम का विरोध करने वालों के लिए वीरप्पा मोइली ने उचित ही विश्लेषण दिया है। वास्तव में यह पराजयवादी मानसिकता है। दरअसल, यह लोग ईवीएम का ही विरोध नहीं कर रहे हैं, बल्कि जनादेश को भी खारिज कर रहे हैं। यह लोग अपनी हार का ईमानदारी से आकलन करने की जगह जनता के विवेक पर प्रश्न चिह्न खड़ा कर रहे हैं। यह लोग समझ नहीं पा रहे हैं कि जनता को इनकी नीति और नीयत पसंद नहीं आ रही है। ईवीएम के विरोध में जिस तरह के तर्क गढ़े जा रहे हैं, यह तर्क जनता को आश्वस्त कर रहे हैं कि उन्होंने चुनाव में इन पार्टियों को खारिज करके उचित ही किया। ईवीएम विरोधी लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं पर भी चोट कर रहे हैं। देश की जनता को चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर भरोसा है। दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र के महापर्व को पारदर्शिता के साथ सफलतापूर्वक सम्पन्न कराने का बड़ा दायित्व चुनाव आयोग निभाता है। चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर इससे पहले इस तरह कभी हमला नहीं किया गया है। लेकिन, यह लोग एक संवैधानिक संस्था को संदेह के घेरे में लाने के लिए प्रतिबद्ध दिखाई दे रहे हैं। हार से हताश लोग घेराबंदी करके चुनाव आयोग जैसी संस्था के प्रति जनमानस के भरोसे को डिगाने की असफल कोशिश कर रहे हैं। इसके लिए बीते बुधवार को 13 राजनीतिक दल राष्ट्रपति से मुलाकात करके ईवीएम का मुद्दा उनके सामने रखते हैं।
          आम आदमी पार्टी जैसे दल बेवजह हाय-तौबा मचा रहे हैं, यह समझ आता है। क्योंकि, लोकतंत्र में उनकी कितनी आस्था है, यह पिछले पाँच वर्ष में देश के सामने स्पष्ट हो गया है। हंगामा खड़ा करना ही आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया का मुख्य कार्य हो गया है। परंतु, आश्चर्य इस बात पर है कि छोटी और क्षेत्रीय पार्टियों के साथ देश की जिम्मेदार पार्टी कांग्रेस भी मतिभ्रम का शिकार है। कांग्रेस का शासन लगभग 70 साल देश में रहा है। कम्प्युटर क्रांति का श्रेय भी वह लेती है। ईवीएम पर मची चख-चख के बीच एक पल जरा ठहरकर सोचिए कि ईवीएम में छेड़छाड़ संभव होती, तब क्या कांग्रेस जैसी प्रभावशाली और ताकतवर पार्टी कभी सत्ता से बाहर होती? क्या वह ईवीएम को 'हैक' करने वाले 'हैकर्स' 'हायर' नहीं कर सकती थी। जब पहली बार भारतीय जनता पार्टी ने ईवीएम में छेड़छाड़ की आशंकाओं की बात कही थी, तब क्या कांग्रेस ने जाँच-पड़ताल नहीं कराई होगी? यदि उसने जाँच कराई थी, तब कांग्रेस की सरकार किस नतीजे पर पहुँची थी? कांग्रेस ने तब क्यों नहीं ईवीएम को तालाबंद करके फिर से बैलेट व्यवस्था शुरू नहीं की? इस संबंध में कांग्रेस शासन के कानून मंत्री वीरप्पा मोइली को सुनना चाहिए। उनका दावा है कि इस प्रकार की शिकायतें उनके समय में भी आईं थीं। तब उन्होंने ईवीएम की जाँच कराई थी, जिससे सिद्ध हो गया था कि ईवीएम में कोई छेड़छाड़ नहीं की जा सकती। वीरप्पा मोइली के दावे के बाद क्या कांग्रेस को अतार्किक और अंधविरोध का रुख छोड़कर अपने ही वरिष्ठ नेताओं को नहीं सुनना चाहिए? मोइली के कहे अनुसार कांग्रेस इतिहास को न भूले, बल्कि वह इतिहास को याद करे। इतिहास के पन्ने पलटकर उससे सबक सीखे। 
          नेतृत्व की अदूरदर्शिता के कारण वर्तमान में कांग्रेस किसी भी मुद्दे पर उचित और अनुचित का फैसला नहीं कर पा रही है। अन्य मसलों की तरह ईवीएम मामले में भी कांग्रेस 'भेड़' की तरह क्षेत्रीय पार्टियों की 'चाल' का अनुसरण करती दिखाई दे रही है। यह देखकर आश्चर्य होता है कि आधुनिक समय में आगे बढऩे की जगह प्रगतिशीलता का ब्रांड लेकर घूम रहे विचार/ संगठन/ लोग 'ठप्पा लगाने' के दौर में लौटना चाहते हैं। बहरहाल, लोकतांत्रिक परंपरा का लम्बा अनुभव रखने वाली पार्टी यदि गैर-जिम्मेदार व्यवहार करेगी, तब चिंता का विषय होना स्वाभाविक है। ईवीएम का विरोध कर रहे लोगों के पास तर्क और तथ्य नहीं है, वह सिर्फ गाल बजाने का काम कर रहे हैं। ईवीएम की जाँच की माँग करने वाले दल और नेताओं को चुनाव आयोग ने खुली चुनौती दी है कि वह ईवीएम में छेड़छाड़ सिद्ध करके दिखाएं। झूठों के समूह के दुष्प्रचार के कारण चुनाव आयोग अब अपनी 'अग्निपरीक्षा' के लिए खुलकर सामने आ गया है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और बहुजन समाजवादी पार्टी सहित अन्य जो भी दल/व्यक्ति ईवीएम पर प्रोपोगंडा फैला रहे हैं, उन्हें चुनाव आयोग की चुनौती स्वीकार करनी चाहिए। उन्हें अपने आरोप को सिद्ध करना चाहिए, अन्यथा संवैधानिक और लोकतांत्रिक संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं के संबंध में दुष्प्रचार करने से बाज आना चाहिए। लेकिन, इनका रुख देखकर लगता नहीं कि यह प्रोपोगंडा बंद करेंगे। तार्किक बात रखने वाले वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं पर कांग्रेस के ही प्रवक्ता बरस पड़ रहे हैं। पंजाब में जीत दिलाकर कांग्रेस को ऑक्सीजन देने वाले अमरिंदर सिंह, कर्नाटक में कांग्रेस की राजनीतिक जमीन बचाने वाले सिद्धारमैया और वरिष्ठ नेता वीरप्पा मोइली पर ही कांग्रेस के प्रवक्ता सवाल उठा रहे हैं। वहीं, कांग्र्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह चुनाव आयोग की पहल पर हास्यास्पद और कुतर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ''सबसे ज्यादा फायदा तो भाजपा और हैकरों का हो रहा है तो वे क्यों सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को मारेंगे? क्या आप सोचते हैं कि बीजेपी और हैकर्स मूर्ख हैं? चुनाव आयोग इतना अनाड़ी क्यों बन रहा है? '' यह टिप्पणी ही साबित करती है कि 'पराजयवादी मानसिकता' विश्लेषण का उपयोग वीरप्पा मोइली ने उचित ही किया है।

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