मंगलवार, 29 सितंबर 2015

सकारात्मक ऊर्जा के केन्द्र हैं मंदिर

 फे सबुक के संस्थापक मार्क जकरबर्ग ने 'मंदिर' की चर्चा करके विशेषतौर पर 'हिन्दू धर्म को अफीम' मानने वाली 'प्रगतिशील जमात' को चौंका दिया है। फेसबुक मुख्यालय में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ बातचीत करते हुए उन्होंने बताया कि फेसबुक कठिन दौर से गुजर रहा था। बिकने की कगार पर पहुंच गया था, तब उनके प्रेरणास्रोत एप्पल के पूर्व सीईओ स्टीव जॉब्स ने भारत के मंदिर की यात्रा करने की सलाह दी थी। मार्क बताते हैं कि मंदिर दर्शन के बाद फेसबुक को अरबों रुपये की कंपनी में तब्दील करने का भरोसा फिर से पैदा हुआ। जकरबर्ग ने कहा कि मंदिरों से आशा मिलती है। कुछ भी करने से पहले मंदिर जाना चाहिए। आशा लेकर मंदिर जाइए फिर देखिए आप कहाँ पहुंच जाते हैं। संकट की घड़ी से उबरने में मंदिर की भूमिका का जिक्र करके जकरबर्ग किसी अंधविश्वास को बढ़ावा नहीं दे रहे थे, बल्कि अध्यात्म और सकारात्मक वातावरण की महत्ता को स्थापित कर रहे थे। मंदिर के देवता से प्रार्थना करने भर से फेसबुक अरबों की कंपनी बन गई, ऐसा भी नहीं है। निश्चित तौर पर इसके पीछे मार्क जकरबर्ग की मेहनत, लगन और सूझबूझ है।

सोमवार, 28 सितंबर 2015

मौतों पर रहस्य क्यों?

 ने ताजी सुभाषचंद्र बोस की मौत से जुड़ी फाइलों पर जमी गर्द अभी ठीक से साफ भी नहीं हुई थी कि पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु से जुड़ी फाइलों को भी सार्वजनिक करने की मांग उठने लगी है। अनिल शास्त्री ने अपने पिता की तत्कालीन सोवियत संघ के ताशकंद में संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत से जुड़ी फाइलों को सार्वजनिक करने की मांग की है। उन्होंने कहा है कि यह संभव है कि उनके पिता की हत्या की गई हो। कांग्रेस नेता अनिल शास्त्री और उनका परिवार पहले भी पूर्व प्रधानमंत्री की मौत से जुड़ी फाइलों को सामने लाने की मांग कर चुका है। लेकिन, पूर्ववर्ती सरकारें गोपनीयता एवं विदेशी संबंधों का हवाला देकर इसे उजागर करने से इनकार करती रही हैं। लेखक और पत्रकार अनुज धर भी सूचना के अधिकार के तहत शास्त्रीजी के निधन के संबंध में जानकारी मांग चुके हैं। उन्हें भी सरकार ने कोई जानकारी नहीं दी।

शनिवार, 26 सितंबर 2015

भारत में हिन्दू है सबसे गरीब

 ग रीबी के संदर्भ में सुनियोजित तरीके से एक धारणा प्रचलित कर दी गई थी कि भारत में सबसे अधिक गरीब मुसलमान हैं। मुस्लिम इलाके सबसे अधिक पिछड़े और गरीब हैं। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट के बाद तो इस धारणा को बहुत बल दिया गया। कांग्रेस और तुष्टीकरण की राजनीति करने वाले दल गाहे-बगाहे मुसलमानों की स्थिति को लेकर सच्चर कमेटी का हवाला देते रहते हैं। यह धारणा पहले से सवालों के घेरे में थी। सवाल यह भी थे कि मुसलमान किन कारणों से गरीबी भोग रहे हैं? सच्चर कमेटी की आँच पर तुष्टीकरण की रोटियाँ सेंकने वाले दलों के दिल जल उठेंगे यह जानकर कि देश के सबसे गरीब २० जिले हिन्दू बाहुल्य हैं। यानी हिन्दू गरीब ही नहीं हैं बल्कि सबसे अधिक गरीब हैं। देश में सिर्फ मुसलमान ही गरीब नहीं है, उनसे भी अधिक गरीब हिन्दू हैं। यानी सच्चर कमेटी के चश्मे से गरीबी को देखने वालों को समझना होगा कि वे जो देख रहे थे वह सब हरा-हरा था। उनके चश्में पर जानबूझकर हरा पेंट कर दिया गया था। चश्मा पारदर्शी नहीं था। वे बनावटी झूठ देख रहे थे, सच नहीं। जनगणना-२०११ के धार्मिक विश्लेषण के आधार पर यह सच सामने आया है।

शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

समग्रता में हो ग्राम विकास का चिंतन

 म ध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में सांसद आदर्श ग्राम योजना की राष्ट्रीय कार्यशाला में ग्राम विकास पर मंथन चल रहा है। विमर्श हो रहा है कि गाँव के विकास का रास्ता कौन-सा हो? क्या गाँवों में सिर्फ आर्थिक विकास की दरकार है? ग्राम विकास की चिंता में आर्थिक पहलू तक ही सीमित रहना उचित होगा क्या? केन्द्र और राज्य सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं को कैसे धरातल पर उतारा जाए? प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कार्यशाला में कहा कि शहरीकरण प्रत्येक समस्या का समाधान नहीं है। गाँवों को सम्पूर्ण इकाई के रूप में विकसित करना होगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का विचार आदर्श ग्राम की संकल्पना के अनुरूप है। चूंकि चौहान गाँव से निकले हैं। वे गाँव की बुनियादी जरूरतों के अलावा समय के साथ आ रहीं नई चुनौतियों से भी अच्छी तरह वाकिफ हैं। श्री चौहान जानते हैं कि गाँव की जरूरत अच्छी सड़क है, पेयजल और सिंचाई के पानी की समस्या का समाधान आवश्यक है, रोटी-कपड़ा-मकान भी चाहिए। गाँव से युवाओं के पलायन को रोकना है तो बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं भी गाँव तक पहुंचानी ही होंगी। रोजगार के अवसर खड़े करने होंगे। लेकिन, सिर्फ इतना कर देने से गाँव आदर्श नहीं हो जाएंगे।

