शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

नाटक नहीं, संवाद का प्रयास कीजिए

 क थित बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में साहित्यकारों की सम्मान वापसी की मुहिम में अब कलाकार, इतिहासकार और वैज्ञानिक भी शामिल हो गए हैं। पद्म भूषण सम्मान लौटाने की घोषणा करने वाले वैज्ञानिक पुष्पमित्र भार्गव ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर आरोप लगाया है कि वे भारत को हिन्दू धार्मिक तानाशाह बनाना चाहते हैं। यह बात अलग है कि उनके पास ऐसी कोई दलील नहीं है, जिससे वह अपने आरोप को साबित कर सकें। उन्होंने भी साहित्यकारों के रटे-रटाए आरोपों को ही दोहराया है। प्रधानमंत्री की चुप्पी पर सवाल उठाने वाले साहित्यकारों, इतिहासकारों, कलाकारों और वैज्ञानिकों ने सरकार से संवाद करने के लिए कितने प्रयास किए हैं? या सिर्फ अपनी भैंस हांके जा रहे हैं? वामपंथियों का मूल चरित्र है-'आरोप लगाओ और भाग खड़े हो।' साहित्य अकादमी अवार्ड लौटाने वाले अशोक वाजपेयी खुद भी स्वीकारते हैं कि विरोध में 'नाटक' लाने के लिए विरोध का यह तरीका चुना है।

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव क्यों?

 सु प्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ की आड़ में मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर चिंता जताई है। मुस्लिम महिलाओं की दशा सुधारने और उन्हें अन्य धर्म की महिलाओं के समान अधिकार दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पर्सनल लॉ की समीक्षा करने का फैसला किया है। महिला सशक्तिकरण, नारी सम्मान और समानता की दिशा में सुप्रीम कोर्ट की इस पहल का स्वागत होना चाहिए। चूंकि मामला कथित अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़ा है, इसलिए राजनीति से यह अपेक्षा बेमानी है कि वे मुस्लिम महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाने के लिए कोई पहल करते। लेकिन, उनसे आग्रह है कि इस मसले पर 'अल्पसंख्यक हितों पर कुठाराघात' का वितंडावाद खड़ा न करें। सुप्रीम कोर्ट का साथ देकर महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिलाएं।

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

पाकिस्तान ने माना, उसने फैलाया है आतंकवाद

 पा किस्तान आतंकवाद का पालन-पोषण करता रहा है, यह बात वहां के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व सेना जनरल परवेज मुशर्रफ ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार कर ली है। मुशर्रफ ने पाकिस्तानी चैनल 'दुनिया टीवी' को दिए साक्षात्कार में माना कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद को खड़ा करने और उसे बढ़ावा देने के लिए आतंकवादियों को पैसा और प्रशिक्षण देता रहा है। पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान द्वारा फैलाए आतंकवाद से भारत लम्बे समय से पीडि़त है। भारत बरसों से कहता आ रहा है कि पाकिस्तान भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया में भी आतंकवाद को पैर पसारने में मदद करता रहा है। लेकिन, यह सब जानकार भी अमरीका और चीन जैसे देश पाकिस्तान को आर्थिक मदद करते रहे। दूसरे देशों से प्राप्त आर्थिक मदद का उपयोग पाकिस्तान ने अपनी आवाम की बेहतरी के लिए नहीं किया बल्कि आतंकवाद को पालने के लिए किया।

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

कौन हैं गोमांस के लिए भूखे बैठे लोग?


