बुधवार, 15 अक्तूबर 2014

राष्ट्रवादी पत्रकार

 ब ल्देव भाई शर्मा के नाम में ही 'भाई' नहीं बल्कि उनके व्यवहार में भी अपने अधीनस्थों और सहयोगियों के प्रति बड़े भाई जैसा लाड़-प्यार रहता है। अपने इसी व्यवहार और विश्वास के बलबूते बल्देवभाई शर्मा ने हिन्दी पत्रकारिता में सम्मानित स्थान सुनिश्चित किया है। संयमित और अनुशासित जीवन, मुद्दों पर पैनी नजर रखने वाले बल्देवभाई शर्मा की पहचान है। 
       80 के दशक में मध्यप्रदेश के ग्वालियर शहर में 'पत्रकारिता की पाठशाला' स्वदेश से पत्रकारिता शुरू करने वाले बल्देवभाई शर्मा छत्तीसगढ़, हरियाणा, उत्तरप्रदेश और दिल्ली सहित अन्य प्रदेशों में कई अखबारों की जड़ें मजबूत कर चुके हैं। स्वदेश ग्वालियर से वे बतौर उपसंपादक जुड़े थे। स्वदेश प्रबंधन ने जल्द ही उनकी पत्रकारीय क्षमता और संगठन गढऩे के कौशल को पहचान कर उन्हें रायपुर संस्करण को लॉन्च करने की जिम्मेदारी दी। बल्देवभाई शर्मा ने सुनियोजित तरीके से रायपुर में स्वदेश की नींव रखी और बतौर संपादक उसे अन्य समाचार पत्रों के मुकाबले मजबूती के साथ खड़ा किया। बाद में वे दैनिक भास्कर के पानीपत और अमर उजाला के  वाराणसी संस्करण को सफलतापूर्वक लांच कराने के बाद दैनिक भास्कर के हरियाणा संस्करण में भी संपादक रहे। दिल्ली से प्रकाशित पाक्षिक नूतन पृथ्वी में एग्जीक्यूटिव एडिटर की भूमिका भी उन्होंने निभाई। पत्रकारिता को वे समाज में बदलाव लाने की ताकत मानते हैं। उनका मानना है कि सकारात्मक पत्रकारिता से देश की अधिकतर समस्याओं का निदान किया जा सकता है। 
       हिन्दी बेल्ट की पत्रकारिता में एक खास मुकाम हासिल कर चुके और 30 वर्ष से भी अधिक पत्रकारीय अनुभव की पूंजी के मालिक बल्देवभाई शर्मा राष्ट्रवादी पत्रकारिता के मजबूत स्तम्भ हैं। राष्ट्रवाद उनकी कथनी-करनी में सहज-सरल ढंग से बहता हुआ दिखता है। वर्ष 2008 में पाञ्चजन्य के संपादक होने के बाद पाञ्चजन्य और बल्देवभाई शर्मा दोनों ही खासे चर्चित हुए। पाञ्चजन्य में यह उनका दूसरा कार्यकाल था। इससे पहले तीन साल तक वे पाञ्चजन्य को अपनी सेवाएं दे चुके थे। बहरहाल, पांच साल के संपादकीय कार्यकाल में उन्होंने विद्वतापूर्ण लेखन और समझबूझ के साथ पाञ्चजन्य को नई ऊंचाइयां दीं और उसकी प्रतिष्ठा को बढ़ाया भी। हिन्दू आतंकवाद और सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक जैसे अनेक गहन राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखे उनके दर्जनों संपादकीय लगातार मीडिया की सुर्खियां बने। अब वे नेशनल दुनिया के सीनियर एडिटर हैं, फिर भी न्यूज चैनल्स पर जब भी राष्ट्रवाद पर बहस होती है तो बल्देवभाई को शिद्दत से याद किया जाता है। वे तर्कों के साथ देश-दुनिया के सामने अपनी बात रखते हैं। उनसे मतभिन्नता रखने वाले लोग भी उनकी वाकपटुता के कायल हैं और उनकी शालीनता पर मुग्ध रहते हैं। 
        बड़ी संख्या में युवा पत्रकारों ने बल्देव भाई से सामाजिक और राष्ट्रीय सरोकारों की मूल्याधारित पत्रकारिता की सीख लेकर मीडिया में खास मुकाम बनाया है। इनमें से कई तो प्रमुख समाचार-पत्रों के संपादक हैं। यह उनकी सबसे बड़ी पूंजी है। बल्देव भाई शर्मा जैसे सात्विक और साफ-सुथरे लोग आज की पत्रकारिता में कम ही देखने को मिलते हैं। पत्रकारिता के इतने लम्बे सफर में उन पर कोई दाग नहीं लगा। वे कोयले की खान में हीरे की तरह निश्कलंक चमक रहे हैं। 
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" बल्देव भाई शर्मा ने पत्रकारिता को कभी करियर बनाने का जरिया नहीं बनाया वरन उन्होंने सदैव समाजोन्मुखी पत्रकारिता की। हिन्दी पत्रकारिता में बल्देव भाई एक प्रमुख हस्ताक्षर हैं। उनके व्यक्तित्व की बात की जाए तो वे बड़े सरल हृदय के हैं। प्रत्येक व्यक्ति के लिए सहज हैं। कर्मठ हैं। सादगी पसंद हैं। " 
- यशवंत इंदापुरकर, पत्रकार एवं सामाजिक कार्यकर्ता

2 टिप्‍पणियां:

  1. बल्देव भाई शर्मा जी और राकेश सिन्हा जी..दो ही ऐसे लोग मैंने देखे हैं, जो राष्ट्रवादी मसलों पर अपनी बातें भावनात्मक ढंग से न रखकर तर्कपूर्ण ढंग से रखते हैं..। उनकी तारीफ में इतने शब्द भी कम हैं.....बल्देव भाई जी को प्रणाम

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