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

सोशल मीडिया को गंभीरता से समझना होगा

 सो शल मीडिया की ताकत और उसके सदुपयोग को समझने के लिए उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ का उदाहरण महत्वपूर्ण है। एक बुजुर्ग टाइपिस्ट 'किशनजी' फुटपाथ पर बैठकर टाइपिंग का छोटा-मोटा काम करके अपनी आजीविका चला रहा थे। एक टाइपराइटर से किशनजी के परिवार के छह सदस्यों का पेट बंधा था। अचानक एक दिन, दरोगा आता है और उनकी रोजी-रोटी पर ठोकर मार देता है। 'दबंग' दरोगा की ठोकर से कमजोर टाइपराइटर बिखर जाता है। सोशल मीडिया का सिपाही यह सब अपने मोबाइल में रिकॉर्ड कर लेता है और उसे सोशल मीडिया पर प्रसारित कर देता है। सोशल मीडिया पर अनेक आम नागरिकों की संवेदनाओं का साथ पाकर वीडियो वायरल हो जाता है। एक आम आदमी 'किशनजी' को दम मिलती है। सोशल मीडिया की ताकत देखिए कि उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपने जाहिल दरोगा के कुकृत्य के लिए बुजुर्ग से माफी भी मांगनी पड़ी बल्कि उन्होंने किशनजी के लिए नया टाइपराइटर और आर्थिक मदद भी भेजी। धमकी मिली तो सुरक्षा भी देनी पड़ी। मामला सोशल मीडिया पर वायरल नहीं हुआ होता तो क्या होता? जवाब आप सब जानते हैं?

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

नेपाल में शांति बहाली के लिए आगे बढ़े भारत

 ने पाल में 20 सितम्बर की शाम से नया संविधान लागू हो गया है। राष्ट्रपति रामबरन यादव ने संविधान लागू होने की घोषणा की है। वर्षों से हिन्दू राष्ट्र नेपाल अब धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र बन गया है। संविधान को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। एक ओर, नेपाल में नया संविधान लागू होने पर खुशी का माहौल देखा गया, वहीं दूसरी ओर संविधान के विरोध में भी आवाजें उठती दिखाई दे रही हैं। हालांकि नए संविधान का विरोध पहले से चल रहा था। अब वह विरोध और मुखर हो गया है। मधेसी और थारू समुदाय के लोग विरोध में हैं। वे लम्बे समय से आंदोलन चलाकर अपने लिए अलग प्रांत की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि नए संविधान में उनकी अनदेखी की गई है। संविधान बनाते समय और नेपाल को सात प्रांतों में बांटते समय उनके हितों की चिंता नहीं की गई। नए संविधान से असंतुष्ट मधेसी समुदाय का आंदोलन दक्षिणी तराई और पश्चिमी क्षेत्रों में हिंसक होता जा रहा है। इस हिंसा से भारत चिंतित है।

सोमवार, 21 सितंबर 2015

एक अभिनेता का संवेदनशील होना

 अ मूमन देखने में आता है कि हमारे सिने सितारों की दुनिया अलग ही होती है। आम आदमी के जीवन से उनका सीधा संबंध नहीं होता है। आम आदमी के जीवन के यथार्थ को कलाकार केवल पर्दे पर जीते हुए दिखते हैं। वास्तविक जीवन में बहुत कम कलाकार होते हैं, जो आम आदमी के साथ खड़े दिखते हैं, उनकी मुश्किलों को दूर करने के लिए चमकदार दुनिया से बाहर निकलकर आते हैं। बॉलीवुड के दूसरे महत्वपूर्ण कलाकारों को नाना पाटेकर से सीख लेनी चाहिए। नाना बेहद संवेदनशील व्यक्ति हैं। बिना किसी 'शो-बाजी' के किसानों का दु:ख बांटने के लिए महाराष्ट्र के मराठवाड़ा में काम कर रहे हैं। नाना गाँव-गाँव जाकर आत्महत्या कर चुके किसानों के परिवारों की आर्थिक मदद कर रहे हैं। किसानों को मुश्किल घड़ी से लडऩे का हौसला दे रहे हैं। यह होती है वास्तविक 'हीरो' की पहचान। किसानों का संघर्ष, उनकी समस्याएं और दिन-रात की तकलीफें नाना पाटेकर को सोने नहीं दे रहीं। नाना ने उम्रभर किसानों के लिए काम करने का संकल्प लिया है। उनके एक कथन में समूचे बॉलीवुड और देश की महत्वपूर्ण हस्तियों के लिए गहरा संदेश छिपा है। नाना कहते हैं- 'हम शहर में रहते हैं। हमने खुद को चारदीवारी में बांध लिया है। हम स्क्वेयर फीट में सोचने लगे हैं। सबसे पहले हमें ये दीवार गिरानी होंगी। फिर दीवार के उस पार के पहाड़ भी अपने होंगे, नदी, पक्षी और लोग भी अपने होंगे।'

