बुधवार, 28 दिसंबर 2016

सांप्रदायिक निर्णय के बाद भी कांग्रेस सेक्युलर!

 जुमे  की नमाज के लिए मुस्लिम कर्मचारियों को 90 मिनट का अवकाश देकर उत्तराखंड सरकार ने सिद्ध कर दिया है कि कांग्रेस ने सेक्युलरिज्म का लबादा भर ओढ़ रखा है, असल में उससे बढ़ा सांप्रदायिक दल कोई और नहीं है। कांग्रेस के साथ-साथ उन तमाम बुद्धिजीवियों और सामाजिक संगठनों के सेक्युलरिज्म की पोलपट्टी भी खुल गई है, जो भारतीय जनता पार्टी या किसी हिंदूवादी संगठन के किसी नेता की 'कोरी बयानबाजी' से आहत होकर 'भारत में सेक्युलरिज्म पर खतरे' का ढोल पीटने लगते हैं, लेकिन यहाँ राज्य सरकार के निर्णय पर अजीब खामोशी पसरी हुई है। उत्तराखंड की कांग्रेस सरकार के घोर सांप्रदायिक निर्णय के खिलाफ तथाकथित प्रगतिशील और बुद्धिजीवी समूहों से कोई आपत्ति नहीं आई है। सोचिए, यदि किसी भाजपा शासित राज्य में निर्णय हुआ होता कि सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाने के लिए हिंदू कर्मचारियों-अधिकारियों को 90 मिनट का अवकाश दिया जाएगा, तब देश में किस प्रकार का वातावरण बनाया जाता? सेक्युलरिज्म के नाम पर यह दोगलापन पहली बार उजागर नहीं हुआ है। यह विडम्बना है कि वर्षों से इस देश में वोटबैंक की राजनीति के कारण समाज को बाँटने का काम कांग्रेस और उसके प्रगतिशील साथियों ने किया है, लेकिन सांप्रदायिक दल होने की बदनामी समान नागरिक संहिता की माँग करने वाली भारतीय जनता पार्टी के खाते में जबरन डाल दी गई है।

शनिवार, 17 दिसंबर 2016

जनप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज के 11 वर्ष

 मध्यप्रदेश  के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के यशस्वी कार्यकाल को 29 नवम्बर को 11 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। निश्चित ही उनकी यह यात्रा आगे भी जारी रहेगी। इंदौर में आयोजित 5वीं ग्लोबल इन्वेस्टर समिट-2016 के समापन समारोह में उन्होंने कहा भी है कि अगली इन्वेस्टर समिट 2019 में उनकी ही सरकार कराएगी। मुख्यमंत्री के इस बयान को कुछ लोग उनका आत्मविश्वास कह सकते हैं और कुछ लोग अति विश्वास भी कहने से नहीं चूकेंगे। वास्तव में यह जनता का भरोसा है, जिसके आधार पर शिवराज यह कह गए। अपनी इस यात्रा में शिवराज बड़ों को आदर देकर, छोटों को स्नेह देकर और समकक्षों को साथ लेकर लगातार आगे बढ़ रहे हैं। यह उनके नेतृत्व की कुशलता है। उनका व्यक्तित्व इतना सहज है कि जो भी उनके नजदीक आता है, उनका मुरीद हो जाता है। शिवराज के राजनीतिक विरोधी भी निजी जीवन में उनके व्यवहार के प्रशंसक हैं। सहजता, सरलता, सौम्यता और विनम्रता उनके व्यवहार की खासियत है। उनके यह गुण उन्हें राजनेता होकर भी राजनेता नहीं होने देते हैं। वह मुख्यमंत्री हैं, लेकिन जनता के मुख्यमंत्री हैं। 'जनता का मुख्यमंत्री' होना उनको औरों से अलग करता है। प्रदेश में पहली बार शिवराज सिंह चौहान ने मुख्यमंत्री निवास के द्वार समाज के लिए खोले। वह प्रदेश में गाँव-गाँव ही नहीं घूमे, बल्कि समाज के प्रत्येक वर्ग को मुख्यमंत्री निवास पर बुलाकर भी उनको सुना और समझा। अपने इस स्वभाव के कारण शिवराज सिंह चौहान 'जनप्रिय' हो गए हैं। मध्यप्रदेश में उनके मुकाबले लोकप्रियता किसी मुख्यमंत्री ने अर्जित नहीं की है।

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

नर्मदा संरक्षण का बड़ा प्रयास

 मध्यप्रदेश  के मुध्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और उनकी सरकार ने नर्मदा नदी को प्रदूषण मुक्त बनाने का संकल्प लिया है। यह शुभ संकल्प है। मध्यप्रदेश के प्रत्येक नागरिक को प्रार्थना करनी चाहिए कि मुख्यमंत्री का यह संकल्प पूरा हो, बल्कि उचित होगा कि अधिक से अधिक नागरिक इस संकल्प की पूर्ति में अपना योगदान दें। क्योंकि नर्मदा नदी प्रदेश की जीवनरेखा है। यह प्रदेश को आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न बना रही है। यह पेयजल, सिंचाई और बिजली देती है। वृक्षों के कटने और प्रदूषण से नर्मदा के जलप्रवाह पर प्रभाव हुआ है। इसलिए समय की आवश्यकता है कि नर्मदा नदी को प्रदूषण से मुक्त किया जाए। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की संवेदनशीलता है कि उन्होंने इस संबंध में 'नमामि देवी नर्मदे' यात्रा जैसा महत्त्वपूर्ण कदम उठाया है। अपने कार्यकाल के 11 साल पूरे होने पर उन्होंने इस यात्रा की घोषणा करते हुए कहा था कि वे नर्मदा की गोदी में पले-बढ़े हैं। यह यात्रा माँ नर्मदा का कर्ज उतारने का प्रयास है। हालाँकि, किसी सरकार और एक मुख्यमंत्री के बूते नर्मदा को प्रदूषण मुक्त बनाना संभव नहीं है। हाँ, यह सुखद और सकारात्मक है कि सरकार और मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस कार्य के लिए आगे आए हैं। हम सब मध्यप्रदेश के निवासी भी आगे आएं और इस अभियान की सफलता सुनिश्चित करें, क्योंकि नर्मदा का जितना कर्ज मुख्यमंत्री पर है, उतना ही हम सब लोगों पर भी है। इस ऋण से उऋण होना संभव नहीं, लेकिन कुछ लौटाने का प्रयास तो करना ही चाहिए।

गुरुवार, 1 दिसंबर 2016

राष्ट्रगान का सम्मान

 देश  के सर्वोच्च न्यायालय ने राष्ट्रगान के सम्मान में सराहनीय निर्णय सुनाया है। कुछ समय पहले जब इस तरह के मामले सामने आए कि सिनेमाघर या अन्य जगह राष्ट्रगान बजाया गया तब कुछेक लोग उसके सम्मान में खड़े नहीं हुए। इस संबंध में उनका कहना था कि संविधान में कहीं नहीं लिखा है कि जब राष्ट्रगान हो रहा हो, तब खड़े होना अनिवार्य है। इसी बीच सिनेमाघरों में राष्ट्रगान बजाना अनिवार्य करने की माँग ने भी जोर पकड़ा। इस माँग के बाद देशभर में राष्ट्रगान के सम्मान और अपमान की बहस ने जन्म लिया था। इस बहस में आ रहे तर्क-कुतर्कों पर उच्चतम न्यायालय ने विराम लगा दिया है। न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट कहा है कि सिनेमाघरों में फिल्मों का प्रदर्शन शुरू होने से पहले राष्ट्रगान अवश्य बजाया जाना चाहिए। साथ ही परदे पर राष्ट्रध्वज की तस्वीर भी दिखाई जानी चाहिए। जिस वक्त राष्ट्रगीत बज रहा हो, वहां उपस्थित लोगों को उसके सम्मान में खड़े रहना जरूरी है। इसके अलावा राष्ट्रगान का किसी भी रूप में व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इसकी धुन को बदल कर गाने या फिर इसे नाटकीय प्रयोजन के लिए उपयोग नहीं होना चाहिए।

मंगलवार, 22 नवंबर 2016

नोटबंदी : नरेन्द्र मोदी का वाजिब सवाल

 प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी ने आगरा में परिवर्तन रैली को जिस अंदाज में संबोधित किया है, उसे दो तरह से देखा जा सकता है। एक, उन्होंने विपक्ष पर करारा हमला बोला है। दो, नोटबंदी पर सरकार और प्रधानमंत्री को घेरने के लिए हाथ-पैर मार रहे विपक्ष से प्रधानमंत्री ने सख्त सवाल पूछ लिया है। ऐसा सवाल जिसका सीधा उत्तर विपक्ष दे नहीं सकता। नोटबंदी का विरोध कर रहे नेताओं की ओर प्रधानमंत्री मोदी ने नागफनी-सा सवाल उछाल दिया है, जो निश्चित तौर पर उन्हें लहूलुहान करेगा। उन्होंने पूछ लिया कि यह कदम कालेधन वालों के खिलाफ उठाया गया है, फिर आपको परेशानी क्यों हो रही है? यकीनन प्रधानमंत्री का यह सवाल वाजिब है, क्योंकि परेशानी उठा रही आम जनता को भी यह समझ नहीं आ रहा है कि विपक्ष ने आखिर हाय-तौबा किस बात के लिए मचा रखी है? क्या विपक्ष नहीं चाहता कि कालेधन के खिलाफ कार्रवाई हो? क्या विपक्ष नहीं चाहता कि जाली मुद्रा को खत्म किया जाए? आखिर विपक्ष की मंशा क्या है? वह क्यों चाहता है कि नोटबंदी का निर्णय वापस लिया जाए और फिर से 500 और 1000 के पुराने नोट चलन में आएं? प्रधानमंत्री के तर्कसंगत सवाल से विपक्ष कठघरे में खड़े किसी अपराधी से कम नजर नहीं आ रहा है।

रविवार, 20 नवंबर 2016

नोटबंदी पर एक से बढ़कर एक कुतर्क

 कालेधन  के विरुद्ध लड़ाई में नोटबंदी के निर्णय पर प्रतिपक्ष के नेता एक से बढ़कर एक कुतर्क प्रस्तुत कर रहे हैं। उनके कुतर्क यह भी साबित कर रहे हैं कि वह जमीन से जुड़े नेता नहीं हैं। उन्हें भारतीय जन के मानस की बिल्कुल भी समझ नहीं है। विपक्षी नेताओं के बयानों को सुनकर यह समझना मुश्किल हो रहा है कि वह आम जनता के शुभचिंतक हैं या फिल कालेधन वालों के? उनकी बौखलाहट देखकर संदेह यह भी है कि उनके पास भी कालेधन का भंडार है। वरना क्या कारण है कि नोटबंदी की वापसी के लिए चेतावनी जारी की जा रही हैं? साफ नजर आ रहा है कि विपक्षी नेता आम जनता की परेशानी की आड़ में अपने कालेधन की चिंता कर रहे हैं? तथाकथित पढ़े-लिखे नेता चौराहों की भाषा इस्तेमाल कर रहे हैं। कुतर्क देखिए कि पाँच सौ और दो हजार रुपये का नया नोट चूरन की पुडिय़ा में निकलने वाले नकली नोट जैसा है। आश्चर्य है इनकी समझ पर।

शनिवार, 19 नवंबर 2016

दुर्भाग्य है नायसमंद की घटना

 नये  दौर में छूआछूत और भेदभाव की घटना किसी भी समाज के लिए कलंक से कम नहीं हैं। यह समूची मनुष्य जाति का दुर्भाग्य है कि समाज में कुछ लोग, कुछ लोगों को अपने से कमतर मानते हैं। उनके साथ अमानवीय व्यवहार करते हैं। किसी मनुष्य के खेत में पैर रखने से क्या सफल सूख सकती है? क्या उसके छूने से पवित्रता समाप्त हो सकती है? यदि इसका प्रश्न हाँ है तब समूची धरती तथाकथित सवर्णों के लिए रहने लायक नहीं है। समूची धरती एक है और उसका स्पर्श हजारों हजार तथाकथित निम्न जाति के लोग करते हैं। उस भूमि को वह अपनी माता मानते हैं। यह अधिकार और ज्ञान तथाकथित सवर्ण समाज को किसने दिया कि एक वर्ग विशेष नजरें उठाकर नहीं चल सकता, उनकी औरतें-बेटियाँ सज-धज नहीं सकतीं, उन्हें होटल या धर्मशाला में पानी चुल्लू में लेकर पीना चाहिए?

