शनिवार, 7 नवंबर 2015

राजनीति की दिशा तय करने का वक्त

 'म दर ऑफ इलेक्शन' माने गए बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे रविवार को आने हैं। परिणाम का दिन नजदीक आते-आते अमूमन यह स्थिति स्पष्ट हो जाती है कि जीत का ताज किससे सिर पर सजेगा। लेकिन, बिहार चुनाव इसका अपवाद दिख रहा है। यह कहना मुश्किल हो रहा है कि बिहार में भाजपानीत एनडीए की सरकार बनेगी या फिर महागठबंधन को बहुमत मिलेगा? शुरुआत से ही मुकाबला कांटे का रहा है। दोनों और से यथासंभव ताकत झौंकी गई है। किसी ने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी है। एक तरफ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की लोकप्रियता दांव पर है तो दूसरी ओर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का राजनीतिक भविष्य। चुनाव परिणाम को दोनों की लोकप्रियता से जोड़कर देखा जाएगा।
       भाजपा जीती तो नरेन्द्र मोदी को और ताकत मिलेगी। यदि भाजपा हारी तो मीडिया सहित विरोधी भी यह माहौल बनाने की कोशिश करेंगे कि मोदी की लोकप्रियता खत्म होने लगी है। भाजपा की हार के लिए 'कथित असहिष्णु वातावरण' को भी जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। वहीं, यदि महागठबंधन हारता है तो लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस से हाथ मिलाने के लिए नीतीश कुमार से सवाल पूछे जाएंगे। यह हार नीतीश की भविष्य की राजनीति की दिशा भी तय करेगी। 
       बहरहाल, रविवार को जो भी परिणाम आएगा, उसका सम्मान किया जाना चाहिए। बिहार चुनाव से हमें बहुत कुछ सीखना भी चाहिए। यह भारत की राजनीति के बेहतर भविष्य के लिए जरूरी है। विकास के मुद्दे पर चुनाव प्रचार शुरू हुआ लेकिन जल्द ही जाति, धर्म और गाय पर आकर मामला अटक गया। हमें सोचना चाहिए कि आखिर हमारी राजनीतिक अप्रोच क्या है? भारतीय राजनीति में ये ही मूल मुद्दे हैं क्या? जातिबंधन तोडऩे के लिए हम तैयार क्यों नहीं है? विकास की बात से भटक कर हम बार-बार सांप्रदायिकता की ओर क्यों आ जाते हैं? बिहार चुनाव में जनता ने नेताओं की बदजुबानी भी देखी। समाज का नेतृत्व करने वाले नेताओं को संभलकर नहीं बोलना चाहिए क्या? उनके भाषणों से जनता क्या सीखे? एक-दूसरे के खिलाफ अपशब्दों का प्रयोग करना कितना उचित है? भारतीय राजनीति की यह दिशा ठीक नहीं है। 
       यदि राजनीति इसी दिशा में आगे बढ़ती है तब कोई भी राजनीतिक दल जीते-हारे, जनता और लोकतंत्र हमेशा हारेंगे। देश के राजनीतिज्ञों, बुद्धिजीवियों और समाजसेवियों को मिलकर विचार करना चाहिए कि राजनीति को ठीक करने के लिए क्या किया जाए? क्यों न जुमलों को छोड़कर मसलों पर बात हो? क्यों न जाति तोड़कर समरस समाज की चिंता की जाए? क्यों न सांप्रदायिकता को राजनीति में घसीटना बंद किया जाए? चूंकि बिहार के चुनाव मदर ऑफ इलेक्शन हैं, इसलिए भारतीय राजनीति को यहां से सार्थक दिशा मिलनी ही चाहिए। 

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