रविवार, 20 सितंबर 2015

कम्युनिस्टों की सांप्रदायिक सियासत, महान संत श्रीनारायण गुरु का अपमान

 वा मपंथी दल धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढऩे का ढोंग करते हैं। उनकी धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है हिन्दू विरोध या फिर हिन्दुओं की भावनाओं को ठेस पहुंचाना। वामपंथी संगठनों और राजनीतिक दलों का इतिहास रहा है कि उन्होंने सदैव भारतीय परंपराओं का निरादर ही किया है। केरल में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने जन्माष्टमी के दिन ऐसी ही एक हरकत की है। सियासी फायदे के लिए माकपा ने जन्माष्टमी के आयोजन का ढोंग रचा। केरल के हिन्दू समाज को घोर आश्चर्य हुआ कि माकपा का रंग कैसे बदल रहा है? माकपा और जन्माष्टमी? योगेश्वर श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का आयोजन माकपा करेगी! हिन्दू समाज आशंकित था कि माकपा जरूर उनकी भावनाओं को ठेस पहुंचाने का प्रयत्न करेगी। माकपा ने किया भी वही। हिन्दू समाज का अपमान। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समर्थित संगठन बालासंघम की ओर से शोभायात्रा का आयोजन किया गया। शोभायात्रा में भारत के महान संत एवं समाज सुधारक श्रीनारायण गुरु को कम्युनिस्टों ने सलीब पर टांग दिया। इतना ही नहीं, श्रीगुरु के संदेश 'मानव के लिए एक जाति, एक धर्म और एक ईश्वर' को विकृत तरीके से पेश किया गया। उनके संदेश को इस तरह प्रदर्शित किया गया कि मानो श्रीनारायण गुरु कह रहे हों- 'दुनियावालों सब ईसाई हो जाओ।' 'ईसाई बाना' पहनाकर जिस तरह माकपा ने श्री नारायण गुरु को अपमानित किया है, ऐसे घोर निंदनीय कृत्य वह पहले भी कई बार कर चुकी है। नम्बूदिरीपाद और बाद में नयनार के मुख्यमंत्रित्व काल में कम्युनिस्टों ने राज्यभर में श्री नारायण गुरु की प्रतिमाओं को ध्वस्त किया था।

शनिवार, 19 सितंबर 2015

महागठबंधन पर प्रश्न चिन्ह है तीसरा मोर्चा

 बि हार की राजनीति पहर-दर-पहर करवट बदल रही है। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर असामान्य गठबंधन बन रहे हैं, टूट रहे हैं और फिर नए गठबंधन बन रहे हैं। एक ओर, भारतीय जनता पार्टी के विरुद्ध नीतीश कुमार के नेतृत्व में बने 'महागठबंधन' के सामने नित नई चुनौतियां आ रही हैं। दूसरी ओर, चुनावी सर्वेक्षण भाजपा के नेतृत्व में बने राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के हित में बेहतर स्थितियां बता रहे हैं। फिलहाल तो महागठबंधन के समक्ष मुलायम सिंह के नेतृत्व में गठित 'तीसरा मोर्चा' नई चुनौती बनकर उभरा है। ज्ञात हो कि अपमानजनक व्यवहार के कारण महागठबंधन से नाता तोडऩे वाली समाजवादी पार्टी (सपा) और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एसीपी) ने 'तीसरा मोर्चा' बनाया है, जिसे पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी (एपीपी) भी सहयोग कर रही है। बिहार के कद्दावर नेता राजद के पूर्व उपाध्यक्ष रघुनाथ झा और बिहार विधान परिषद के सदस्य जदयू के नेता मुन्ना सिंह भी अपनी-अपनी पार्टियां छोड़कर सपा में शामिल हो गए हैं। सपा के राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव के नेतृत्व में पटना में तीसरे मोर्चे की बैठक हुई है। बैठक में बिहार चुनाव की रणनीति और सीटों के बंटवारे पर चर्चा हुई है। बिहार के चुनावी रण में तीसरे मोर्चे के उतरने से चुनावी गणित में जबरदस्त बदलाव आने वाला है।

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

विकास की अवधारणा में प्राथमिक हो ग्राम विकास

 भा रत सरकार ने देर से ही सही लेकिन गाँव की सुध ली है। स्मार्ट सिटी की तर्ज पर स्मार्ट गाँव विकसित करने का केंद्र सरकार का निर्णय सराहनीय है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई मंत्रिमंडल की बैठक में स्मार्ट गाँव विकसित करने के लिए योजना मंजूर की गयी है। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ग्रामीण मिशन के तहत गाँवों के उत्थान के लिए 5142 करोड़ रुपये खर्च किये जायेंगे। सरकार के इस महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे की प्रेरणा को जान लेना भी देशवासियों के लिए जरूरी है। स्मार्ट सिटी के दिवास्वप्न में खोयी सरकार को अचानक गाँव की याद कैसे आ गयी? हो सकता है देर सबेरे सरकार गाँवों की चिन्ता करती ही। भाजपा के नेतृत्व में पहले भी एनडीए सरकार (पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समय में) गाँव-गाँव तक सड़क बिछाकर ग्राम विकास की अपनी प्रतिबद्धता जाहिर कर चुकी है। लेकिन, इस समय अचानक से स्मार्ट विलेज के लिए बजट तय करने और सुनिश्चित योजना लाने के पीछे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ प्रेरणास्रोत है। हाल में संघ और उसके विविध संघठनों के बीच समन्वय बैठक हुई थी। उसी समन्वय बैठक के दौरान आरएसएस की ओर से प्रधानमंत्री के समक्ष ग्राम विकास की दिशा में आगे बढऩे का विचार प्रस्तुत किया गया।