शुक्रवार, 18 नवंबर 2016

लोकमंथन : नए भारत निर्माण की राह

 लोकहित  में चिंतन और मंथन भारत की परंपरा में है। भारत के इतिहास में ऐसे अनेक उदाहरण उपलब्ध हैं, जिनमें यह परंपरा दिखाई देती है। महाभारत के कुरुक्षेत्र में श्रीकृष्ण-अर्जुन संवाद से लेकर नैमिषराण्य में ज्ञान सत्र के लिए 88 हजार ऋषि-विद्वानों का एकत्र आना, लोक कल्याण के लिए ही था। भारत में चार स्थानों पर आयोजित होने वाले महाकुम्भ भी देश-काल-स्थिति के अनुरूप पुरानी रीति-नीति छोडऩे और नये नियम समाज तक पहुंचाने के माध्यम थे। ज्ञान परंपरा से समृद्ध भारत और उसकी संतति का यह दुर्भाग्य रहा कि ज्ञात-अज्ञात कारणों से उसकी यह परंपरा कहीं पीछे छूट गई थी और यह सौभाग्य है कि अब फिर से वह परंपरा जीवित होती दिखाई दे रही है। भारत की चिंतन-मंथन की ऋषि परंपरा को आगे बढ़ाने का सौभाग्य भी विचारों की उर्वर भूमि मध्यप्रदेश को प्राप्त हुआ है। पिछले चार-पाँच वर्षों से ज्ञान सत्र आयोजित करने में मध्यप्रदेश की अग्रणी भूमिका रही है। अंतरराष्ट्रीय धर्म-धम्म सम्मेलन, मूल्य आधारित जीवन पर अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, सिंहस्थ महाकुंभ की धरती पर विचार महाकुंभ का आयोजन और अब 'राष्ट्र सर्वोपरि' की भावना से ओतप्रोत विचारकों एवं कर्मशीलों का राष्ट्रीय विमर्श 'लोकमंथन : देश-काल-स्थिति' का आयोजन, यह सब आयोजन नये भारत के निर्माण की राह तय करने वाले हैं। बौद्ध धर्म के गुरु एवं तिब्बत सरकार के पूर्व प्रधानमंत्री सोमदोंग रिनपोछे भी मानते हैं कि लोकमंथन से भारतीय इतिहास में नये युग का सूत्रपात हुआ है। निश्चित ही लोकमंथन 'औपनिवेशिक मानसिकता' से मुक्ति और भारतीयता की अवधारणा को पुष्ट करने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास है।

बुधवार, 16 नवंबर 2016

जनता प्रसन्न, विपक्ष परेशान क्यों?

 केन्द्र  सरकार के नोटबंदी के निर्णय को आम आदमी सकारात्मक ढंग से ले रहा है। लेकिन, विपक्षी दलों के नेताओं की तकलीफ समझ पाना मुश्किल हो रहा है। वह कह रहे हैं कि लोग परेशान हो रहे हैं, लोगों को बैंक और एटीएम में कतार में लगना पड़ रहा है। छोटे नोट की कमी के कारण जनता हलाकान हो रही है। यह सच है कि जनता परेशान हो रही है। लेकिन, उसकी परेशानी देश से बड़ी नहीं है। यह बात आम आदमी जानता है। इसलिए कतार में खड़ा देशभक्त आदमी कह रहा है कि वह राष्ट्रहित के लिए थोड़ी-बहुत परेशानी उठाने के लिए तैयार है। सरकार के निर्णय का समर्थन करने के लिए अनेक स्वयंसेवी कार्यकर्ता भी जरूरतमंदों की मदद के लिए सड़कों पर उतर आए हैं। यह लोग बैंक से पैसा निकालने में लोगों की मदद कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपानीत सरकार का विरोध करने को अपना धर्म समझने वाले आम आदमी पार्टी के सर्वेसर्वा अरविंद केजरीवाल, कांग्रेस के उपाध्यक्ष राहुल गांधी, बसपा प्रमुख मायावती और तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी सामान्य व्यक्ति की भावना को समझने में भूल कर रहे हैं। इसे समझने के लिए इन दलों और नेताओं को 'इनशॉर्ट' की ओर से कराए गए सर्वेक्षण का अध्ययन करना चाहिए।

बेईमानों के लिए मुश्किल भरे रहेंगे ५० दिन

 पाँच  सौ और हजार रुपये के नोट बंद करने के बाद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक बार फिर अपने भाषण से भ्रष्टाचारी और बेईमान लोगों की नींद उड़ा दी है। उन्होंने भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने का भरोसा दिलाते हुए जनता से कुछ वक्त और मांगा है। प्रधानमंत्री ने कहा है कि 'मुझे सिर्फ 50 दिन दीजिए। यदि उसके बाद मैं सफल नहीं हो सका तो जो सजा आप देंगे वह मुझे मंजूर होगी।' प्रधानमंत्री ने अपने इस भाषण में बेनामी संपत्ति के खिलाफ भी बड़ी कार्रवाई के संकेत देकर भ्रष्टाचारियों को तनाव दे दिया है। उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वह ३० दिसंबर के बाद भी चुप नहीं बैठेंगे। यह बात कहने में कोई गुरेज नहीं कि बाजार से लेकर सत्ता में घुसपैठ करके बैठे भ्रष्टाचारियों की नींद छीनने के लिए वाकई बड़े जिगर की जरूरत थी।

कालेधन के खिलाफ सर्जीकल स्ट्राइक

 प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी ने मंगलवार को देश के नाम संबोधन में कालेधन और भ्रष्टाचार के खिलाफ बड़ा निर्णय लेकर जता दिया है कि उनकी सरकार जनहित में बड़े से बड़ा निर्णय बेहिचक ले सकती है। प्रधानमंत्री को यह भी भरोसा था कि देशहित के इस निर्णय में परेशानी उठाकर भी जनता उनके साथ आएगी। सामान्य जन से जो रुझान आ रहा है, वह इस भरोसे की हामी भरता है। जनता ने 500 और 1000 रुपये के नोट बंद करने के साहसी निर्णय का स्वागत किया है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं है कि पिछले 70 वर्षों में कालेधन के खिलाफ यह पहला लक्षित हमला (सर्जीकल स्ट्राइक) है। भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ जारी लड़ाई में यह निर्णय सरकार को प्रभावी जीत दिलाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भ्रष्टाचारियों और कालाधन दबाकर बैठे लोगों को संभलने का कोई मौका नहीं दिया। इतना बड़ा फैसला और किसी को कानों-कान खबर नहीं हुई, यह इस बात का भी प्रमाण है कि प्रधानमंत्री मोदी की प्रशासन पर गहरी पकड़ है।

शनिवार, 5 नवंबर 2016

आज की आवश्यकता है एकात्म मानवदर्शन

 राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ का मानना है कि भारतीय चिंतन के आधार पर प्रतिपादित विचार 'एकात्म मानवदर्शन' ही दुनिया को सभी प्रकार के संकटों का समाधान दे सकता है। संघ की अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल ने हैदराबाद की बैठक में इस आशय का प्रस्ताव रखा है। संघ का मानना है कि आज विश्व में बढ़ रही आर्थिक विषमता, पर्यावरण-असंतुलन और आतंकवाद मानवता के लिए गंभीर चुनौती का कारण बन रहे हैं। अनियंत्रित पूँजीवाद और वर्ग-संघर्ष की साम्यवादी विचारधाराओं को अपनाने के कारण ही विश्वभर में बेरोजगारी, गरीबी और कुपोषण की समस्याएं सुलझ नहीं सकी हैं। विविध देशों में बढ़ते आर्थिक संकट और विश्व के दो-तिहाई से अधिक उत्पादन पर चंद देशों की बहुराष्ट्रीय कंपनियों का आधिपत्य आदि समस्याएं अत्यन्त चिंताजनक हैं। एकात्म मानवदर्शन के अनुसरण से संसार के इन संकटों का समाधान सहजता से संभव है। संघ ने अपने प्रस्ताव में कहा है कि चर-अचर सहित समग्र सृष्टि के प्रति लोक-मंगल की प्रेरक एकात्म दृष्टि के साथ सम्पूर्ण जगत के पोषण का भाव ही 'एकात्म मानवदर्शन' आधार है।

गुरुवार, 3 नवंबर 2016

बांग्लादेश पर दबाव बनाए सरकार

 भारत  सरकार के लिए चिंता का विषय होना चाहिए कि उसके पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश में लगातार हिंदुओं को लक्षित करके हमले किए जा रहे हैं। बांग्लादेश में बढ़ रही जेहादी मानसिकता और कट्टरवाद को रोकने के लिए भारत को हर संभव प्रयास करना चाहिए। यदि बांग्लादेश में इस्लामिक जेहादी मानसिकता हावी हो गई, तब भारत के लिए अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न हो जाएंगी। विकराल हो चुके कट्टरवाद से तब शायद निपटना आसान भी न होगा। इसलिए भारत सरकार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना पर दबाव बनाएं कि इन हमलों को रोकने के ठोस प्रबंध किए जाएं और हिंदुओं की सुरक्षा की चिंता भी गंभीरता से करें। पिछले कुछ सालों में बांग्लादेश में चरमपंथी गुटों ने धार्मिक अल्पसंख्यकों को सुनियोजित ढंग से निशाना बनाया, ताकि उनके मन में खौफ पैदा किया जा सके। अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला भी इसी कड़ी का हिस्सा है, जिसके तहत स्वतंत्र सोच रखने वाले लेखकों, पत्रकारों, ब्लॉगरों और सामान्य लोगों की हत्याएँ की जा रही हैं।