'मैंने गाय का मांस खाया है। हिन्दुओ आओ मेरी हत्या कर दो।' 
'मैं गाय काट रहा हूं। तुम मेरा क्या बिगाड़ लोगे?'
'मैं तो बड़े मजे से गोमांस खाता हूं।' 
'हिन्दुओं के लिए होगी गाय माता, मेरे लिए तो एक पशु से अधिक कुछ नहीं।' 
'वैदिक काल में ऋषि-मुनि खाते थे गोमांस।' 
'मैं बीफ फेस्टीवल मना रहा हूं, मेरा कोई क्या बिगाड़ सकता है?' 
आपको नहीं लगता ये बयान जानबूझकर हिन्दुओं को चिढ़ाने के लिए दिए गए हैं। हिन्दुओं की भावनाओं का मजाक बनाकर कोई आखिर क्या हासिल करना चाहता है? ये बयान सांप्रदायिक सौहार्द बनाने वाले हैं या बिगाडऩे वाले? दरअसल, इस समय गाय के बहाने सब अपना लक्ष्य भेदने का प्रयास कर रहे हैं। लक्ष्य भाँति-भाँति के हैं, राजनीतिक, सांप्रदायिक और वैचारिक।

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

'बौद्धिक आतंकवाद' का विरोध

 के न्द्र सरकार का विरोध करने के लिए सम्मान वापसी का अभियान चलाने वाले साहित्यकारों के खिलाफ भी विरोध तेज होता जा रहा है। यह शुभ है या अशुभ, अभी कहा नहीं जा सकता। लेकिन, इतना तो है कि साहित्यकारों की असलियत जनता के सामने आने लगी है। चरित्र अभिनेता अनुपम खैर ने दशहरे के दिन ट्वीट किया था- 'अब वक्त आ गया है कि नकली धर्मनिरपेक्ष पाखंडियों का पर्दाफाश किया जाए। इनके कारण से हमारी एकता खतरे में आ गई है।' यह सही बात है। सांप्रदायिकता पर चयनित दृष्टिकोण ठीक नहीं है। इसी दौरान और भी सांप्रदायिक घटनाएं हुई हैं, उन पर ये साहित्कार चुप क्यों रहे? सांप्रदायिक घटनाओं में मारे गए हिन्दुओं के प्रति किसी प्रकार की सहानुभूति का न होना, जाहिर करता है कि सम्मान लौटाने की राजनीति कर रहे साहित्यकारों की धर्मनिरपेक्षता पाखंड है। उनका असल मकसद साहित्य को आधार बनाकर राजनीति करना है।

शुक्रवार, 23 अक्तूबर 2015

देश की एकता सर्वोपरि

 इ स दशहरे पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने अपने नब्बे वर्ष पूर्ण कर लिए हैं। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने १९२५ में संघ का बीज बोया था, आज वह वटवृक्ष बन गया है। सम्पूर्ण समाज में संघ की शाखाएं व्याप्त हो चुकी हैं। यह संघ की उपलब्धि है कि इतने लम्बे कार्यकाल में उसने खुद को मजबूत ही किया है, वरना ज्यादातर संगठन इतने लम्बे समय के बाद अपना अस्तित्व खो देते हैं। संघ आज भी बढ़ रहा है तो उसके पीछे संघ की कार्यपद्धति महत्वपूर्ण है। वह व्यक्ति केन्द्रित न होकर संगठन पर आधारित है। संघ के कार्यकर्ता प्रतिवर्ष विजयादशमी के अवसर पर सरसंघचालक से पाथेय प्राप्त करते हैं। नागपुर में संघ के मुख्यालय में विजयादशमी पर्व पर होने वाले सरसंघचालक के उद्बोधन की प्रतीक्षा संघ के स्वयंसेवकों के साथ-साथ समाज, राजनीति और मीडिया को भी रहती है। इस दशहरे पर संघ के वर्तमान सरसंघचालक मोहन भागवत ने देश की एकता के लिए छोटी-छोटी घटनाओं को बेवजह तूल नहीं देने का आग्रह किया है।