गुरुवार, 17 सितंबर 2015

संघ को बदनाम करने से बाज आए कांग्रेस

 म ध्यप्रदेश में लम्बे समय से सत्ता से बाहर रहने के कारण कांग्रेस राजनीति भूल गई है। या फिर उसने भारतीय जनता पार्टी की जगह सांस्कृतिक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को अपना राजनीतिक विरोधी मान लिया है। गाहे-बगाहे कांग्रेस संघ पर निशाना साधती रहती है। प्रत्येक घटना से संघ को छोड़कर देखने की कोशिश करती है। वर्षों समाज के बीच काम करके आरएसएस ने भरोसा कमाया है। बार-बार संघ पर आरोप लगाकर कांग्रेस उस भरोसे को नुकसान पहुंचाने की कोशिश करती रही है। लेकिन, हर बार होता यह है कि आरोपों की आग में कांग्रेस खुद के ही हाथ जला बैठती है। एक तरफ कांग्रेस के बड़े राजनेता ज्योतिरादित्य सिंधिया पेटलावद विस्फोट की घटना पर राजनीति नहीं करने का संदेश देते हैं, वहीं दूसरी ओर मध्यप्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता केके मिश्रा पेटलावद पर ओछी राजनीति करते नजर आते हैं। कांग्रेस प्रवक्ता ने पेटलावद हादसे के आरोपी राजेन्द्र कासवा को संघ का स्वयंसेवक सिद्ध करने के लिए पे्रस विज्ञप्ति के साथ संघ के पथ संचलन का चित्र जारी किया। पथ संचलन में शामिल एक गणवेशधारी स्वयंसेवक को कांग्रेस प्रवक्ता ने राजेन्द्र कासवा बताया था। संघ की ओर से प्रमाण सहित कांग्रेस के आरोपों का खंडन किया गया है।

बुधवार, 16 सितंबर 2015

भारत की बड़ी सफलता

 सं युक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए भारत लम्बे समय से प्रयास कर रहा था। लेकिन, अब जाकर भारत के प्रयासों को ठोस आधार मिला है। १९३ देशों के समर्थन के कारण संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सुधार और विस्तार पर चर्चा के मसौदे को मंजूरी दे दी है। अब से सालभर बाद भारत के हित में सुखद परिणाम आने की प्रबल संभावना है। इस बार बाकि देशों का साथ मिलने से चीन, पाकिस्तान, इटली और उत्तर कोरिया का विरोध भी धरा रह गया। भारत की स्थायी सदस्यता का सबसे बड़ा विरोधी चीन भारत के प्रस्ताव पर मतदान चाह रहा था। लेकिन, अन्य देशों का साथ नहीं मिलने के कारण मजबूरी में उसे अपनी जिद छोडऩी पड़ी। भारत के बढ़ते प्रभाव के कारण संभवत: आगे भी इनकी चलने वाली नहीं है। पिछले डेढ़ वर्ष के दौरान दुनिया में भारत की ताकत बढ़ी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अनेक देशों का दौरा करके गहरे रिश्ते बनाए हैं। ये रिश्ते व्यापारिक भी हैं और भावनात्मक भी। ये रिश्ते राजनीतिक भी हैं और रणनीतिक भी। मोदी के प्रभाव और प्रयास से कई छोटे-बड़े विकसित, विकासशील और पिछड़े देश भारत के साथ आकर खड़े हो गए हैं। यूं तो पहले भी संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्यों में से रूस, अमेरिका और फ्रांस जैसे देश भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन करते थे, लेकिन वह मौखिक ही रहता था। यह पहली बार है कि संयुक्त राष्ट्र महासभा के सदस्य देशों ने भारत के प्रस्ताव पर लिखित में सुझाव दिए हैं। इसे भारत की कूटनीति की बड़ी सफलता माना जा रहा है।

मंगलवार, 15 सितंबर 2015

मुसलमानों की पहचान कौन, औरंगजेब या कलाम?

 दि ल्ली नगर पालिका परिषद ने पूर्व राष्ट्रपति और वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करने के लिए औरंगजेब मार्ग का नाम बदलकर 'एपीजे अब्दुल कलाम मार्ग' का निर्णय क्या लिया, हंगामा खड़ा हो गया है। किस बात का हंगामा? किसलिए हंगामा? इन सवालों पर गौर करें तो आश्चर्यजनक पहलू सामने आते हैं। वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड, ऑल इंडिया मुस्लिम मजालिस-ए-मुशावरत, शाह वलीउल्ला संस्थान और ऑल इंडिया मजलिसे इत्तेहादुल (आईएमआई) सहित कई मुस्लिम राजनीतिक दलों और इस्लामिक संस्थाओं ने आसमान सिर पर उठा लिया है। ये आरोप लगा रहे हैं- 'केन्द्र सरकार हिन्दू संगठनों के इशारे पर मुसलमानों की पहचान मिटा रही है। सरकार हिन्दू विचारधारा से प्रेरित होकर काम कर रही है।' सांप्रदायिक राजनीति का पोषक चेहरा असदुद्दीन औवेसी और वामपंथी इतिहासकार इरफान हबीब जैसे लोग इस फैसले से बहुत आहत हैं।

मुसलमानों की अनुकरणीय पहल

 भा रत के मुसलमानों ने अनुकरणीय और सराहनीय कदम उठाया है। विश्व सभ्यता पर कलंक और मानवता के लिए खतरा बन चुके इस्लामिक स्टेट के खिलाफ भारतीय मुसलमान सड़कों पर उतर आया है। आईएस के खिलाफ मुसलमानों के प्रदर्शन को मीडिया और बौद्धिक विमर्श में अधिक से अधिक कवरेज मिलना चाहिए था। खूब चर्चाएं होनी चाहिए थी। प्राथमिकता के साथ मुसलमानों की इस पहल को दिखाना चाहिए था। इस विषय में लिखना चाहिए था। दुर्भाग्यवश ऐसा पर्याप्त मात्रा में हो नहीं सका। सबको भारतीय मुसलमानों का समर्थन करना चाहिए था। ऐसा बहुत कम होता है जब मुसलमान इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ इस कदर सड़कों पर उतरता है। भारतीय मुसलमानों ने इसकी शुरुआत की है तो बाकि सबका फर्ज बनता है कि उनकी आवाज को दूर तक पहुंचाया जाए। यह छोटी बात नहीं है। दुनिया में दहशत का पर्याय बन चुके आतंकी संगठन इस्लामिक स्टेट (आईएस) के खिलाफ भारत के मुसलमानों ने अब तक का सबसे बड़ा फतवा जारी किया है। उन्होंने आईएस का विरोध करते हुए बेगुनाहों की हत्या की निंदा की है। आईएस की गतिविधियों को गैर इस्लामिक और शरीयत के खिलाफ बताया है। इस फतवे को दुनिया के सामने मिसाल के तौर पर पेश किया जाना चाहिए। ताकि दुनिया के मुसलमान भी आगे आकर इस्लामिक आतंकी संगठनों का विरोध करें।