बुधवार, 2 नवंबर 2016

पुलिस और जनता की बड़ी कामयाबी

 भोपाल  केंद्रीय जेल से भागे आठों आतंकियों को जिस तत्परता से पुलिस ने ढूंढ़ कर ढेर किया है, उसके लिए मध्यप्रदेश पुलिस की प्रशंसा की जानी चाहिए। जेल से भागे आतंकियों को चंद घंटों में मार गिराना पुलिस और सुरक्षा बलों के बढ़े मनोबल का ताजा उदाहरण हैं। देश में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सभी प्रकार के आतंक से निपटने के लिए सुरक्षा बलों को साहसिक फैसले लेने की खुली छूट दे रखी है। सरकार के इस रुख से देशभर में पुलिस और सुरक्षा बलों के हौसले बुलंद हैं, जिसका परिणाम भी सामने आ रहा है। हालांकि कुछ राजनीतिक दल, संगठन और वामपंथी विचारधारा के लोग पुलिस के साहसिक और सराहनीय काम से आहत हैं। उन्हें इस बात की प्रसन्नता नहीं है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में मप्र की पुलिस को एक बड़ी कामयाबी मिली है, बल्कि उन्हें इस बात की अधिक चिंता हो रही है कि आतंकियों को जिंदा क्यों नहीं पकड़ा? इनका दु:ख तब प्रकट नहीं हुआ, जब इन्हीं आतंकियों ने जेल से भागने के लिए दीपावली के दिन एक संतरी की गला रेतकर हत्या कर दी। शहीद जवान रमाकांत के घर में अगले माह बेटी का विवाह है। बर्बर तरीके से इस जवान की हत्या हमारे मानवाधिकारियों के कलेजों को पिघला नहीं सकी, लेकिन आतंकियों की मौत से यह सब विचलित हैं।

रविवार, 30 अक्तूबर 2016

सैनिकों के साथ दीपावली

 दीपोत्सव  प्रारंभ हो चुका है। समूचे देश में यह पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। अध्ययन और रोजगार के लिए जो लोग अपने घर से दूर होते हैं, उनका प्रयास रहता है कि दीपावली पर अपने घर पहुँचें। हम देखते हैं कि दीपावली के आसपास रेलगाडिय़ों में पाँव रखने के लिए भी जगह नहीं मिलती है। त्यौहार का आनंद तो परिवार के साथ ही है। इसीलिए दीपावली पर ज्यादातर परिवार एकत्र आ जाते हैं। मानो सब राम छोटे-छोटे वनवास समाप्त कर अपने-अपने अयोध्या पहुंते हैं। लेकिन, हमारे ही आसपास ऐसे अनेक परिवार हैं, जिनके राम नहीं आएंगे। हम सब सुरक्षित वातावरण में सुख और शांति से अपने परिवार के साथ दीपावली मना सकें, इसलिए उन परिवारों के राम सीमा खड़े हैं। अत्याचारी रावण के साथ युद्धरत हैं, उनके राम। हमारी खातिर। हमारी अयोध्या को युद्ध से बचाने के लिए। इसलिए हमारा नैतिक दायित्व बनता है कि सैनिकों के परिवारों से हम मिलें। उन्हें धन्यवाद दें। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस आशय की अपील की है। सैनिकों के प्रति उनकी संवेदनाएं जग जाहिर हैं।

शुक्रवार, 28 अक्तूबर 2016

राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस का सराहनीय निर्णय

 हमें  स्वाधीनता जरूर 15 अगस्त, 1947 को मिल गई थी, लेकिन हम औपनिवेशिक गुलामी की बेडिय़ाँ नहीं तोड़ पाए थे। अब तक हमें औपनिवेशिकता जकड़े हुए थी। पहली बार हम औपनिवेशिकता से मुक्ति की ओर बढ़ते दिखाई दे रहे हैं। हम कह सकते हैं कि भारत नये सिरे से अपनी 'डेस्टिनी' (नियति) लिख रहा है। यह बात ब्रिटेन के ही सबसे प्रभावशाली समाचार पत्र 'द गार्जियन' ने 18 मई, 2014 को अपनी संपादकीय में तब लिखा था, जब राष्ट्रीय विचार को भारत की जनता ने प्रचंड बहुमत के साथ विजयश्री सौंपी थी। गार्जियन ने लिखा था कि अब सही मायने में अंग्रेजों ने भारत छोड़ा है (ब्रिटेन फाइनली लेफ्ट इंडिया)। आम चुनाव के नतीजे आने से पूर्व नरेन्द्र मोदी का विरोध करने वाला ब्रिटिश समाचार पत्र चुनाव परिणाम के बाद लिखता है कि भारत अंग्रेजियत से मुक्त हो गया है। अर्थात् एक युग के बाद भारत में सुराज आया है। भारत अब भारतीय विचार से शासित होगा।

गुरुवार, 27 अक्तूबर 2016

असहिष्णुता नहीं है आरएसएस कार्यकर्ताओं पर हमले

 राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ के कार्यकर्ताओं की हत्या और उन पर जानलेवा हमले की घटनाओं में वृद्धि हुई है। यह घटनाएं किसी षड्यंत्र की ओर इशारा करती हैं। केरल, पंजाब, कर्नाटक और अब भाजपा शासित मध्यप्रदेश में भी संघ के कार्यकर्ता पर हमला करने की घटना सामने आई है। अभी इन घटनाओं के पीछे एक ही कारण समझ आ रहा है। संघ की राष्ट्रीय विचारधारा के विस्तार और उसके बढ़ते प्रभाव से अभारतीय विचारधाराओं में खलबली मची हुई है। फासीवाद, हिटलरशाह, सांप्रदायिक से लेकर असहिष्णुता के आरोप लगाने के बाद भी वह संघ के बढ़ते कदमों को नहीं रोक पा रही हैं। प्रतीत होता है कि संघ को रोकने के लिए अब उन्होंने सब जगह हिंसक हमलों का विकल्प चुना है। हालांकि, उनका यह अस्त्र भी पुराना और असफल है। केरल से लेकर नक्सल प्रभावित इलाकों में उन्होंने लोगों को संघ से दूर करने के लिए हिंसा के आधार पर भय का वातावरण बनाने का लम्बा प्रयास किया है, जिसमें उन्हें कहीं भी सफलता नहीं मिली। केरल में संघ के स्वयंसेवक मास्टर जी के पैर काटकर भी वामपंथी गुंडे उनके हौसले को नहीं हरा सके। कृत्रिम पैरों की मदद से मास्टर जी फिर से संघ स्थान पर आकर खड़े हो गए हैं। इस विजयादशमी के पथ संचलन में भी नई गणवेश में उन्होंने सहभागिता की है।

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2016

इसलिए कीजिए चीनी सामान का बहिष्कार

 भारत  की देशभक्त जनता ने चीनी सामान के बहिष्कार का अभियान चला रखा है। यह उचित ही है। इस अभियान का भरपूर समर्थन किया जाना चाहिए। भारत के सामने लगातार चीन बाधाएं खड़ी कर रहा है। हालांकि प्रत्येक भारतीय के लिए सबसे असहनीय बात यह है कि चीन लगातार पाकिस्तान का समर्थन कर रहा है। आतंकवाद पर भी चीन का व्यवहार ठीक नहीं है। उड़ी हमले के बाद जिस तरह से चीन ने पाकिस्तान का बचाव करने का प्रयास किया है, उससे भारत की देशभक्त जनता में चीन के प्रति काफी आक्रोश है। चीन को सबक सिखाने के लिए भारतीय नागरिकों ने सोशल मीडिया पर चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम चलाई है। यह मुहिम अपना रंग दिखा रही है। तकरीबन एक ही महीने में भारत में चीनी सामान की बिक्री इतनी कम हो गई है कि उससे चीन बुरी तरह बौखला गया है। बौखलाहट में चीनी मीडिया ने भारत और उसके नागरिकों के खिलाफ बहुत हल्की भाषा में कटाक्ष किया है। चीनी सामान के बहिष्कार की मुहिम के संबंध में लिखते हुए चीनी मीडिया ने लिखा है कि भारत भौंक तो सकता है, लेकिन कुछ कर नहीं सकता। चीन के सामान और तकनीक के सामने भारत का सामान और तकनीक टिक नहीं सकता है। लेकिन, चीन को इस बात का आभास नहीं है भारत के नागरिक यदि तय कर लेते हैं तो सब बातें एक तरफ और भारतीयों का निर्णय एक तरफ। चीन को यह भी नहीं पता होगा कि भारत में उसके सामान के प्रति आम नागरिकों की भावना किस प्रकार की है। चीनी माल को दोयम दर्जे का समझा जाता है। उसकी गुणवत्ता को संदेह से देखा जाता है। चीनी सामान भारत में इसलिए बिकता है, क्योंकि वह सस्ता है। उसकी बिक्री गुणवत्ता के कारण नहीं है।

शनिवार, 22 अक्तूबर 2016

रामायण संग्रहालय का सराहनीय फैसला

 भगवान श्रीराम की जन्मभूमि अयोध्या में 'रामायण संग्रहालय' के निर्माण का साहसिक और सराहनीय निर्णय केन्द्र सरकार ने लिया है। वहीं, राज्य सरकार ने भी सरयू नदी के किनारे रामलीला थीम पार्क बनाने का निर्णय लिया है। राम भक्तों पर गोली चलाने वाले और खुद को मौलाना मुलायम कहाने में गर्व की अनुभूति करने वाले मुलायम सिंह यादव के बेटे और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने थीम पार्क को मंजूरी दी है। कांग्रेस और बहुजन समाजवादी पार्टी इन निर्णयों के लिए भारतीय जनता पार्टी और समाजवादी पार्टी पर राम के नाम पर राजनीति करने का आरोप लगा रही है। यह आरोप कितने सही-गलत हैं, यह अलग बहस का मुद्दा है। सवाल तो यह भी है कि आखिर कांग्रेस ने 70 सालों में यह पहल क्यों नहीं की। कांग्रेस ने कभी मुस्लिम तुष्टीकरण से ऊपर उठकर हिंदू समाज की चिंता क्यों नहीं की? बहुजन समाजवादी पार्टी की सरकार ने भी 2007 में अंतरराष्ट्रीय रामलीला संकुल का प्रस्ताव रखा था। चूँकि बहन मायावती का पूरा ध्यान 'हाथी पार्क' बनाने पर रहा। इस कारण उनसे राम कहीं छिटक गए।

बुधवार, 19 अक्तूबर 2016

बंगाल में सांप्रदायिक हिंसा को सरकार का मौन समर्थन

 बंगाल  में सांप्रदायिक हिंसा विकराल होती जा रही है। बंगाल की स्थितियाँ देश और समाज के लिए खतरनाक होती जा रही हैं। हालात यह हैं कि मुस्लिम समाज से जुड़े अतिवादियों की दंगई से आजिज आकर कई क्षेत्रों से हिंदुओं को पलायन के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। बंगाल में हिंदुओं को रहना, व्यापार करना और यहाँ तक की अपनी आस्थाओं का पालन करना भी कठिन हो गया है। मंदिरों में पथराव, मूर्तियों का खंडित किया जाना, हिंदू बस्तियों में आगजनी, हिंदुओं की दुकानों को लूटने जैसी घटनाओं की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। दंगइयों के हौसले इतने बुलंद हैं कि पुलिस थानों को भी खाक करने में उन्हें कोई संकोच नहीं होता है। देश को अच्छे से याद है कि मालदा में ढाई लाख लोगों की भीड़ ने किस कदर आतंक फैलाया था। अब फिर से मालदा की पुनरावृत्ति की खबरें सामने आ रही हैं।