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

किसानों के साथ शिवराज

 शि वराज सिंह चौहान ने 29 नवम्बर, 2005 को पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। सप्ताहभर बाद उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के 10 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान की छवि सहज, सुलभ और सरल व्यक्तित्व के मुख्यमंत्री की है। अपने व्यवहार से वे इस बात को साबित भी करते रहते हैं। भारतीय जनता पार्टी अपने लोकप्रिय मुख्यमंत्री के दस वर्ष पूरे होने पर बड़ा जश्न मनाने की तैयारी कर रही थी। लेकिन, किसानों की पीड़ा और उनके संकट को देखते हुए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के कहने पर यह पूरा कार्यक्रम निरस्त कर दिया गया है। शिवराज एक किसान के बेटे हैं, इसलिए किसानों के दर्द को समझ पाए हैं। सोचिए, यदि सूखे की मार झेल रहे किसानों की अनदेखी करते हुए सरकार जश्न मना रही होती तो क्या होता? मुख्यमंत्री की दस साल की कमाई एक झटके में चली जाती। सब उन्हें कठघरे में खड़ा करते? शिवराज सिंह चौहान पर सीधा आरोप लगता कि यह कैसा किसान का बेटा है, जिसे किसानों की पीड़ा दिखाई नहीं दे रही।

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

आखिर सोनिया ने बेटी प्रियंका को पीछे क्यों धकेला?

 गां धी परिवार के करीबी और वरिष्ठ कांग्रेस नेता माखनलाल पोतदार के खुलासे से कांग्रेस में गांधी परिवार के 'राजनीतिक उत्तराधिकारी' की बहस को फिर से हवा मिल सकती है। पोतदार ने दावा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी अपने राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर प्रियंका गांधी को देखना चाहती थीं। वे उसकी राजनीतिक समझ की कायल थीं। इंदिरा गांधी का मानना था कि प्रियंका में नेतृत्व के गुण हैं, वह आगे चलकर एक महान नेता के तौर पर पहचानी जा सकती है। वाकया 1984 का है। इंदिरा गांधी जम्मू-कश्मीर में थीं। वहां वह मंदिर और मस्जिद, दोनों जगह गईं। मंदिर दर्शन के बाद उन्हें आभास हुआ कि उनका जीवन जल्द समाप्त होने वाला था। तब विचारमग्न इंदिरा गांधी ने पोतदार से कहा कि प्रियंका गांधी को राजनीति में आना चाहिए। इंदिरा गांधी अपनी पोती प्रियंका में खुद को देखती थीं। पोतदार ने इस बारे में अपनी किताब 'चिनार लीव्स' में विस्तार से लिखा है। उनकी किताब जल्द ही आने वाली है।

सोमवार, 19 अक्तूबर 2015

'साहित्यकारों' की राजनीति : सांप्रदायिक सहिष्णुता से इनका कोई लेना-देना नहीं

 अं ग्रेजी लेखिका नयनतारा सहगल और हिन्दी कवि अशोक वाजपेयी साहित्य अकादमी की ओर से दिया गया सम्मान लौटाकर क्या साबित करना चाहते हैं? यह प्रश्न नागफनी की तरह है। सबको चुभ रहा है। वर्तमान केन्द्र सरकार के समर्थक ही नहीं, बल्कि दूसरे लोग भी सहगल और वाजपेयी की नैतिकता और विरोध करने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने साहित्यकारों से आग्रह किया है कि सम्मान/पुरस्कार लौटाना, विरोध प्रदर्शन का सही तरीका नहीं है। भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। लिखकर-बोलकर सरकार पर दबाव बनाइए, विरोध कीजिए। अगर आपकी कलम की ताकत चुक गई है या फिर एमएम कलबर्गी की हत्या से आपकी कलम डर गई है, तब जरूर आप विरोध के आसान तरीके अपना सकते हो। आप तो सरस्वती पुत्र हो तर्क के आधार पर सरकार को कठघरे में खड़ा कीजिए। वरना, समाज तो यही कहेगा कि आप साहित्य को राजनीति में घसीट रहे हो। सरकार की आलोचना के लिए आपके पास तर्क नहीं हैं, इसलिए संकरी गली से निकल लिए। आम और खास लोग बातें बना रहे हैं कि आप सम्मान के बूते खूब प्रतिष्ठा तो हासिल कर ही चुके हो, अब उसे लौटाकर मीडिया में सुर्खियां भी बटोर रहे हो।

शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

सरकारी दखल पर है सुप्रीम कोर्ट को आपत्ति, लेकिन 'अंकल जज' का क्या करें

 सु प्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग एक्ट (एनजेएसी) को असंवैधानिक बताकर खारिज कर दिया है। न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता लाने के उद्देश्य से भाजपानीत एनडीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति के लिए अगस्त-2014 में इस आयोग का गठन किया था। इसके लिए संविधान में 99वां संशोधन भी किया गया था। केन्द्रीय कानून मंत्री सदानंद गौड़ा ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर आश्चर्य जताते हुए कहा है कि न्यायिक व्यवस्था में सुधार के लिए यह कानून जरूरी था। संसद के दोनों सदनों ने कानून को पारित किया था। उन्होंने अपने बयान में यह भी कहा है कि एनजेएसी को 20 राज्यों का समर्थन प्राप्त है। इस हिसाब से देखें तो भारत में न्यायिक व्यवस्था में बदलाव की जरूरत केवल एनडीए सरकार ही नहीं बल्कि देश महसूस कर रहा है।

शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

गोहत्या रोकने कानून बनाए सरकार

 दा दरी हत्याकांड के बाद से देशभर में गाय पर राजनीतिक, सामाजिक और वैचारिक बहस छिड़ी हुई है। खुद को सेक्युलर कहने वाले तथाकथित बुद्धि के ठेकेदार गोमांस खाने को उतावले हैं। वे गोहत्या पर प्रतिबंध के खिलाफ खूब लिख-बोल रहे हैं। शोभा डे सरीखी वाममार्ग पर प्रगतिशील महिला हिन्दुओं को उकसाने वाला बयान देती हैं- मैंने गोमांस खाया है, आओ मुझे मार डालो। फिल्म अभिनेता ऋषि कपूर, पूर्व न्यायमूर्ति मार्कंडेय काटजू, बिहार के नेता लालू प्रसाद यादव, भाजपा सरकार के केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री किरण रिजिजू से लेकर विभिन्न क्षेत्रों की कई प्रमुख हस्तियों ने गोमांस पर हिन्दू समाज की भावनाओं को आहत करने वाले बयान दिए हैं। साहित्यकार भी गाय पर राजनीति करने में पीछे नहीं हैं। इस सब वितंडावाद के बीच हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने गोहत्या और गोमांस बिक्री पर रोक लगाने का महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार से भी आग्रह किया है कि पूरे देश में गोहत्या और गोमांस बिक्री पर प्रतिबंध लगाने के लिए कानून बनाने पर विचार किया जाना चाहिए। गोमांस और उससे बने उत्पाद की बिक्री, आयात और निर्यात पर तीन माह में पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया जाना चाहिए।

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2015

धर्मनिरपेक्ष है समान नागरिक संहिता, सब करें समर्थन

 सु प्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता को लेकर भाजपानीत केन्द्र सरकार से सवाल पूछकर एक जरूरी बहस को जन्म दे दिया है। सुप्रीम कोर्ट में क्रिश्चयन डायवोर्स एक्ट की धारा 10ए (1) को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई चल रही थी। याचिका दायर करने वाले अलबर्ट एंथोनी का सवाल है कि एक देश में एक ही मामले में अलग-अलग कानून क्यों हैं? ईसाई दंपती को तलाक लेने के लिए दो साल तक अलग-अलग रहना जरूरी है। जबकि हिन्दू मैरिज एक्ट में एक साल अलग रहने पर तलाक दे दिया जाता है। बात इसके आगे करें तो मुस्लिम पुरुष महज 'तलाक-तलाक-तलाक' कहकर ही महिला को छोड़ सकता है। वाट्सअप पर भी वह तीन बार तलाक लिख-बोल कर अपनी पत्नी को बता दे तो तलाक हो जाता है। हिन्दू और ईसाई दंपती को तलाक के लिए वाजिब कारण साबित करना होता है जबकि मुसलमानों में यह जरूरी नहीं है।

बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

सहिष्णुता पर भारत को ज्ञान न दे पाकिस्तान

 आ तंकवाद का पोषण करने वाला पाकिस्तान भारत को सहिष्णुता का पाठ पढ़ाने की कोशिश कर रहा है। पाकिस्तान के विदेश विभाग ने बयान जारी करते हुए गजल गायक गुलाम अली और पूर्व पाक विदेश मंत्री खुर्शीद महमूद कसूरी का विरोध किए जाने पर चिंता जताई है। बयान में कहा गया है कि भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसी घटनाएं दोबारा नहीं हों। पाकिस्तान को समझना चाहिए कि भारत के अभी ऐसे दिन नहीं आए हैं कि उसे दोगले देश नसीहत देने लग जाएं। भारत कल भी सहिष्णु था और आज भी सहिष्णु है। भारतीय समाज की प्रवृत्ति ही उदारवादी है। इसलिए पाकिस्तान जैसा अनुदार देश भारत को सीख दें, यह हास्यास्पद है।

मंगलवार, 13 अक्तूबर 2015

दुष्प्रचार में जुटा 'झूठों का समूह'

प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चिंता जताई है कि जब भाजपा सत्ता में होती है, झूठों का समूह दुष्प्रचार में जुट जाता है। मुंबई में डॉ. भीमराव आम्बेडकर के स्मारक का शिलान्यास करते हुए उन्होंने यह चिंता 'आरक्षण विवाद' के संदर्भ में जताई है। उन्होंने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी के समय भी यह समूह दुष्प्रचार में सक्रिय था। प्रधानमंत्री ने स्पष्ट किया है कि भाजपा आरक्षण को खत्म नहीं करेगी। प्रधानमंत्री ने 'झूठों के समूह' में निश्चिततौर पर उन्हीं तथाकथित प्रगतिशीलों को चिन्हित किया होगा, जो वर्षों से भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रवादी विचारधारा के प्रति अछूतों की तरह व्यवहार करते आए हैं। इस समूह को राष्ट्रवादी विचारधारा का विरोधी समूह भी कहा जा सकता है। या कहें कि 'झूठों का समूह' की अपेक्षा 'राष्ट्रवाद विरोधी समूह' कहना अधिक उचित होगा।

सोमवार, 12 अक्तूबर 2015

विकास के लिए दबेगा बटन

बि हार विधानसभा की 243 में से 49 सीट पर आज मतदान है। बीते दिनों में बिहार में हालात ऐसे बन गए हैं कि ऊंट किस ओर करवट लेगा, यह बताता बहुत मुश्किल हो गया है। विभिन्न ओपिनियन पोल भी इस बात की ताकीद करते हैं कि इस बार मतदाता के मूड को समझ पाना आसान नहीं है। कोई सर्वे महागठबंधन को बढ़त दिखा रहा है तो कोई एनडीए गठबंधन की सरकार बनने के संकेत दे रहा है। पहले चरण का चुनाव प्रचार थमने के ठीक पहले आया ज़ी मीडिया का सर्वे कहता है कि एनडीए को स्पष्ट बहुतम मिल रहा है। एनडीए के खाते में 162 सीटें आ सकती हैं। जबकि महागठबंधन 51 सीट पर सिमटता दिख रहा है।

शनिवार, 10 अक्तूबर 2015

'मुसलमानों' को चाहिए पाकिस्तान से आजादी

 क श्मीर की आजादी का राग आलापने वाला पाकिस्तान अपने घर को ही नहीं संभाल पा रहा है। सोशल मीडिया पर आई तस्वीरें और वीडियो से पता चलता है कि भारतीय मूल के मुसलमानों के साथ भी पाकिस्तान में ठीक व्यवहार नहीं होता है। बंटवारे के वक्त भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों को वहां की आवाम मुहाजिर कहकर बुलाती है। मुहाजिरों को संदिग्ध नजरिए से देखा जाता है। पाकिस्तान के मुसलमानों ने उन्हें बराबरी का हक नहीं दिया है। मुहाजिरों को 'मुसलमान' ही नहीं समझा जाता है। मुहाजिरों के साथ सरकार भी भेदभाव करती है। वर्षों से इस भेदभाव से पीडि़त मुहाजिरों का दर्द अब बाहर आने लगा है। हाल में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ जब यूएन जनरल असेम्बली में कश्मीर राग आलाप रहे थे, उसी वक्त बाहर मुहाजिर पाकिस्तान से आजादी के नारे लगा रहे थे। मुहाजिरों का यह प्रदर्शन अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। सोशल मीडिया पर वायरल तस्वीरें और वीडियो पाकिस्तान की पोल-पट्टी खोल रहे हैं कि वहां हिन्दुओं और दूसरे अल्पसंख्यकों के साथ भारत से गए मुसलमानों के साथ भी दोयम दर्जे का व्यवहार होता है।