सोमवार, 14 सितंबर 2015

प्रशासनिक लापरवाही ने लील ली सैकड़ों ज़िन्दगी

 म ध्यप्रदेश में झाबुआ के पेटलावद में हुए धमाके में करीब 90 लोग काल के गाल में समा गए। अनेक लोग गंभीर घायल हुए हैं। पहले होटल में गैस सिलेंडर फटा। तत्काल बाद विस्फोटक सामग्री के गोदाम में बड़ा धमाका हुआ। इस धमाके से सर्वाधिक नुकसान हुआ। इस तरह की दुर्घटनाओं में लोग ही नहीं परिवार भी मरते हैं। मरने वाले लोगों में कई अपने परिवारों की धुरी थे, मुखिया थे, परिवारों के जीवन की उम्मीद थे। 'उम्मीद के ये दीये' प्रशासन की घोर लापरवाही के कारण बुझ गए। बच्चे स्कूल जा रहे थे और महिलाएं सब्जी खरीद रही थीं, विस्फोट से उनके चिथड़े उड़ गए। कई लोग घर से निकले होंगे बच्चों के लिए मिठाई लेने, चॉकलेट-बिस्किट लेने। सब्जी-भाजी लेने। काम की तलाश में। दुर्भाग्य! उसके बच्चे-परिजन सिर्फ इंतजार करते रह गए। बच्चे अनाथ हुए, महिला विधवा हुई, माता-पिता ने अपने बच्चे खोये। रोटी-पानी की तलाश में घर से निकले व्यक्तियों का दोष था क्या? बच्चे स्कूल के लिए घर से नहीं निकलें क्या? महिलाएं बाजार में सब्जी खरीदने आयीं, उनकी गलती थी क्या? नहीं। फिर दोष किसका है? दोष शासन-प्रशासन का है। प्रशासन की घोर लापरवाही के कारण ये जन हानि हुई है।

रविवार, 13 सितंबर 2015

गाँधी परिवार से आगे बढ़ पाएगी कांग्रेस?

 कां ग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी का कार्यकाल एक साल और बढ़ा दिया गया है। कांग्रेस कार्यसमिति ने यह फैसला उस वक्त लिया है जब पार्टी अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही है। सब दूर और सब प्रकार के चुनावों में कांग्रेस का प्रदर्शन गिरता ही जा रहा है। कांग्रेस को खोयी प्रतिष्ठा वापस मिल सके, इसके लिए कार्यकर्ताओं सहित कांग्रेस हितैषी पार्टी में बड़े फेरबदल की उम्मीद कर रहे थे। लेकिन, नतीजा 'ढाक के तीन पात' ही निकला। उपाध्यक्ष राहुल गाँधी को अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा भी जोरों से थी। लेकिन, 'गरीबी में आटा गीला' न हो जाए, इसलिए कार्यसमिति ने यहां भी कोई जोखिम नहीं उठाया। 'चिंतन प्रवास' से लौटने के बाद से भले ही राहुल के तेवर बदले-बदले से हों, लेकिन कुछ मौकों पर उनकी अरिपक्वता प्रकट हो ही जाती है। कांग्रेस के सामने अभी बिहार जैसा महत्वपूर्ण चुनाव है। पार्टी की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। राहुल गाँधी अब तक चुनावी जंग में असफल ही रहे हैं। इसलिए भी पार्टी ने राहुल गांधी को अभी कमान देना उचित नहीं समझा होगा। खैर, कमान मिले या न मिले, क्या फर्क पड़ता है? राहुल अध्यक्ष की तरह व्यवहार कर ही सकते हैं। पार्षदपति, विधायक पति की तर्ज पर अध्यक्ष-पुत्र। भले ही वरिष्ठ कांग्रेसी नेता राहुल गांधी को स्वीकार न करते हों लेकिन राहुल को नापसंद करने का विकल्प भी उनके पास नहीं हैं। विकल्प तो छोडि़ए, असल में राहुल का विरोध करने का साहस किसी में नहीं है। आज नहीं तो कल, मजबूरन उन्हें गाँधी उपनाम के कारण राहुल के पीछे खड़ा होना ही पड़ेगा।