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2016

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दिल के करीब है हृदयप्रदेश

 याद  कीजिए उन दिनों को जब लोकसभा का चुनाव प्रचार चरम पर था, जब नतीजे भारतीय जनता पार्टी या कहें नरेन्द्र मोदी के पक्ष में आए, जब नरेन्द्र मोदी की ताजपोशी हो रही थी। याद आए वह दिन। गुजरात में मोदी और मध्यप्रदेश में शिवराज के विकास ने, दोनों को भाजपा का 'पोस्टर बॉय' बना दिया था। इसलिए उन दिनों गुजरात बनाम मध्यप्रदेश की बहस को जानबूझकर उछाला गया था। नरेन्द्र मोदी और शिवराज सिंह चौहान को आमने-सामने खड़ा कर दोनों के बीच खटास डालने का प्रयास किया जा रहा था। यहाँ तक कहा कि प्रधानमंत्री बनते ही नरेन्द्र मोदी सबसे पहले मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बदलेंगे। लेकिन, सब उलट हो रहा है। सारे कयास, सारे गणित, सारे विश्लेषण गलत साबित हो रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बीच न केवल संबंधों में गाढ़ापन आ रहा है, बल्कि भाजपा की एक नई जोड़ी बनती दिखाई दे रही है। शिवराज के आमंत्रण पर प्रधानमंत्री का बार-बार मध्यप्रदेश आना, अपनी महत्त्वाकांक्षी योजनाओं एवं अभियानों की मध्यप्रदेश की भूमि से घोषणा करना, शिवराज को महत्त्व देना, मोदी मुख से शिवराज की तारीफ और शिवराज द्वारा मोदी की प्रशंसा, यह सब किस ओर इशारा करते हैं। पिछले ढाई साल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जितनी बार गुजरात नहीं गए होंगे, उससे अधिक बार मध्यप्रदेश आ चुके हैं। यह देखकर लगता है कि हृदयप्रदेश प्रधानमंत्री के दिल के करीब है। प्रधानमंत्री के आज के प्रवास को भी इसी संदर्भ में देखा जा सकता है। मध्यप्रदेश के इतिहास में यह पहली बार है कि उसे प्रधानमंत्री के आतिथ्य का अवसर लगातार मिल रहा है।

बुधवार, 12 अक्तूबर 2016

देश और समाज हित में संघ का समग्र चिंतन

 विजयादशमी  के अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक का उद्बोधन स्वयंसेवकों के लिए पाथेय का काम करता है। संघ की स्थापना को 91 वर्ष पूर्ण हो गए हैं। इन वर्षों में संघ का इतना अधिक विस्तार हो चुका है कि विजयादशमी का उद्बोधन स्वयंसेवकों के लिए ही नहीं, बल्कि संघ के समर्थकों और विरोधियों के लिए भी महत्त्वपूर्ण होता है। विजयादशमी के अवसर पर सरसंघचालक अपने उद्बोधन में देश-काल-स्थिति को ध्यान में रखकर संघ के चिंतन और कार्ययोजना को प्रस्तुत करते हैं। वर्तमान सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने अपने उद्बोधन में समाज और देश हित के सभी विषयों पर बात की। शिक्षा, संस्कृति, समाज और शासन के संबंध में उनके विचार अनुकरणीय हैं। वर्तमान राजनीतिक हालात पर उन्होंने बहुत महत्त्वपूर्ण बात कही। उन्होंने कहा कि 'हम सब जानते हैं कि दुनिया की कई शक्तियां भारत को बढ़ते नहीं देखना चाहते। हमारे यहां के स्वार्थों के कारण उनको पोषित करने वाले लोग भी हैं। ऐसे लोगों को भारत का आगे बढऩा सुहाता नहीं है। प्रजातंत्र में विरोधी दल अधिकतर शासन की कमियों को ही उजागर करते हुए अपनी बात कहते हैं, लेकिन ऐसा करते हुए एक सीमा का उल्लंघन नहीं किया जा सकता। दलीय स्वार्थों के लिए भी एक मर्यादा का पालन होना चाहिए। हमारी राजनीति से एकता खतरे में न पड़ जाए। विवादों के चलते जनता एक दूसरी की विरोधी न बन जाए, इस मर्यादा का पालन करना चाहिए। देश का स्वार्थ सबसे ऊपर है।'

मंगलवार, 11 अक्तूबर 2016

आतंकी मसूद अजहर की आड़ में घिनौना खेल खेल रहा चीन

 न्यूक्लियर  सप्लायर्स ग्रुप (एनएसजी) में भारत की दावेदारी पर अड़ंगा लगाने के बाद अब चीन ने एक बार फिर भारत के खिलाफ टेड़ी चाल चली है। संयुक्त राष्ट्र में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को आतंकी घोषित कराने के भारत के अभियान में चीन ने बाधा खड़ी की है। भारत ने आतंकी मसूद को 15 सदस्यीय सुरक्षा परिषद में आतंकी घोषित कराने का प्रस्ताव रखा है, जिस पर परिषद के 14 सदस्य भारत के साथ हैं, लेकिन सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य चीन अपनी 'वीटो पॉवर' का दुरुपयोग कर रहा है। चीन के उप विदेश मंत्री ली बाडोंग ने कहा कि 'चीन हर प्रकार के आतंकवाद का विरोध करता है। लेकिन इस पर दोहरे मापदंड नहीं होने चाहिए। काउंटर टेरेरिज्म के नाम पर किसी को इसका राजनीतिक फायदा नहीं लेना चाहिए।' चीन की यह टेड़ी चाल न केवल भारत के राष्ट्रीय हित के विरुद्ध है, बल्कि एक प्रकार आतंकवाद और आतंकी देश का समर्थन भी है। आतंकवाद पर दोहरा मापदण्ड किसका है, यह दुनिया देख रही है। क्या चीन यह कहना चाहता है कि मसूद अजहर आतंकवादी नहीं है?

सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

सुधार क्यों नहीं चाहता मुस्लिम समुदाय

 तीन  तलाक के मुद्दे पर सरकार का हलफनामा स्वागत योग्य है। मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक स्थिति और उनके संवैधानिक अधिकार को मजबूत करने के लिए केन्द्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय में दायर अपने हलफनामे में स्पष्ट कहा है कि तीन तलाक महिलाओं के साथ लैंगिग भेदभाव करता है। केन्द्र सरकार ने उचित ही कहा है कि पर्सनल लॉ के आधार पर किसी को संवैधानिक अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता। महिलाओं की गरिमा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता। केन्द्र सरकार ने यहाँ तक कहा है कि तीन तलाक, हलाला निकाह और बहुविवाह इस्लाम का अभिन्न अंग नहीं है। सरकार का यह कहना उचित ही है। यदि यह प्रथाएँ इस्लाम का अभिन्न अंग होती, तब इस्लामिक देशों में इन पर प्रतिबंध संभव होता क्या? दुनिया के अनेक प्रमुख इस्लामिक मुल्कों में तीन तलाक, हलाला निकाह और बहुविवाह प्रतिबंधित हैं। इसलिए भारत में भी महिलाओं के साथ धर्म और पर्सनल लॉ के नाम पर होने वाली ज्यादती रुकनी चाहिए।

शनिवार, 8 अक्तूबर 2016

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कहा- 'खून का दलाल'

 कांग्रेस  उपाध्यक्ष राहुल गाँधी ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह अपरिपक्व नेता हैं। देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ उन्होंने बेहद ओछी और निचले स्तर की भाषा का उपयोग किया है। उत्तरप्रदेश के देवरिया से प्रारंभ हुई अपनी किसान यात्रा के दिल्ली में समापन अवसर पर एक सार्थक भाषण प्रस्तुत करने की बजाय राहुल गाँधी कीचड़ उछालने वाली भाषा में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साध रहे थे। उन्होंने कहा कि 'जो हमारे जवान हैं, जिन्होंने अपना खून दिया है। जम्मू-कश्मीर में खून दिया है, जिन्होंने हिन्दुस्तान के लिए सर्जिकल स्ट्राइक किए हैं, उनके खून के पीछे आप (मोदी) छिपे हैं। उनकी आप दलाली कर रहे हो। यह बिल्कुल गलत है।' राहुल गाँधी का यह बयान बेहद शर्मनाक है। यह बयान साबित करता है कि अभी तक राहुल गाँधी सोच-समझकर बोलना नहीं सीख पाए हैं। संभवत: कांग्रेस के प्रवक्ताओं को भी इस बयान का समर्थन करना मुश्किल होगा। देश के प्रधानमंत्री के खिलाफ ऐसी अमर्यादित भाषा का उपयोग शायद ही अब तक किसी ने किया हो।

शुक्रवार, 7 अक्तूबर 2016

नवाज शरीफ, कितने शरीफ?

 पाकिस्तान  के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने एक बार फिर अपनी 'शराफत' दिखा दी। भारतीय सेना द्वारा पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर में आतंकी शिविरों पर की गई सर्जिकल स्ट्राइक से 'खिसयानी बिल्ली' बने नवाज शरीफ ने अपने मुल्क को सफाई देने के लिए संसद का संयुक्त सत्र बुलाया था। बुधवार को पाकिस्तानी संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित करते वक्त उन्होंने एक बार फिर साबित कर दिया कि पाकिस्तान और वहाँ की सरकार की बुनियाद झूठ एवं भारत विरोध पर टिकी है। देश-दुनिया के सामने अपनी 'कॉलर' बचाने के लिए नवाज शरीफ ने एक के बाद एक झूठ संसद में बोले। हालांकि, नवाज के झूठ उनके चेहरे को छिपा कम रहे थे, बल्कि उजागर अधिक कर रहे थे। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शायद समझ नहीं पा रहे हैं कि भारत ने उनके मुखौटे में इतने छेद कर दिए हैं कि अब वह अपना खूनी और कायर चेहरा उसके पीछे छिपा नहीं सकता। नवाज यदि गौर से अपने ही मुल्क में देखें तो पाएंगे कि दुनिया को भ्रम में रखना तो बहुत दूर की बाद है, अब वह अपने ही देश की आवाम को बहला नहीं सकते। नवाज शरीफ के झूठ की पोल खोलने के लिए पाकिस्तान की संसद से लेकर सड़क तक आवाजें बुलंद हो रही हैं।

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

पाकिस्तानी कलाकारों से इतना प्रेम क्यों?