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2015

साहित्यकारों की चयनित नैतिकता

 अं ग्रेजी लेखिका नयनतारा सहगल और हिन्दी कवि अशोक वाजपेयी साहित्य अकादमी की ओर से दिया गया सम्मान लौटाकर क्या साबित करना चाहते हैं? यह प्रश्न नागफनी की तरह है। सबको चुभ रहा है। वर्तमान केन्द्र सरकार के समर्थक ही नहीं, बल्कि दूसरे लोग भी सहगल और वाजपेयी की नैतिकता और विरोध करने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने साहित्यकारों से आग्रह किया है कि सम्मान/पुरस्कार लौटाना, विरोध प्रदर्शन का सही तरीका नहीं है। भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। लिखकर-बोलकर सरकार पर दबाव बनाइए, विरोध कीजिए। अगर आपकी कलम की ताकत चुक गई है या फिर एमएम कलबर्गी की हत्या से आपकी कलम डर गई है, तब जरूर आप विरोध के आसान तरीके अपना सकते हो।

गुरुवार, 8 अक्तूबर 2015

बिहार में कमल खिलने को तैयार

 बि हार में मतदान से एक सप्ताह पहले इंडियन एक्सप्रेस और जनसत्ता का सर्वे एनडीए के लिए खुशखबरी लेकर आया है। लोकनीति और सीएसडीएस ने इंडियन एक्सप्रेस समूह के लिए चुनाव पूर्व यह सर्वेक्षण किया है। बिहार में भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के संकेत सर्वे से मिल रहे हैं। यह सर्वे भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने वाला साबित होगा। बिहार का मैदान फतेह करने के लिए पूरी ताकत से मेहनत कर रहीं एनडीए गठबंधन की सभी पार्टियां और उनके कार्यकर्ता अब आखिरी सप्ताह में और जोश-जज्बे के साथ मतदाताओं से मिलेंगे।

बुधवार, 7 अक्तूबर 2015

न्यूज चैनल्स का एजेंडा क्या है?

 ति ल का ताड़ और राई का पहाड़ बनाने की कला किसी को सीखनी हो तो न्यूज चैनल्स से सर्टिफिकेट कोर्स किया जा सकता है। हमारे न्यूज चैनल्स इसमें माहिर हैं। बात का बतंगड़ बनाना भी उन्हें बखूबी आत है। मुद्दों को सुनियोजित दिशा में मोडऩे की कलाकारी भी उनसे सीखी जा सकती है। संदर्भ हटाकर किसी एक वाक्य पर रायता फैलाने में टीवी पत्रकारिता अव्वल होती जा रही है। टीआरपी का बेताल पीठ पर सवार है या फिर न्यूज चैनल्स का कोई और एजेंडा है? टीआरपी के चक्कर में टीवी मीडिया घनचक्कर हो गया है, यह हम सभी जानते हैं। लेकिन, इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि कुछ टीवी चैनल्स के मालिकों, संपादकों और पत्रकारों के भी अपने एजेंडे हैं। अपनी विचारधारा है। अपना चिंतन है। विचारधारा और चिंतक होना कोई अपराध नहीं, होना ही चाहिए। लेकन, पत्रकारिता का धर्म कहता है कि खबर लिखते-दिखाते-सुनाते समय अपनी विचारधारा को किनारे रख देना चाहिए। जरा खुलेमन से सोचिए, पत्रकार अपने धर्म का पालन कर रहे हैं क्या? सब पत्रकार एक जैसे नहीं हैं। लेकिन, देखने में आ रहा है कि अधिकतर पत्रकार या तो चैनल की विचारधारा के दबाव में या फिर अपनी विचारधारा के दबाव में पत्रकारिता के धर्म का पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसा करके वे समूची पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े करवा रहे हैं।