शनिवार, 12 सितंबर 2015

'हिन्दी भाषा' पर मंथन

 द सवें विश्व हिन्दी सम्मेलन में 'हिन्दी भाषा' पर मंथन शुरू हो गया है। देश-दुनिया से 'हिन्दी भाषा' के विद्वान और हिन्दी प्रेमी हिन्दी हृदयप्रदेश की राजधानी भोपाल में सिर जोड़कर बैठ चुके हैं। विमर्श के अनेक दौर चलेंगे। हिन्दी का विकास कैसे किया जाए? हिन्दी का विस्तार कैसे किया जाए? किन-किन क्षेत्रों में हिन्दी के विस्तार की संभावनाएं हैं? समृद्ध और ताकतवर भाषा होने के बाद भी हिन्दी कहाँ और क्यों पिछड़ गई? सब मुद्दों पर चर्चा होगी। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन का एजेंडा भी स्पष्ट कर दिया है। उन्होंने कहा है कि यह सम्मेलन हिन्दी भाषा की उन्नति पर केन्द्रित है, हिन्दी साहित्य पर नहीं। श्रीमती स्वराज ने यह भी कहा कि पिछले नौ सम्मेलनों में ही भाषा की उन्नति पर ध्यान दिया होता तो आज हमें हिन्दी के संवर्धन और संरक्षण की चिंता नहीं करनी पड़ती। यह अच्छी बात है कि विदेश मंत्री ने इसका अध्ययन किया है कि हिन्दी को आगे बढ़ाने में क्या चूक हो रहीं थी। लेकिन, यह भी सच है कि भले ही पिछले विश्व हिन्दी सम्मेलन साहित्य पर केन्द्रित रहे हों लेकिन उनके माध्यम से भी दुनिया में हिन्दी का झंडा बुलंद हुआ। कहीं न कहीं हिन्दी की गूंज दुनिया में पहुंची। हिन्दी के लिए नींव डाली। अब देखना होगा कि दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के जरिए उस नींव पर कैसे हिन्दी का विशाल और भव्य भवन तैयार किया जाएगा?

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

ताकत है हिन्दी

 हि न्दी प्रेमी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के हृदयप्रदेश की राजधानी भोपाल में आयोजित दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के उद्घाटन भाषण में हिन्दी की महत्ता को स्थापित करने का काम किया है। इस बात से शायद मोदी विरोधी भी इनकार नहीं करेंगे कि हिन्दी को पुन: प्रतिष्ठा दिलाने और उसका सम्मान बढ़ाने में नरेन्द्र मोदी का बहुत योगदान है। यह फिर से हिन्दी के अच्छे दिनों की शुरुआत है कि प्रधानमंत्री अहिन्दी भाषी होकर भी हिन्दी में बात करता है, हिन्दी को प्रेम करता है। प्रधानमंत्री भारत ही नहीं, बल्कि दुनिया के जिस कोने में भी जा रहे हैं, वहां हिन्दी में ही बात कर रहे हैं। यानी दुनिया को भी बता रहे हैं कि भारत की अपनी समृद्ध भाषा है। अब भारत अपनी भाषा में बात करेगा। भारत के साथ बात करना है तो हिन्दी सीख लीजिए। दसवें विश्व हिन्दी सम्मेलन के मंच से मोदी ने कहा- 'मैं अकसर सोचता हूं कि यदि मुझे हिन्दी नहीं आती तो मेरा क्या होता?' प्रधानमंत्री का यह वाक्य हिन्दी की ताकत को प्रदर्शित करता है। यह सच है कि यदि नरेन्द्र मोदी को हिन्दी नहीं आती तो आज वे संभवत: प्रधानमंत्री न होते। उपहास के लिए विरोधी इस प्रकार भी कह सकते हैं कि हिन्दी नहीं आती तो नरेन्द्र मोदी अहमदाबाद के रेलवे स्टेशन पर चाय बेच रहे होते। खैर, मोदी प्रधानमंत्री बन भी सकते थे, लेकिन इतना तो निश्चित है कि लोगों का उतना प्यार नहीं मिलता, जितना मिल रहा है। हिन्दी न आती तो लोकप्रियता आजू-बाजू भी न फटकती। हिन्दी न आती तो समूचे भारत से संवाद कैसे कर पाते?

मंगलवार, 8 सितंबर 2015

अपनी भाषा में हो शिक्षा

 ज ब किसी राष्ट्र पर विदेशी भाषा हावी हो जाती है तो उसकी संस्कृति, परंपरा और उसके जीवन मूल्यों के समक्ष गहरा संकट खड़ा हो जाता है। उस राष्ट्र की संतति भ्रम की स्थिति में होती है। बाहरी भाषा के प्रभुत्व के कारण एक ही राष्ट्र में भाषाई आधार पर भेदभाव की दीवार खड़ी हो जाती है। भारत जैसे बहुभाषी देश में तो एक विदेशी भाषा ने भारतीय भाषाओं को आमने-सामने शत्रु की तरह खड़ा करवा दिया है। इसके साथ ही विदेशी भाषा के प्रभाव में वह राष्ट्र स्वभाविक प्रगति भी नहीं कर पाता है। अंग्रेजी के वर्चस्व के कारण यह स्थिति भारत के साथ दिखती है। दरअसल, भाषा महज संवाद की सेतु नहीं है। संवाद सेतु से कहीं अधिक, भाषा संस्कृति की धुरी है। संस्कृति भाषा पर ही टिकी रहती है। भाषा बदलने पर संस्कृति बदल जाती है, मूल्य बदल जाते हैं। बात सांस्कृतिक मूल्यों तक भी सीमित नहीं है बल्कि सार्वभौमिक सत्य है कि कोई भी राष्ट्र अपनी भाषा के साथ ही आगे बढ़ता है। हम दुनिया के उन्नत और प्रगतिशील राष्ट्रों का इतिहास-वर्तमान उलट-पलट कर जब देखेंगे तो ज्ञात होगा कि उन्होंने निज भाषा को नहीं त्यागा। लोक व्यवहार से लेकर पठन-पाठन और शोध तक अपनी मातृभाषा में किए। मातृभाषा में शिक्षा का क्या महत्व है, इसे दुनिया के उन्नत राष्ट्रों जापान, जर्मनी, रूस, अमरीका और चीन से लेकर इजराइल तक ने साबित करके दिखाया है। दुनिया के शिक्षाविद् भी यही मानते हैं कि शिक्षा मातृभाषा में होनी चाहिए। महामना मदनमोहन मालवीय, महात्मा गांधी, डॉ. भीमराव अम्बेडकर, रविन्द्रनाथ ठाकुर, डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जैसे महापुरुषों ने भी मातृभाषा में शिक्षा पर जोर दिया है। भारत में समय-समय पर गठित शिक्षा आयोगों राधाकृष्णन आयोग और कोठारी आयोग सहित अन्य आयोगों ने भी मातृभाषा में ही शिक्षा की अनुशंसा की है।