 आतंकवादी  हमलों से आहत भारत के नागरिक चाहते हैं कि पाकिस्तान का समूचा बहिष्कार किया जाए। इस सिलसिले में बॉलीवुड से पाकिस्तानी कलाकारों को बाहर करने और उन्हें काम नहीं देने की माँग जोर पकड़ रही है। यह माँग स्वाभाविक है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। लेकिन, बॉलीवुड से लेकर अन्य कला और तथाकथित बौद्धिक जगत इस विषय पर भी दो हिस्सों में बँटा नजर आ रहा है। देश का सामान्य आदमी समझ नहीं पा रहा है कि आखिर पाकिस्तानी कलाकारों से इतना प्रेम क्यों है? पाकिस्तानी कलाकारों का समर्थन क्या देशहित से बढ़कर है? पाकिस्तानी कलाकार बॉलीवुड में काम नहीं करेंगे, तब क्या बॉलीवुड ठप हो जाएगा? इन सवालों के जवाब कोई नहीं दे रहा। हद है कि कुछेक लोग पाकिस्तानी कलाकारों को देश से ऊपर रखने का प्रयास कर रहे हैं। उनके लिए कलाकार किसी भी प्रकार की सीमा से ऊपर हैं। वह पूछ रहे हैं कि क्या पाकिस्तानी कलाकारों को भगा देने से आतंकवाद समाप्त हो जाएगा? नहीं होगा, आतंकवाद समाप्त। लेकिन, क्या आप भरोसा दिलाते हैं कि पाकिस्तानी कलाकारों को काम देने आतंकवाद समाप्त हो जाएगा? भारत में आप अभिव्यक्ति की आजादी का बेजा इस्तेमाल करते हैं, इसलिए आप खुद को खुदा समझते हो। यदि वाकई कलाकार संवेदनशील हैं और उनके लिए देश की सीमाएँ कोई मायने नहीं रखती, तब क्या पाकिस्तानी कलाकार बेकसूर लोगों का खून बहाने वाले आतंकवादियों का विरोध कर सकते हैं? पाकिस्तानी कलाकारों के समर्थक क्या इतना भर करा सकते हैं कि कोई फवाद खान पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के खिलाफ बयान जारी कर दे? यह संभव नहीं है। इसलिए पाकिस्तानी कलाकारों के लिए विधवा विलाप बेमानी है।

बुधवार, 5 अक्तूबर 2016

पाकिस्तान को पसंद आए केजरीवाल के बोल

 देश  का दुर्भाग्य है कि यहाँ के नेता और बुद्धिजीवी राष्ट्रीय मुद्दों पर भी बेतुकी बयानबाजी करने से बाज नहीं आते हैं। वक्त की नजाकत कहती है कि इस वक्त भारत और पाकिस्तान के संबंध में बहुत संभलकर बोलने की जरूरत है। इस वक्त कोई भी विचार प्रकट करते वक्त यह ध्यान रखना ही चाहिए कि उसका क्या असर होगा? हमारा विचार दुश्मन देश को मदद न पहुँचा दे। अपने किसी भी बयान से भारत सरकार, भारतीय सेना और भारतीय नागरिकों का मनोबल कमजोर नहीं होना चाहिए। लेकिन, स्वार्थ की राजनीति करने वाले नेता बड़ी बेशर्मी से ऐसे प्रश्न खड़े कर ही देते हैं। आम आदमी पार्टी के मुखिया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ऐसी ही एक अमर्यादित टिप्पणी 'सर्जिकल स्ट्राइक' के संबंध में कर दी है। दो मिनट 52 सेकंड का एक वीडिया उन्होंने सोशल मीडिया पर जारी किया है, जिसमें केजरीवाल पाकिस्तान अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना द्वारा आतंकवादियों के खिलाफ की गई सर्जिकल स्ट्राइक पर बात कर रहे हैं।

शनिवार, 1 अक्तूबर 2016

सर्जिकल स्ट्राइक : शक्ति की उपासना का प्रकटीकरण

 आज  से नवरात्र प्रारंभ हो रहे हैं। शक्ति की उपासना का पर्व। भारत के पर्व उसकी संस्कृति का प्रतिनिधित्व करते हैं। प्रत्येक पर्व अपने साथ सामाजिक संदेश लेकर आता है। यह सुयोग ही है कि शक्ति पर्व के प्रारंभ से पहले पाकिस्तान में पनाह लिए आतंकवादियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक करके भारत ने दुनिया को बता दिया कि वह शास्त्र के साथ शस्त्र का भी धारण करता है। हम देखें तो पाएंगे कि हमारे प्रत्येक देवी-देवता शस्त्र और शास्त्र दोनों धारण करते हैं। स्पष्ट संदेश है कि अकेला शस्त्र खतरनाक है और शास्त्र निरर्थक। जैसे पाकिस्तान और आतंकवादी संगठनों के पास शस्त्र तो हैं, लेकिन शास्त्र नहीं हैं। इसलिए दुनिया में भय है कि यह पागल देश परमाणु बम का उपयोग न कर बैठे। इसी तरह उन महान संस्कृतियों का शास्त्र (संदेश) भी कोई नहीं सुनता, जिनके पास शस्त्र नहीं है। शस्त्र और शास्त्र में संतुलन का संदेश भारतीय संस्कृति में है। इसलिए भारत एक जिम्मेदार राष्ट्र है और पाकिस्तान एक गैर जिम्मेदार देश। भारत शास्त्र का महत्त्व समझता है, इसलिए इतना संयम और धैर्य दिखा पाता है।

बुधवार, 28 सितंबर 2016

भारत ने 10 मिनट में पाकिस्तान को धोया

 भारत  की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा के अंतरराष्ट्रीय मंच से मात्र 10 मिनट में पाकिस्तान को दुनिया के सामने एक बार फिर बेनकाब कर दिया। अपने उद्बोधन में श्रीमती स्वराज ने बड़ी स्पष्टता के साथ पाकिस्तान और भारत में अंतर स्थापित कर दिया। उनके भाषण की खासियत रही कि उन्होंने पहले भारत के वर्तमान और भविष्य को दुनिया के सामने प्रस्तुत किया। सबको बताया कि भारत किस प्रकार विश्व कल्याण के मार्ग पर अग्रसर है। उसके बाद उन्होंने बताया कि विश्व शांति में एक देश (पाकिस्तान) किस प्रकार खतरनाक सिद्ध हो रहा है। यह देश आतंक ही बोता है, आतंक ही उगाता है और आतंक ही बेचता है। आतंक को पालना इसका शौक हो गया है। भारत के साथ ही पेरिस, न्यूयोर्क, ढाका, इंस्ताबुल, ब्रूसेल और काबुल में हुए आतंकी धमाकों जिक्र करके विदेश मंत्री ने दुनिया को बताने की कोशिश की कि पाकिस्तान सिर्फ भारत के लिए ही खतरा नहीं है, बल्कि पाकिस्तान में पैदा हो रहा आतंकवाद दुनिया को बर्बाद कर देगा।

सामने आया कैराना का सच

 अब  यह साबित हो चुका है कि उत्तरप्रदेश में कानून व्यवस्था संभालने में समाजवादी पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव असफल रहे हैं। लगभग साढ़े तीन महीने पहले उत्तर प्रदेश के कैराना में हिंदू समुदाय की पलायन की खबरें सामने आई थीं। यह पलायन चर्चा के केंद्र में लंबे समय तक रहा। इस गंभीर राष्ट्रीय मुद्दे पर तथाकथित सेकुलर जमात ने न केवल आँखें बंद कर ली थीं, बल्कि हिंदू पलायन को पूरी तरह खारिज कर दिया था। हिंदुओं के पलायन को खारिज करने के लिए इस सेकुलर जमात ने एक से बढ़कर एक कुतर्क गढ़े थे। यहाँ तक की कैराना जाकर फर्जी तथ्यों या अपवाद के आधार पर यह साबित करने का पूरा प्रयास किया कि कैराना से पलायन स्वाभाविक है। यह पलायन रोजगार और बेहतर जीवन के लिए हुआ है। मीडिया के एक धड़े ने भी इस जमात को भरपूर सहयोग दिया था। लेकिन, मानवाधिकार आयोग ने इन ढ़ोंगी सेकुलरों का मुँह नोंच लिया है। इनके झूठ को उजागर कर दिया है। मानवाधिकार आयोग ने अपनी जाँच में पाया है कि हिंदू परिवारों का पलायन सत्य है, कोई झूठ नहीं। पलायन की मुख्य वजह भी मुस्लिम समाज के दबंगों की गुंडागर्दी है। 

रविवार, 25 सितंबर 2016

राजनीति में संस्कृति के दूत थे दीनदयाल उपाध्याय

 एकात्म  मानवदर्शन के द्रष्टा पंडित दीनदयाल उपाध्याय की 100वीं जयंती 25 सितंबर को है। चूँकि दीनदयाल उपाध्याय भाजपा के राजनीतिक-वैचारिक अधिष्ठाता हैं। इसलिए भाजपा के लिए यह तारीख बहुत महत्त्वपूर्ण है। उनके विचारों और उनके दर्शन को जन सामान्य तक पहुँचाने के लिए भाजपा ने इस बार खास तैयारी की है। दीनदयाल उपाध्याय लगभग 15 वर्ष जनसंघ के महासचिव रहे। वर्ष 1967 में उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना गया। चूँकि उन्हें केरल के कालीकट (कोझीकोड) में राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया था। इसलिए दीनदयाल जन्म शताब्दी समारोह के अवसर पर 25 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केरल के कोझीकोड से विशेष उद्बोधन देंगे। देशभर में बूथ स्तर पर इस भाषण के सीधे प्रसारण के लिए भाजपा तैयारी कर रही है। प्रधानमंत्री का यह भाषण भाजपा और उसकी विचारधारा से जुड़े लोगों के बीच ही नहीं, वरन कांग्रेस और वामपंथी दलों के बीच भी चर्चा का विषय बनने वाला है। क्योंकि, अब तक कांग्रेस-वाम गठजोड़ दीनदयाल उपाध्याय जैसे महापुरुष की अनदेखी ही करता आया है। वर्तमान सरकार में महापुरुषों के साथ होने वाली भेदभाव की यह परंपरा खत्म होती दिखाई दे रही है। भारतीय राजनीति के 70 साल के इतिहास में यह पहली बार है जब महात्मा गांधी, सरदार पटेल, डॉ. भीमराव आंबेडकर, सुभाषचंद्र बोस और जवाहरलाल नेहरू के साथ-साथ पंडित दीनदयाल उपाध्याय को भी समान आदर दिया जा रहा है। यह भारतीय लोकतंत्र की खूबसूरती है कि जिस भाजपा के साथ राजनीतिक छूआछूत का व्यवहार किया गया, उसका नेतृत्व अपने ही पितृपुरुष को सबसे आखिर में याद कर रहा है।

मंगलवार, 20 सितंबर 2016

शहीदों के परिजनों की सुनो सरकार

 उड़ी  हमले से देश गमगीन है। देशभर में शहीद जवानों को श्रद्धासुमन अर्पित किए जा रहे हैं। शहीद जवान जिस गाँव/शहर/राज्य के बेटे थे, वहाँ के सभी नागरिक बंधु इस दु:ख की घड़ी में उनके परिवारों के साथ खड़े हैं। इस मुसीबत की घड़ी में परिवार के परिवार बिलख रहे हैं। शहीदों की विधवाएं, उनके बच्चे, माता-पिता, बहन-भाई सब एक ही सवाल पूछ रहे हैं कि हमारे सोते हुए सैनिकों पर हमला करने वाले कायर पाकिस्तान को जवाब कब और कैसे दिया जाएगा? यह सवाल सिर्फ शहीदों के परिजन ही नहीं पूछ रहे, बल्कि यह प्रश्न आम नागरिकों का भी है। शहीद नायक एसके विद्यार्थी की बेटी ने कहा है कि सुरक्षा बलों पर जिन लोगों ने हमला किया है, उन्हें माकूल जवाब दिया जाना चाहिए। वहीं, शहीद अशोक की पत्नी अपने पति की मौत के लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हुए वह कहती हैं कि पाकिस्तान तो कुत्ता है, उसके बारे में इससे ज्यादा क्या कहूं। शहीद जी. दलाई के पिता ने भी हमले के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की माँग की है। जबकि शहीद जवान नायमन कुजूर की पत्नी वीणा अपने पति की मौत का बदला चाहती है। वीणा ने कहा है कि ऐसा लग रहा है कि मैं खुद जाऊं और आतंकियों को गोली मार दूं। वह चाहती है कि सरकार को ठोस कदम उठाने चाहिए ताकि भविष्य में कोई भी ऐसा कृत्य करने का साहस नहीं जुटा सके।