मंगलवार, 6 अक्तूबर 2015

बजट में होगी आम आदमी की चिंता

 वि त्त मंत्री अरुण जेटली ने संकेत दिए हैं कि आगामी बजट में आम आदमी का ध्यान रखा जाएगा। उन्होंने फेसबुक पोस्ट में लिखा है कि एनडीए सरकार इस बार आयकर में छूट की सीमा बढ़ाने जा रही है। इससे निम्न और मध्यम वर्ग की जेब में अधिक पैसा बचेगा। वित्त मंत्री की ओर से दिए गए आयकर छूट बढ़ाने के संकेत आम भारतीय परिवारों के लिए राहत का पैकेज है। आर्थिक आधार पर देखें तो भारत में निम्म और मध्यम वर्ग ही बहुसंख्यक हैं। सीमित आय में परिवार का संचालन करने की कठिन चुनौती उनके सामने रहती है। महंगाई अपनी रफ्तार से बढ़ती जा रही है जबकि आय कछुआ गति से बढ़ती है।

सोमवार, 5 अक्तूबर 2015

शशांक मनोहर का अध्यक्ष बनना

 भा रतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) के अध्यक्ष के तौर पर शशांक मनोहर के नाम पर अंतिम मोहर लग गई है। बीसीसीआई के सबसे ताकतवर और प्रभावशाली अध्यक्ष जगमोहन डालमिया के दुनिया से जाने के बाद नए अध्यक्ष को लेकर खेल जगत से लेकर भारतीय राजनीति और मीडिया में खूब खबरें चल रही थीं। नागपुर के वकील और बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष शशांक मनोहर के फिर से अध्यक्ष बनने की खबरों को अधिक प्रमाणिक माना जा रहा था, जो आखिर सच साबित हुईं। शशांक मनोहर के मुकाबले एन. श्रीनिवासन मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन, रविवार को होने वाली एसजीएम की बैठक से पहले ही श्रीनिवास खेमे ने हथियार डाल दिए। ईस्ट जोन के छह संगठनों ने शशांक मनोहर के नाम पर मोहर लगाई है। बोर्ड की बैठक में अध्यक्ष के लिए एकमात्र नाम होने से उन्हें सर्वसमत्ति से चुन लिया गया।

सुषमा स्वराज का करारा जवाब

 सं युक्त राष्ट्र महासभा की बैठक में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने पाकिस्तान को करारा जवाब दिया है। उन्होंने पाकिस्तान को दो टूक कह दिया है कि नवाज शरीफ जी चार सूत्रों की जरूरत नहीं है। एक ही सूत्र काफी है। आतंकवाद छोडि़ए और बैठकर बात कीजिए। इससे पूर्व संयुक्त राष्ट्रसभा में बुधवार को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने हमेशा की तरह कश्मीर राग अलापा था। शरीफ ने भारत पर बातचीत नहीं करने और पाकिस्तान में अस्थिरता फैलाने का आरोप लगाया था। कश्मीर का मसला सुलझाने के लिए पाकिस्तान ने भारत पर चार बेतुकी शर्तें थोप दी थीं। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने इन्हीं चार शर्तों पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को मुंहतोड़ जवाब दिया है।