अतीत से सबक ले पाकिस्तान

 पा किस्तान के आर्मी चीफ जनरल राहील शरीफ ने अपनी 'शराफत' की नुमाइंदगी की है। उन्होंने धमकी भरे अंदाज में कहा है कि अब जंग छिड़ी तो भारत को मुंह की खानी पड़ेगी। रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय में पाकिस्तान 'भारत-पाक युद्ध-1965' में अपनी कथित 'विजय' की वर्षगांठ मना रहा था, तब शरीफ का यह बड़बोलापन जाहिर हुआ। दरअसल, शरीफ जिस सेना का प्रतिनिधित्व करते हैं, उसका वजूद भारत विरोध पर ही टिका है। इसीलिए गाहे-बगाहे पाकिस्तान सेना के प्रमुख इस प्रकार की बयानबाजी करते रहते हैं। प्रत्यक्ष और छद्म युद्ध में हर बार पराजित होने वाला पाकिस्तान अपनी जीत की और भारत को मजा चखाने की कल्पना करके ही खुश हो लेना चाहता है। पाकिस्तान के सेना प्रमुख ने जिस कार्यक्रम में भारत को चेतावनी दी है, उसकी बुनियाद भी सबसे बड़े झूठ पर टिकी है। पाकिस्तान के राष्ट्रपति और रक्षा मंत्री भी अपनी विजय के झूठे दावे पर इतरा चुके हैं। लेकिन, सच तो दुनिया जानती है। साँच को आँच नहीं।

सोमवार, 7 सितंबर 2015

सैनिकों के अच्छे दिन आए

 प्र धानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सैनिकों से किया अपना महत्वपूर्ण वादा पूरा कर दिया है। हरियाणा के फरीदाबाद में मेट्रो की नई लाइन के उद्घाटन के अवसर पर प्रधानमंत्री ने स्पष्ट कर दिया है कि वन रैंक वन पेंशन योजना का लाभ सभी सैनिकों को मिलेगा। 'वीआरएस' पर सैनिकों को भ्रमित होने की जरूरत नहीं है। मोदी की इस घोषणा से आंदोलन कर रहे सैनिकों और उनके समर्थकों के चेहरे पर प्रसन्नता के भाव नजर आए। आखिर, देश के सैनिकों और उनके परिवारों को 42 साल से चली आ रही लम्बी लड़ाई में विजय हासिल हो गई। एक दिन पूर्व जब रक्षा मंत्री मनोहर पर्रीकर ने वन रैंक वन पेंशन योजना की घोषणा की, तब सैनिक पूरी तरह संतुष्ट नहीं हुए थे। रक्षा मंत्री की घोषणा में 'वीआरएस' का पेंच फंस गया था। 'वीआरएस' लेने वाले जवानों को योजना के लाभ से वंचित रखे जाने का प्रावधान किसी को पसंद नहीं आया। कांग्रेस सहित अन्य राजनीतिक दलों ने तो 'वीआरएस' शब्द के उपयोग पर ही सरकार को घेरने का प्रयास किया। दरअसल, सेना में वीआरएस की व्यवस्था होती ही नहीं है। वहां प्री-मैच्योर रिटायरमेंट की व्यवस्था होती है। प्री-मैच्योर रिटायरमेंट लेने वाले सैनिकों की संख्या करीब 40 प्रतिशत बताई गई है। यानी जवानों का एक बड़ा हिस्सा वन रैंक वन पेंशन योजना का लाभ लेने से वंचित हो जाता। प्री-मैच्योर रिटायरमेंट सैनिकों का हक है।

सबसे सरल

 सं पादक की सत्ता को जब प्रबंधन ने हिला रखा हो, संपादक खुद भी जब मैनेजर हो गए हों, तब एक शख्स ने संपादक  के पद की गरिमा को बनाए ही नहीं रखा बल्कि उसका संवर्धन भी किया। वह शख्स कोई ओर नहीं, हिन्दी पत्रकारिता के पद्मश्री आलोक मेहता ही है। आसमान की बुलन्दियां छू चुके आलोक मेहता सादगी के लिबास में लिपटे आपको कहीं भी मिल जाएंगे। वे सहज हैं, सरल हैं और मिलनसार भी हैं।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

सपा का अपमान, फिर टूटा महागठबंधन

 बि हार विधानसभा चुनाव जितना नजदीक आता जा रहा है, उतना ही दिलचस्प होता जा रहा है। मजेदार बात है कि भारतीय जनता पार्टी से मुकाबला करने और अपनी-अपनी राजनीतिक जमीन बचाने की खातिर आरजेडी, जेडीयू, कांग्रेस, सपा और एनसीपी ने एक-दूसरे से कसमें-वादे लेकर 'महागठबंधन' बनाया था। एक-दूसरे के धुर विरोधी जब एक साथ आए तो किसी ने इसे भानुमति का कुनबा बताया, किसी ने महाठगबंधन और किसी ने मजबूरी का गठबंधन। महागठबंधन के जन्म के साथ ही राजनीतिक पंडितों ने इसकी अकाल मृत्यु के बारे में अंदेशा जताया था। स्वार्थ के लिए जुटे लोग, स्वार्थ पूरे नहीं होने पर जुदा होने लगते हैं। सबसे पहले एनसीपी ने खुद को महागठबंधन से अलग किया। अब जेडीयू, आरजेडी और कांग्रेसी की तिकड़ी के बीच असहज और अपमान वातावरण का अनुभव कर रही समाजवादी पार्टी ने भी महागठबंधन से अलग होकर अपनी दम पर चुनाव लडऩे का फैसला लिया है। सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने गुरुवार को कहा कि जनता परिवार ने बिहार में सपा को पांच सीटें दी थी। पार्टी के कार्यकर्ता और नेता इससे खुद को अपमानित महसूस कर रहे थे। सीटों का फैसला करते वक्त उन्हें पूछा तक नहीं गया। यह गठबंधन का धर्म नहीं है। ठीक ऐसी ही परिस्थिति का सामना एनसीपी ने किया था।

गुरुवार, 3 सितंबर 2015

उपराष्ट्रपति बताएं, कौन-सा भेदभाव दूर करना होगा?