सोमवार, 19 सितंबर 2016

प्रहार हो

 भारत  माँ के 21 लाल, जो माँ की सेवा में बलिदान हो गए, उन्हें प्रणाम। विनम्र श्रद्धांजलि। भारत सरकार से आग्रह, साहब कुछ कीजिए इस तरह की घटनाएँ भारतीय जनमानस को तकलीफ दे रही हैं। आखिर कब तक हम अपने जवानों को 'राक्षसों' का शिकार होते रहने देंगे? जम्मू-कश्मीर के उरी सेक्टर में सेना के जवानों पर आतंकी हमला हमारे लिए खुली चुनौती है। हमारे खिलाफ जंग का सीधा ऐलान। क्या हम हाथ पर हाथ धरे बैठे रहेंगे? हम जानते हैं कि पिछले दो साल में सेना के हाथ खोले गए हैं। सेना आतंकियों का मुंहतोड़ जवाब दे रही है। अनेक आतंकवादी हमलों को नाकाम किया गया है। इसलिए आतंकवादी संगठन बौखलाकर सीधे सुरक्षा जवानों को निशाना बना रहे हैं। लेकिन, यह भी सच है कि हम अब भी रक्षात्मक नीति अपना रहे हैं। इस नीति में बदलाव जरूरी है। आपको चुना भी बदलाव के लिए है। प्रतिकार करना होगा। 21 जवानों का बलिदान व्यर्थ नहीं जाना चाहिए। सरकार को आतंकवाद के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का अपना संकल्प न केवल दोहराना होगा, बल्कि उसे धरातल पर उतारना होगा। बहुत बर्दाश्त हुआ। अब आतंकवाद और उसके पोषकों पर खुलकर 'प्रहार हो'।

शनिवार, 17 सितंबर 2016

राष्ट्रवादी विचार से भयभीत कम्युनिस्ट पार्टी

 केरल  में कम्युनिस्ट पार्टी खुलकर असहिष्णुता दिखा रही है। लेकिन, असहिष्णुता की मुहिम चलाने वाले झंडाबरदार कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं। क्या उन्हें यह असहिष्णुता प्रिय है? यह तथ्य सभी के ध्यान में है कि कम्युनिस्ट विचारधारा भयंकर असहिष्णु है। यह दूसरी विचारधाराओं को स्वीकार नहीं करती है, अपितु अपनी पूरी ताकत से उन्हें कुचलने का प्रयास करती है। दुनियाभर में इसके अनेक उदाहरण हैं। भारत में केरल की स्थितियाँ भी इसकी गवाह हैं। कम्युनिस्ट विचारधारा के लाल आतंक से कौन बेखबर है? केरल को वामपंथ का गढ़ कहा जाता है। वर्तमान में यहाँ कम्युनिस्ट विचार की सरकार भी है। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी सरकार का राजनीतिक संरक्षण प्राप्त कर एक तरफ मार्क्सवादी गुंडे राष्ट्रवादी विचारधारा को मानने वाले लोगों की हत्याएँ कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर सरकार स्वयं भी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दबाने के लिए सत्ता की ताकत का दुरुपयोग कर रही है। माकपा सरकार ने मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर संघ की शाखा को प्रतिबंधित और मंदिरों की सम्पत्ति एवं प्रबंधन को अपने नियंत्रण में लेने की तैयारी की है। सरकार का यह निर्णय अपनी विरोधी विचारधारा के प्रति घोर असहिष्णुता का परिचायक है। यह लोकतंत्र और संविधान द्वारा प्रदत्त अधिकारों का भी हनन है।

मंगलवार, 13 सितंबर 2016

सोमनाथ मंदिर को सोने से सजाकर अपनी चमक बढ़ा रहे हैं नरेन्द्र मोदी

 हिंदुओं  की आस्था के प्रमुख मानबिंदु सोमनाथ मंदिर को स्वर्ण से सुसज्जित किया जा रहा है। अब तक 105 किलो सोने से मंदिर के अंदरूनी हिस्से और शिखर को सजाया जा चुका है। यह सोना एक भक्त ने दान में दिया है। सरकार ने इस काम में तेजी लाने के निर्देश दिए हैं। दरअसल, सरकार इस दीपावली तक सोमनाथ मंदिर को सोने से जगमग कर देना चाहती है। ध्यान देने वाली बात यह है कि सोमनाथ को स्वर्णमयी करने के इस महत्त्वपूर्ण कार्य पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विशेष नजर है। बीते दिनों दिल्ली में प्रधानमंत्री निवास पर नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट की बैठक हुई है। मंदिर को भव्यता प्रधान करने की इस परियोजना में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दिलचस्पी से महत्त्वपूर्ण संकेत समाज में जा रहे हैं। एक, भव्य मंदिर की सौगात देकर गुजरात के लोगों को भरोसा दिलाना चाहते हैं कि गुजरात अब भी उनकी प्राथमिकताओं में है। दो, उन्हें हिंदू हितों की चिंता है। तीन, हिंदुओं के आस्था स्थलों को प्रतिष्ठा दिलाने के अपने संकल्प पर भारतीय जनता पार्टी कायम है। इसका एक संदेश यह भी हो सकता है कि भविष्य में अवसर आने पर राममंदिर का निर्माण भी इसी भव्यता के साथ किया जाएगा। यह काम कोई और नहीं कर सकता। इसका सबूत यह है कि पिछले वर्षों में सोमनाथ मंदिर को भव्य रूप प्रदान करने की पहल किसी ने नहीं की। यदि लौहपुरुष सरदार पटेल न होते तब यह भी संभव था कि सोमनाथ मंदिर का निर्माण ही नहीं होता, क्योंकि सेकुलरवाद किसी भी सूरत में मंदिर निर्माण की इजाजत देने के लिए तैयार नहीं था।

सोमवार, 12 सितंबर 2016

अब सुशासन बाबू नहीं रहे नीतीश कुमार

 बिहार  के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कल तक 'सुशासन बाबू' के तौर पर पहचाने जाते थे, लेकिन अब उनकी यह छवि पीछे छूटने लगी है। बिहार में अब सुशासन नहीं बल्कि अपराध की बहार है। शहाबुद्दीन की वापसी ने इस बात पर मुहर लगा दी है कि बिहार में अपराध पर लगाम लगाने में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार नाकामयाब साबित हो रहे हैं। बिहार सरकार में शामिल राजद के विधायकों/मंत्रियों ने जिस तरह उसका स्वागत किया है और फूल बरसाए हैं, उससे भी जाहिर होता है कि भाजपा विरोध की राजनीति का हिस्सा बनकर नीतीश कुमार गलत जगह फंस गए हैं। बिहार सरकार के पिछले एक-डेढ़ साल के कार्यकाल से साबित होता है कि नीतीश कुमार 'सुशासन बाबू' भारतीय जनता पार्टी के कारण बन पाए थे। जदयू-भाजपा गठबंधन की सरकार के वक्त नीतीश कुमार के सुशासन को भाजपा का समर्थन था। जदयू और भाजपा दोनों का मुख्य एजेंडा विकास था। यानी सुशासन की प्रमुख हिस्सेदार भाजपा थी। लेकिन, इस बार नीतीश कुमार अपनी महत्वाकांक्षाओं (स्वयं को तीसरे मोर्चे का नेता प्रस्तुत कर प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब) के कारण भाजपा विरोध की राजनीति में शामिल हुए और भाजपा से रिश्ता तोड़कर राजद एवं कांग्रेस के साथ महागठबंधन का हिस्सा बन गए। चुनाव परिणाम महागठबंधन के पक्ष में आया, जिसमें लालू प्रसाद यादव की पार्टी राजद ने सबसे ज्यादा सीटें जीतीं। इस परिणाम से ही तय हो गया था कि नीतीश के लिए मुख्यमंत्री का ताज काँटों भरा रहेगा, जो बार-बार उन्हें पीड़ा देगा। संभव है कि यह गठबंधन पाँच साल पूरे न कर पाए। जदयू के नेता और पूर्व सांसद शहाबुद्दीन ने जेल से बाहर निकलते ही कहा भी है कि नीतीश कुमार परिस्थितियों के कारण मुख्यमंत्री हैं। नीतीश जनता के नेता (मास लीडर) भी नहीं हैं। उनके नेता सिर्फ लालू प्रसाद यादव हैं और वह लालू की राजनीति करते हैं।

शुक्रवार, 9 सितंबर 2016

खाट बिछेगी तो नहीं, खड़ी ही होगी

 कांग्रेस  उत्तरप्रदेश में अपनी सियासी जमीन हासिल करने के सारे प्रयत्न कर रही है। इसी रणनीति का हिस्सा हैं कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की 'खाट सभाएँ' और 'देवरिया से दिल्ली की यात्रा'। देवरिया से दिल्ली तक 2500 किलोमीटर की यात्रा में राहुल गांधी 39 जिलों के 55 लोकसभा क्षेत्रों और 233 विधानसभा सीटों से होकर गुजरेंगे। देवरिया जिले के रुद्रपुर के किसानों के साथ पहली खाट सभा से उन्होंने अपनी यह यात्रा प्रारंभ कर दी है। हालांकि, कांग्रेस को यह स्पष्ट समझ लेना चाहिए कि उसके लिए दिल्ली का रास्ता देवरिया होकर नहीं जाता है। दरअसल, कांग्रेस ने अपना 'होमवर्क' ठीक से नहीं किया है। उसका कारण है कि कांग्रेस उत्तरप्रदेश में अपनी स्थिति का ठीक प्रकार से मूल्यांकन नहीं कर रही है। सिर्फ 'इवेंट मैनेजमेंट' से चुनाव नहीं जीता जा सकता, वह मात्र सहायक हो सकता है और यह तभी सहायक हो सकता है, जब आपने अपनी हैसियत का मूल्यांकन करके राजनीतिक प्रबंधन कर लिया हो। यहाँ राहुल गांधी चूक रहे हैं। यही कारण है कि उत्तरप्रदेश को समझने बिना उन्होंने खाट सभा का आयोजन किया और अपनी खटिया लुटवा दी।

बुधवार, 7 सितंबर 2016

आजम खान ने किया बाबा साहेब का अपमान

 उत्तरप्रदेश  सरकार के मंत्री और मुस्लिम नेता आजम खान ने साबित कर दिया है कि उन्हें मर्यादा में रहना आता नहीं। इस बार उन्होंने अपनी बदजुबान से डॉ. भीमराव आंबेडकर का अपमान किया है। संभवत: यह उनके शिक्षण और प्रशिक्षण का दोष है कि उन्होंने एक बार फिर अपनी दूषित मानसिकता को जाहिर कर दिया। आजम खान ने भारतरत्न डॉ. भीमराव आंबेडकर का नाम सड़कछाप भाषा में उच्चारित किया और उनकी प्रतिमा का मजाक उड़ाते हुए अपमानजनक टिप्पणी की। गाजियाबाद में हज हाउस के उद्घाटन कार्यक्रम में आजम खान ने डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा की ओर इशारा करते हुए कहा - इस 'आदमी' के हाथ का इशारा कहता है कि जहां मैं खड़ा हूं वह तो मेरी जमीन है ही, सामने का खाली पड़ा प्लॉट भी मेरा है। आजम खान समाजवादी पार्टी के बड़े नेता हैं। पार्टी उनके सहारे मुसलमानों के वोट कबाड़ती है। यही कारण है कि जब यह आदमी देश के महापुरुष डॉ. आंबेडकर के लिए घटियाभाषा का इस्तेमाल कर उनका उपहास उड़ा रहा था, तब वहाँ बैठे उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खामोश रहते हैं। उन्होंने अपने मंत्री और सपा नेता की इस घटिया चुटकुलेबाजी का प्रतिरोध नहीं किया। बल्कि मुख्यमंत्री स्वयं भी अतार्किक बातें करने में शामिल हो गए। उत्तरप्रदेश की सुरक्षा व्यवस्था पर जब सवाल उठ रहे हैं तब अखिलेश यादव पुलिस व्यवस्था की तारीफ करते हुए कहते हैं उसी मंच से कहते हैं कि उत्तरप्रदेश पुलिस ने आजम खान की भैंस खोजी और आगरा में भाजपा नेता का कुत्ता भी ढूंढ़ लाए हैं। मुख्यमंत्री का यह बयान उनकी असंवेदनशीलता का द्योतक है, जिन्हें न तो देश के महापुरुष के अपमान से फर्क पड़ा और न ही वह राज्य में पनप रहे 'गुंडाराज' से चिंतित दिखाई दिए। मुख्यमंत्री की चुप्पी उनके मंत्री द्वारा डॉ. आंबेडकर के बारे में की गई अपमानजनक टिप्पणी पर स्वीकृति की मुहर लगाती है।

मंगलवार, 6 सितंबर 2016

अलगाववादियों से बात क्यों?