शुक्रवार, 2 अक्तूबर 2015

स्वच्छ भारत अभियान का एक वर्ष

 आ ज स्वच्छ भारत अभियान का एक वर्ष पूरा हो रहा है। पिछले वर्ष महात्मा गाँधी की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी सरकार के इस महत्वपूर्ण अभियान की शुरुआत की थी। अभियान का उद्देश्य शहरों और गाँवों को स्वच्छ बनाने का है। इसके तहत शहरों-गाँवों में शौचालयों का निर्माण, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन की सुविधा, मैला ढोने की प्रथा का उन्मूलन करना, स्वच्छ और शुद्ध पेयजल का प्रबंध करना आदि शामिल है। अभियान के माध्यम से प्रधानमंत्री स्वच्छता के प्रति लोगों को जागरूक करना चाहते हैं। स्वच्छता को आदत बनाना उनका मुख्य उद्देश्य प्रतीत होता है। इसके लिए उन्हें समाज के प्रमुख और प्रभावशाली व्यक्तियों को स्वच्छ भारत अभियान से जोड़ा है। ताकि वे स्वच्छता के लिए लोगों को प्रेरित कर सकें।

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2015

बोल रहा है कश्मीर

 पा किस्तान के कब्जे वाले कश्मीर से 'हिन्दुस्थान-हिन्दुस्थान' की आवाजें आ रही हैं। वहाँ की आवाम भारत आना चाहती है। प्रदर्शन कर रहे लोगों को साफ तौर पर यह कहते हुए सुना जा रहा है कि हम भारत जाना चाहते हैं। भारत में अमन का माहौल उन्हें आकर्षित कर रहा है। पाकिस्तान की बदहाली उन्हें चिंतित किए हुए है। अप्रत्यक्ष तौर पर आतंकवाद का पोषण करने के अपने प्रमुख एजेंडे के कारण पाकिस्तान पीओके की आवाम की जरूरतों का ख्याल नहीं रख सका है। जिहाद के नाम पर पीओके के युवाओं को लम्बे समय से बरगलाया जा रहा है। जिहाद के पीछे की असल मंशा जब युवाओं को समझ आने लगी तो वे आतंकी संगठनों में भर्ती होने से इनकार लगे हैं।

सांसदों के लिए गठित हो जाना चाहिए स्वतंत्र वेतन आयोग

 सां सदों के वेतन और भत्ते तय करने के लिए सरकार ने एक स्वतंत्र वेतन आयोग के गठन की बात जाहिर की है। सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है। दरअसल, सांसदों के वेतन-भत्तों को लेकर समय-समय पर विवाद होता रहा है। सांसदों ने जब-जब अपना वेतन-भत्ता बढ़ाने का प्रयास किया है, तब-तब देश में हंगामा खड़ा हुआ है। सांसदों की जमकर निंदा की जाती रही है। मीडिया के मार्फत देशभर में नाराजगी का माहौल बनता रहा है। जबकि हकीकत यह भी है कि भारत के सांसदों का वेतन सरकारी अफसरों से कम है। कई राज्यों के विधायकों से भी सांसदों का वेतन कम है। फिर क्या कारण है कि सांसदों की वेतनवृद्धि हमेशा आलोचना का शिकार बनती है? क्या सांसद खुद अपना वेतन निर्धारण करते हैं, इसलिए? या फिर राजनेताओं के प्रति जनता में एक नकारात्मक वातावरण बन गया है, इसलिए? एक धारणा यह भी प्रचलित है कि अपने वेतन की बात आती है तो प्रत्येक राजनीतिक दल के सांसद एकजुट होकर एकमत से अपना वेतन बढ़ा लेते हैं। जबकि बाकि दिनों में संसद में जमकर हंगामा खड़ा करते हैं। संसद चलने नहीं देते। उक्त सब धारणाएं अपनी जगह आंशिक तौर पर सही हैं। लेकिन, आलोचना का महत्वपूर्ण कारण है, वेतन के संबंध में खुद निर्णय करना। देश में कर्मचारियों-अधिकारियों के वेतन निर्धारण की स्वतंत्र व्यवस्था है। वेतन आयोग निश्चित समय के बाद कर्मचारियों और अधिकारियों का वेतन बढ़ाता है। परिस्थिति के अनुसार समय-समय पर भत्ते भी बढ़ाए जाते रहते हैं। लेकिन, जनप्रतिनिधियों के संबंध में ऐसी कोई स्वतंत्र व्यवस्था नहीं है।