 उ पराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-मुशावरत के स्वर्ण जयंती समारोह से मुसलमानों को लेकर केन्द्र सरकार को नसीहत दी है। उन्होंने कहा है कि सबका साथ-सबका विकास अच्छा, लेकिन सरकार को मुसलमानों के साथ हो रहे भेदभाव को दूर करना चाहिए। मुसलमानों का भरोसा जीतने के लिए सरकार उन गलतियों को जल्द सुधारे, जो सरकार या उसके एजेंटों ने की हैं। किसी सांप्रदायिक राजनेता की तरह उप राष्ट्रपति ने सरकार को मुस्लिम आबादी की भी धौंस देने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि देश की आबादी में 14 फीसदी से अधिक मुसलमान हैं, सरकार उनकी अनदेखी न करे। भारत के उप राष्ट्रपति जैसे संवैधानिक पद पर बैठे हामिद अंसारी के बयान को लेकर सियासी और सामाजिक विरोध शुरू हो गया है। भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रवादी सामाजिक संगठन उप राष्ट्रपति के बयान को असंवैधानिक तथा सांप्रदायिक बताया है। मुस्लिम राजनीति करने वाले दल, कांग्रेस और वामपंथी सहित अन्य पार्टियां उनका समर्थन भी कर रही हैं।

बुधवार, 2 सितंबर 2015

पोल से नीचे उतर आइए, तभी मिलेंगे वोट

 मु जफ्फरपुर, गया और सहरसा के बाद बिहार की सिल्क सिटी भागलपुर में मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की चौथी 'परिवर्तन रैली' थी। मोदी को देखने-सुनने के लिए भारी संख्या में लोग आए थे। कई लोग पंडाल में पोल पर चढ़े हुए थे। प्रधानमंत्री ने भाषण शुरू करने से पहले पोल पर चढ़े लोगों से नीचे उतरने के लिए आग्रह किया। उन्होंने कहा- 'चुनाव तो आते-जाते रहेंगे। जीवन से कीमती कुछ भी नहीं है। जब तक लोग पोल से नहीं उतर जाते, मैं अपना भाषण शुरू नहीं करूंगा।' बड़ी अच्छी बात कही प्रधानमंत्री जी ने, चुनाव आते-जाते रहेंगे। लोगों का जीवन महत्वपूर्ण है। बहरहाल, बिहार की आवाम को भी समझ लेना चाहिए कि उनका जीवन बहुत कीमती है। राजनीतिक दल उनके जीवन की चिंता करें या न करें, उन्हें खुद अपनी चिंता जरूर करनी चाहिए। चुनाव आयोग ने बिहार के चुनाव को 'मदर ऑफ इलेक्शन' कहा है। इस बार का बिहार विधानसभा चुनाव बहुत दिलचस्प होने जा रहा है। इस चुनाव से राजनीतिक दलों और नेताओं को बहुत से सबक मिलने वाले हैं। एक आग्रह बिहार की जनता को सभी राजनीतिक दलों से करना चाहिए- 'पोल से उतर आइये माननीयों, तभी हमारे वोट मिलेंगे। पोल पर बैठकर जो सिर्फ ढोल पीटेगा, वह चुनाव बाद विपक्षी दल के विजयी जुलूस में ढोल पीटने लायक ही बचेगा।' यहां पोल के आशय जुमलेबाजी, कोरे आश्वासनों के पहाड़, अशालीन भाषा, अमर्यादित व्यवहार, व्यक्तिवाद, परिवारवाद और जातिवाद की राजनीति से लगा सकते हैं। इन 'पोल' पर बिहार अब और लटका नहीं रहना चाहता है। बिहार भी अब विकास की तरफ आगे बढऩा चाहता है। जो विकास की बात करेगा, वही बिहार की कुर्सी संभालेगा।

मंगलवार, 1 सितंबर 2015

आत्महत्या नहीं है संथारा

 जै न पंथ को सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद बंधी है। संथारा प्रथा पर रोक लगाने के राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने स्टे लगा दिया है। राजस्थान हाईकोर्ट ने जनहित याचिका की सुनवाई करने के बाद संथारा को आत्महत्या करार देकर इस पर रोक लगाने के आदेश दिए थे। सभी जैन पंथी हाईकोर्ट के आदेश से आहत महसूस कर रहे थे। नरम स्वभाव का जैन समाज बरसों पुरानी प्रथा संथारा-संलेखना पर रोक लगाने और उसकी तुलना आत्महत्या जैसे कायराना कृत्य से करने पर भड़क उठा था। समूचा जैन समाज आदेश के विरोध में एकजुट होकर सड़कों पर निकला। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में राजस्थान हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती दी है। पुनर्विचार याचिका दायर की है। सुप्रीम कोर्ट से मिले स्टे को जैन समाज आंशिक जीत मान रहा है। जैन समाज का मत है कि संथारा किसी भी तरह से आत्महत्या नहीं है। आत्महत्या भावावेश में की जाती है जबकि संसार से मोहभंग होने पर जैन मतावलम्बी संथारा लेते हैं। महीनों कठोर उपवास और तप के जरिए संथारा किया जाता है।