 केंद्र  सरकार ने जम्मू-कश्मीर में शांति बहाली के लिए राजनीतिक पहल शुरू की। इसके तहत एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल जम्मू-कश्मीर में बातचीत के लिए भेजा गया। इस दल में सभी विचारधारा के लोग शामिल थे। प्रतिनिधिमंडल ने करीब 300 लोगों से मुलाकात की है। इनमें सिविल सोसायटी, राजनीतिक दल, यूनिवर्सिटी के शिक्षक, कुलपति, फल उत्पादक, छात्र और बुद्धिजीवी शामिल थे। सरकार ने बड़ा दिल दिखाते हुए अलगाववादियों से भी बात करने की इच्छा जताई। जैसा कि तय है कि अलगाववादियों को जम्मू-कश्मीर की शांति व्यवस्था में कोई दिलचस्पी नहीं है, क्योंकि उन्होंने तो स्वयं ही वहाँ हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने की सुपारी ले रखी है। इसलिए जब प्रतिनिधिमंडल अलगाववादियों से बातचीत करने के लिए पहुँचा तब उसे निराशा ही हाथ नहीं लगी, बल्कि अपमानजनक स्थितियों का सामना भी करना पड़ा। अलगाववादियों ने न केवल हद दर्जे की असहिष्णुता का प्रदर्शन किया बल्कि अपनी नीयत भी दिखा दी। हालांकि यह सरकार की भूल है, जो उसने आतंकी विचारधारा को प्रश्रय देने वाले अलगाववादियों से बातचीत करने की पहली की। चोरी रोकने के लिए भला चोरों से क्या बात करना? भारत के प्रमुख राजनीतिक दलों के नेताओं का स्वागत अलगाववादियों ने जिस तरह किया, उससे जाहिर होता है कि यह कभी नहीं सुधरेंगे।

सोमवार, 5 सितंबर 2016

डिजिटल इंडिया : जीवन होगा सुगम

यह आलेख मीडिया विमर्श के सितंबर-2016 के अंक में प्रकाशित हुआ है।

नरेन्द्र मोदी सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना है, डिजिटल इंडिया। इस परियोजना का मूल उद्देश्य है 'भारत को डिजिटली सशक्त समाज और ज्ञान अर्थव्यवस्था के रूप में परिवर्तित करना।' डिजिटल इंडिया के जरिए सरकार पारदर्शी व्यवस्था कायम करना चाहती है। यानी सुशासन। सरकार के लिए यह सिर्फ नारा नहीं है, बल्कि लोगों के जीवन को सुगम बनाने का दृढ़ संकल्प है। यह इसलिए कहा जा सकता है, क्योंकि सरकार ने इस लोक कल्याणकारी उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक चरणबद्ध योजना भी तैयार की है। 21 अगस्त, 2014 से प्रारंभ हुए इस कार्यक्रम को केंद्र सरकार ने अगले पाँच वर्ष में पूरा करने की योजना बनाई है। यह उम्मीद की जा रही है कि डिजिटल इंडिया कार्यक्रम 2019 तक गाँवों समेत देशभर में पूरी तरह से लागू हो जाएगा। सरकार इस दिशा में प्रभावी ढंग से कदम बढ़ा रही है। अनेक मोर्चों पर सरकार सफल भी हुई है। फिर भी कहना होगा कि मंजिल अभी दूर है। दरअसल, गाँव में बसने वाले भारत के प्रत्येक क्षेत्र में अभी इंटरनेट ही नहीं पहुँचा है। जहाँ पहुँचा भी है, वहाँ इंटरनेट की गति (डाउनलोड-अपलोड स्पीड) ही इतनी धीमी है कि उपयोगकर्ता उदासीन हो जाता है।

गुरुवार, 1 सितंबर 2016

समय के साथ कदमताल करता संघ

 राष्ट्रीय  स्वयंसेवक संघ प्रतिवर्ष दशहरे पर पथ संचलन (परेड) निकालता है। संचलन में हजारों स्वयंसेवक एक साथ कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ते जाते हैं। संचलन में सब कदम मिलाकर चल सकें, इसके लिए संघ स्थान (जहाँ शाखा लगती है) पर स्वयंसेवकों को 'कदमताल' का अभ्यास कराया जाता है। स्वयंसेवकों के लिए इस कदमताल का संदेश है कि हमें सबके साथ चलना है और सबको साथ लेकर चलना है। संघ की गणवेश में बदलाव का मूल भाव भी 'सबको साथ लाने के लिए समयानुकूल परिर्वतन' है। हालांकि, विरोधियों ने इसमें भी संघ निंदा का प्रसंग खोज लिया। आलोचक कह रहे हैं कि संघ ने 90 साल बाद 'चोला' बदल लिया। संघ के ज्यादातर आलोचक विटामिन 'ए' की कमी से होने वाले रोग 'रतौंधी' का शिकार हैं। इस रोग से पीडि़त व्यक्ति को रात में कम दिखाई देता है, लेकिन इन आलोचकों को दिन में भी आरएसएस समझ नहीं आता है। इसलिए वे संघ की प्रत्येक गतिविधि पर परिहास करते हैं। इनकी उलाहनाओं और छींटाकसी के बीच भी संघ अपनी मौज में जमाने के साथ आगे बढ़ता चला जा रहा है। संघ की गणवेश में 'नेकर' की जगह 'पैंट' समयानुकूल परिवर्तन है। हमें याद करना चाहिए कि अप्रैल-2016 में नागौर (राजस्थान) में हुई प्रतिनिधि सभा की बैठक के दौरान सरकार्यवाह सुरेश भैयाजी जोशी ने कहा था कि संघ वक्त के साथ चलने वाला संगठन है। भविष्य में भी हम वक्त के साथ बदलते रहेंगे। इससे पूर्व सह सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबोले ने कहा था कि संघ कोई रूढि़वादी संगठन नहीं है। समय के अनुकूल हर चीज बदलती है। जो अपने अन्दर बदलाव नहीं करता है, वह समाप्त हो जाता है। संघ के शीर्ष पदाधिकारियों के इन बयानों से स्पष्ट है कि समाज के साथ चलने के लिए संघ ने गणवेश में परिवर्तन को स्वीकार किया है। यह परिवर्तन आगामी विजयादशमी के पर्व पर निकलने वाले 'पथ संचलन' में दिखाई देगा।

बुधवार, 31 अगस्त 2016

अब सिंधुस्थान की माँग

 भारत  के एक दाँव ने पाकिस्तान को चित कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गिलगित, बलूचिस्तान और पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर का मामला दुनिया के सामने लाकर न केवल पाकिस्तान को आईना दिखाया है बल्कि पाकिस्तान के अत्याचार से पीडि़त जनमानस को साहस दिया है। पाकिस्तान के कट्टरपंथी चरित्र से संघर्ष कर रहे लोगों में नया जोश आ गया है। ये लोग जहाँ हैं, वहीं से पाकिस्तान के दमनकारी चेहरे को विश्व के सामने ला रहे हैं। पड़ोसी देशों के आंतरिक मामलों में दखल देने वाले पाकिस्तान का पहली बार हकीकत से सामना हुआ है। भारत की जमीन पर कब्जा करने वाले और उसके टुकड़े करने का ख्वाब देखने वाले पाकिस्तान को अब अपनी ही जमीन बचाने के लाले पड़ रहे हैं। गिलगित, बलूचिस्तान और पाक अधिक्रांत जम्मू-कश्मीर के नागरिक पाकिस्तान से आजादी की माँग कर ही रहे थे, अब सिंध प्रांत के लोगों ने भी अगल देश की माँग शुरू कर दी है। सिंध के मीरपुर खास में सोमवार को सड़कों पर उतरकर अनेक लोगों ने आजादी के नारे लगाते हुए सिंधुदेश की माँग की है। अमेरिका, लंदन से लेकर जर्मनी तक गिलगित, बलूचिस्तान, पीओके और सिंध की आजादी को लेकर प्रदर्शन होने शुरू हो गए हैं।

मंगलवार, 30 अगस्त 2016

मुलायम के बोल-वचन और वोट बैंक की राजनीति

 उत्तर  प्रदेश के चुनाव सिर पर आ गए हैं। इस बार समाजवादी पार्टी की नैया भंवर में दिखाई पड़ रही है। यही कारण है कि समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव को 'मुस्लिम प्रेम' नजर आने लगा है। वह किसी भी प्रकार अपने वोटबैंक को खिसकने नहीं देना चाहते हैं। मुसलमानों को रिझाने के लिए उन्होंने फिर से 'बाबरी राग' अलापा है। मुलायम सिंह यादव ने अपने जीवन पर लिखी किताब 'बढ़ते साहसिक कदम' के विमोचन अवसर पर अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने के अपने फैसले को साहसिक बताया है। उनका कहना है कि देश की एकता को बचाने के लिए कारसेवकों पर गोली चलाने का उनका फैसला सही था। गोली नहीं चलती तो मुसलमानों का भरोसा उठ जाता। देश की एकता बचाने के लिए 16 की जगह 30 जान भी लेनी पड़ती तो ले लेता। गौरतलब है कि जनवरी, 2016 में भी मुलायम सिंह यादव ने कारसेवकों पर गोली चलाने के अपने फैसले को सही ठहराया था।

