शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

समग्रता में हो ग्राम विकास का चिंतन

 म ध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में सांसद आदर्श ग्राम योजना की राष्ट्रीय कार्यशाला में ग्राम विकास पर मंथन चल रहा है। विमर्श हो रहा है कि गाँव के विकास का रास्ता कौन-सा हो? क्या गाँवों में सिर्फ आर्थिक विकास की दरकार है? ग्राम विकास की चिंता में आर्थिक पहलू तक ही सीमित रहना उचित होगा क्या? केन्द्र और राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को कैसे धरातल पर उतारा जाए? प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कार्यशाला में कहा कि शहरीकरण प्रत्येक समस्या का समाधान नहीं है। गाँवों को सम्पूर्ण इकाई के रूप में विकसित करना होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विचार आदर्श ग्राम की संकल्पना के अनुरूप है। चूंकि चौहान गाँव से निकले हैं। वे गाँव की बुनियादी जरूरतों के अलावा समय के साथ आ रहीं नई चुनौतियों से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। श्री चौहान जानते हैं कि गाँव की जरूरत अच्छी सड़क है, पेयजल और सिंचाई के पानी की समस्या का समाधान आवश्यक है, रोटी-कपड़ा-मकान भी चाहिए। गाँव से युवाओं के पलायन को रोकना है तो बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं भी गाँव तक पहुंचानी ही होंगी। रोजगार के अवसर खड़े करने होंगे। लेकिन, सिर्फ इतना कर देने से गाँव आदर्श नहीं हो जाएंगे।
        मुख्यमंत्री गाँव को एक सम्पूर्ण इकाई के रूप में देखने पर इसलिए भी जोर देते हैं क्योंकि वे दीनदयाल उपाध्याय के एकात्म मानवदर्शन के अच्छे व्याख्याता हैं। आज से यानी 25 सितम्बर, 2015 से वैचारिक योद्धा दीनदयाल उपाध्याय की जन्मशती भी प्रारंभ हो रही है। दीनदयाल जी कहते हैं कि हम खण्ड-खण्ड में विचार नहीं कर सकते। समग्रता में चिंतन जरूरी है। इसलिए गाँव के आर्थिक पहलू के साथ-साथ उसके सांस्कृतिक पक्ष का भी हमें ध्यान रखना होगा। हम जानते हैं कि गाँव भारतीय संस्कृति के संरक्षक हैं। उदारीकरण के कारण भारत ही नहीं विश्व के अनेक देशों की संस्कृतियों को हानि पहुंची है। विविधता और विविधता में भी एकरूपता हमारी पहचान रही है। यदि हम गाँवों को शहर बना देंगे तो गाँव का सुख कैसे पाएंगे? आदर्श बनाने के फेर में गाँव को शहर बनाने के रास्ते पर हमें नहीं चलना चाहिए। गाँवों को शहर बना देंगे तो फिर आने वाली पीढ़ी को संग्रहालयों में गाँव दिखाने पड़ेंगे। गाँव की बुनियादी जरूरतों को पूरा करते हुए, समय के साथ आई कुरीतियों को दूर करना, आदर्श ग्राम का उद्देश्य होना चाहिए। 
        प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले वर्ष जयप्रकाश नारायण की जयंती के अवसर पर सांसद आदर्श ग्राम योजना की शुरुआत की थी। उन्होंने पार्टी लाइन से ऊपर उठकर सभी राजनीतिक दलों के सांसदों से एक-एक गाँव गोद लेने का आग्रह किया था। कांग्रेस के कई सांसदों ने उनके आग्रह को स्वीकार किया। लेकिन, बहुत से कांग्रेसी सांसद गाँव के विकास के लिए आगे नहीं आए। आदर्श ग्राम विकास की राष्ट्रीय कार्यशाला में भी यह देखने में आया कि कांग्रेस के सांसद ग्राम विकास का खाका खींचने के विमर्श में शामिल नहीं हुए। जबकि भूमि अधिग्रहण बिल के मसले को लेकर कांग्रेस पार्टी किसान हितैषी बनने का प्रपंच रचती रही है। बहरहाल, सवाल भाजपा सांसदों से भी हैं। सांसदों ने जिन गाँव को गोद लिया है, आज उनकी स्थिति में कोई परिवर्तन आया है क्या? कितने सांसद गोद लिए अपने गाँवों में नियमित जाते हैं। ग्रामीणों से उनका कितना संवाद है? गाँव जाएंगे नहीं, ग्रामीणों से संवाद करेंगे नहीं, तब तो समझ लेना चाहिए कि ग्राम विकास संभव नहीं है। प्रधानमंत्री का आग्रह था, इसलिए गाँव गोद लिए हैं। यह तो खानापूर्ति है। वास्तव में गाँवों का विकास करना है, अपने गोद लिए गाँव को आदर्श बनाना है तो गाँव तो जाना पड़ेगा। गाँव में जाए बिना वहाँ की समस्याएं समझी नहीं जा सकती। जब गाँव के यथार्थ से ही परिचय नहीं होगा तब हम उनके शहरीकरण को ही विकास मानकर चलेंगे। जबकि ग्राम विकास शहरीकरण से आगे की बात है। यूं तो सांसदों को यह सिद्धांत मालूम है लेकिन फिर भी उन्हें अब ज्यादा गंभीरता से समझ लेना चाहिए कि भारत के विकास की कल्पना गाँवों के विकास के बिना संभव नहीं है। यही कारण है कि केन्द्र सरकार श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण मिशन के तहत 'स्मार्ट गाँव' की योजना लेकर आई है। 

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