शनिवार, 27 अगस्त 2016

राहुल गांधी तय कीजिए, संघ ने गांधीजी की हत्या की या नहीं

 महात्मा  गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को जिम्मेदार ठहराने के अपने बयान पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी अपनी स्थिति तय नहीं कर पा रहे हैं। एक तरफ, सुप्रीम कोर्ट में दायर अपने हलफनामे में राहुल गांधी ने दावा किया है कि उन्होंने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की हत्या के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को एक संगठन के तौर पर कभी भी जिम्मेदार नहीं बताया है। उन्होंने संघ से जुड़े कुछ लोगों पर महात्मा गांधी की हत्या करने का आरोप लगाया था। वहीं दूसरी तरफ, न्यायालय के बाहर वह गर्जन-तर्जन कर रहे हैं कि संघ को लेकर दिए बयान पर वह कायम हैं और संघ की विचारधारा के खिलाफ उनकी लड़ाई जारी रहेगी। राहुल गांधी को समझना चाहिए कि विचारधारा की लड़ाई लडऩा अच्छा माना जा सकता है लेकिन गलत तथ्यों के आधार पर एक सम्मानित संगठन को बदनाम करना कतई उचित नहीं है। इसे राजनीतिक अपरिपक्वता ही कहा जाएगा कि पारदर्शिता के इस जमाने में वह न्यायालय में कुछ हलफनामा पेश करते हैं और न्यायालय से बाहर कुछ और बयानबाजी करते हैं। जनता उस व्यक्ति को संदेह की दृष्टि से देखती है, जिसकी कथनी में बार-बार अंतर दिखाई देता है। राहुल गांधी यदि यह सोच रहे हैं कि जनता को भ्रमित किया जा सकता है, तब वह बहुत बड़ी गलतफहमी का शिकार हैं। संघ के लोग भी संचार माध्यमों का उपयोग करने लगे हैं, इसलिए संघ के खिलाफ किसी झूठ को गढऩा अब पहले की तरह आसान नहीं है। सुप्रीम कोर्ट में दिए माफीनामे जैसा हलफनामा प्रस्तुत करते समय राहुल गांधी को इस बात का अंदाजा नहीं रहा होगा कि समूचे देश तत्काल उनके 'यू-टर्न' की खबर फैल जाएगी। इस 'यू-टर्न' को लेकर बने माहौल ने ही उन्हें फिर से संघ के खिलाफ बोलने के लिए मजबूर कर दिया। लेकिन, यहाँ भी राहुल गांधी गलत हैं। न जाने उन्हें क्यों लगता है कि उनका राजनीतिक करियर संघ को गरियाने से ही आगे बढ़ सकता है। न जाने क्यों उन्हें यह समझ नहीं आ रहा कि देश उनसे गंभीर राजनीति की अपेक्षा करता है, लेकिन वह प्रत्येक अवसर पर सबको निराश कर देते हैं।

शनिवार, 20 अगस्त 2016

बोफोर्स का सच इसलिए है दफ़न

 बोफोर्स  घोटाले का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर निकल आया है। देश के वरिष्ठ राजनेता और समाजवादी पार्टी के प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने बोफोर्स घोटाले के मामले में एक बेहद चौंकाने वाला खुलासा किया है। उनके बयान को आपराधिक स्वीकारोक्ति कहना अधिक उचित होगा। बुधवार को लखनऊ के राममनोहर लोहिया विधि विश्वविद्यालय के स्थापना दिवस समारोह में उन्होंने कहा कि 'जब मैंने बोफोर्स तोप को देखा तो पाया कि वह ठीक से काम कर रही है। उस वक्त मेरे मन में पहला विचार यह आया कि राजीव गांधी ने बढिय़ा काम किया है, इसलिए मैंने उससे जुड़ी फाइलों को गायब कर दिया। लोगों का ऐसा मानना है कि बोफोर्स सौदा राजीव गांधी की गलती थी, लेकिन रक्षा मंत्री के तौर पर मैंने देखा कि यह सही सौदा था और राजीव ने अच्छा काम किया।' मुलायम सिंह यादव की इस स्वीकारोक्ति ने देश को बता दिया है कि देश में किस तरह बड़े घोटालों का सच छिपाया जाता है। जाँच को कैसे भटकाया जाता है। सबूत किस तरह नष्ट किए जाते हैं। हमारे जिम्मेदार राजनेता ही जब फाइलें गायब करा देते हैं, तब जाँच में क्या खाक साबित होगा? उल्लेखनीय है कि मुलायम सिंह यादव वर्ष 1996 से 98 के दौरान जब रक्षा मंत्री थे, तब राजीव गांधी के प्रधानमंत्रित्व काल में स्वीडन की एबी बोफोर्स कंपनी से 400 हॉविट्जर तोपों की खरीद में कथित घोटाले का मुकदमा अदालत में चल रहा था। केंद्रीय जाँच ब्यूरो वर्ष 1990 से ही इस मामले की जाँच कर रहा था, लेकिन ब्यूरो कोई ठोस सबूत नहीं जुटा सका। भला सबूत मिलते भी कैसे, स्वयं रक्षामंत्री ने फाइलें गायब करा दी थीं।

रविवार, 14 अगस्त 2016

लोकेन्द्र पाराशर के कंधों पर भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी की जिम्मेदारी : उनका संक्षिप्त परिचय

 सहजता,  सरलता, सादगी और बेबाकी इन सबको मिला दिया जाए तो एक बेहद उम्दा इंसान आपके सामने होगा। लोकेन्द्र पाराशर। जो उनके भीतर है, वह ही बाहर भी। कथनी-करनी में किंचित भी अंतर नहीं। खरा-खरा कहना, चाहे किसी को बुरा लगे या भला। आपसे मित्रवत मिलेंगे और हर संभव आपकी मदद करने को हर पल तैयार। समाजकंटकों के लिए अपनी लेखनी की आग और समाजचिंतकों के लिए अपनी आंखों के पानी के लिए वे देशभर में ख्यात हैं। वे लम्बे समय तक पत्रकारिता की पाठशाला कहे जाने वाले दैनिक स्वदेश (ग्वालियर) के संपादक रहे हैं। उनका चिंतन राष्ट्रवादी है। वे समाज और देशहित से जुड़े मुद्दों पर गहरी पकड़ रखते हैं। ग्रामवासी होने के कारण भारत को औरों की अपेक्षा कहीं अधिक नजदीक से देखते और समझते हैं। उनका चिंतन, उनकी सोच और उनके विचार उनके लेखन में झलकता है।

गुरुवार, 11 अगस्त 2016

शोभा डे की अशोभनीय टिप्पणी

 रियो  ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे खिलाडिय़ों के संबंध में विवादित लेखिका शोभा डे ने ट्वीटर पर अशोभनीय टिप्पणी करके अपनी ओछी मानसिकता का प्रदर्शन किया है। भारतीय दल के शुरुआती प्रदर्शन पर उन्होंने लिखा कि 'ओलंपिक में भारतीय खिलाडिय़ों के लक्ष्य हैं- रियो जाओ, सेल्फी लो, खाली हाथ वापस आओ, पैसे और मौकों की बरबादी।' जिस वक्त समूचा देश रियो में भारत के बेहतर प्रदर्शन के लिए प्रार्थना कर रहा है, तब इन महोदया के दिमाग में इस घटिया विचार का जन्म होता है। शोभा डे की इस बेहूदगी की सब ओर से निंदा की गई। यहाँ तक कि ओलंपिक में हिस्सा ले रहे खिलाड़ी भी आहत होकर खुद को शोभा डे के विरोध में टिप्पणी करने से नहीं रोक सके। निशानेबाज अभिनव बिंद्रा ने नसीहत देते हुए कहा कि शोभा डे यह थोड़ा अनुचित है। आपको अपने खिलाडिय़ों पर गर्व होना चाहिए, जो पूरी दुनिया के सामने मानवीय श्रेष्ठता हासिल करने का प्रयास कर रहे हैं। पूर्व हॉकी कप्तान वीरेन रसकिन्हा ने सही ही कहा कि हॉकी के मैदान में 60 मिनट तक दौड़कर देखिए, अभिनव और गगन की राइफल ही उठाकर देख लीजिए, आपको समझ आ जाएगा कि आप जैसा सोचती हैं, यह काम उससे कहीं अधिक कठिन है। कुछ मिलाकर सब जगह शोभा डे की भद्द पिट रही है।

बुधवार, 10 अगस्त 2016

जरा याद करो कुर्बानी

 आजादी  की 70वीं सालगिरह से ठीक पहले महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद की जन्मभूमि भाबरा में 'आजादी 70 साल, याद करो कुर्बानी' अभियान की शुरुआत करने का प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का निर्णय सराहनीय है। प्रधानमंत्री मोदी ने मध्यप्रदेश के अलीराजपुर स्थित चंद्रशेखर आजाद स्मारक जाकर उन्हें याद किया और देशवासियों से आह्वान किया कि आजादी के 70 साल और भारत छोड़ो आंदोलन के 75 साल पूरे होने के मौके पर हमारा कर्तव्य बनता है कि हम स्वतंत्रता संग्राम में शामिल होने वाले लोगों को याद करें। हम उन लक्ष्यों को पाने की कोशिश करें, जिन्हें पाने का सपना लेकर आजादी के नायकों ने अपना जीवन कुर्बान किया। कहने को हम कह सकते हैं कि हम स्वतंत्रता सेनानियों को भूले कब हैं, जो याद करें। लेकिन, कलेजे पर हाथ रखकर खुद से पूछिए कि सवा सौ करोड़ भारतवासियों में से कितनों को स्वतंत्रता सेनानियों का बलिदान याद है। कितने लोग हैं, जो कम से कम दस बलिदानियों के नाम भी बता पाएंगे? उससे भी जरूरी सवाल यह है कि स्वतंत्रता सेनानियों ने किस बात के लिए अपने प्राणों की आहूति दी?

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

गोरक्षकों की प्रतिष्ठा का प्रश्न

 गोरक्षा  की आड़ में निंदनीय घटनाओं को अंजाम दे रहे तथाकथित गोरक्षकों के संबंध में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की टिप्पणी के गहरे निहितार्थ हैं। उतावलेपन से प्रधानमंत्री के बयान की गंभीरता को समझना मुश्किल होगा। प्रधानमंत्री के बयान के महत्त्व को समझने के लिए गंभीरता, धैर्य और वास्तविकता को स्वीकार करने का सामथ्र्य चाहिए। प्रधानमंत्री ने दो टूक कहा है कि इन दिनों कई लोगों ने गोरक्षा के नाम पर दुकानें खोल रखी हैं। दिन में यह लोग गोरक्षक का चोला पहन लेते हैं और रात में गोरखधंधा करते हैं। उन्होंने कहा कि यदि इन तथाकथित गोरक्षकों का डोजियर तैयार किया जाए, तब इनमें से तकरीबन 80 प्रतिशत असामाजिक तत्त्व निकलेंगे। प्रधानमंत्री की इस टिप्पणी पर कुछ हिंदूवादी संगठन गुस्से में हैं। उन्होंने इस बयान की निंदा की है। उनका कहना है कि प्रधानमंत्री ने गोरक्षकों को बदनाम किया है। लेकिन, क्या इन संगठनों ने एक बार भी सोचा है कि जिस तरह से पिछले कुछ समय में देशभर में गोरक्षा के नाम पर हत्या, मारपीट, धमकाने और धन वसूलने के मामले सामने आए हैं, उनसे गोरक्षकों का कितना मान बढ़ा है? गोरक्षा के नाम पर आपराधिक गतिविधियों को अंजाम देने वाले इन लोगों ने वास्तविक गोरक्षकों की प्रतिष्ठा को गहरा आघात पहुँचाया है। पूरी ईमानदारी से गो-सेवा में शामिल भोले-भाले लोगों को भी समाज में संदिग्ध निगाह से देखा जाने लगा है। हिंदू संगठनों को यह भी समझना चाहिए कि तथाकथित गोरक्षकों की इन हरकतों से उनकी स्वयं की प्रतिष्ठा भी धूमिल हो रही है। सच्चे गोरक्षकों की प्रतिष्ठा बचाए रखने के लिए इन नकली गोरक्षकों को बेनकाब किया जाना जरूरी है। प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि सच्चे गोरक्षकों को इन नकली गोरक्षकों से सजग रहना चाहिए। वरना, मुट्ठीभर गंदे लोग आपको बदनाम कर देंगे।