सोमवार, 31 दिसंबर 2012

दामिनी कह गई- अब सोना नहीं

 दु: खद, बेहद दु:खद 2012 का आखिरी शनिवार। दामिनी चली गई। हमेशा के लिए इस बेदर्द दिल्ली से। बेहया दुनिया से, जहां उसे सिर्फ मांस की तरह देखा गया। भेडिय़ों ने नोंचा था, 13 दिन पहले उसका जिस्म। १३ दिन बाद मौत हो गई भारत की अस्मिता की। घनघोर शर्मनाक दिन था 16 दिसंबर, जब भारत के दिल में महज रात 9 बजे, चलती बस में दामिनी की आत्मा का बलात्कार किया ६ हरामखोर भेडिय़ों ने। 17 दिसंबर की सुबह लज्जा से सिकुड़ गया था सारा देश (युवा), जमा हो गया राजपथ पर, इंडियागेट पर और संसद के माथे पर। आक्रोशित, उद्ेलित, बेबस देश अपनी ही सरकार से पूछ रहा था- नारी को पूजने वाले देश में अब नारी कहां सुरक्षित रह गई है? सरकार आखिर करती क्या है? कब तक यूं ही तार-तार होती रहेगी मर्यादा, आजादी और दामिनी?
    शर्मनाक आंकड़ा है- भारत में हर 20 मिनट में एक दामिनी के साथ बलात्कार होता है और हवस का शिकार बनाया जाता है। हर 25 मिनट में किसी न किसी सार्वजनिक जगह, बस, ट्रेन, चौराहा, मॉल, स्कूल-कॉलेज या बाजार में दामिनी को छेड़ा जाता है। उस पर अश्लील फब्तियां कसी जाती हैं। ये इस हद तक अश्लील और अमर्यादित होती हैं कि कई दामिनी घर जाकर जिंदगी ही खत्म कर लेती हैं। वर्ष 2009 में 23 हजार 996, वर्ष 2010 में 25 हजार 215, वर्ष 2011 में 26 हजार 436 और वर्ष 2012 में भी लगभग बीते वर्ष के बराबर दामिनी भूखे जानवरों का ग्रास बनीं। लेकिन, देश अब जागा। देर से ही सही जागा तो सही वरना और देर हो जाती। ये मामले ऐसे हैं, जिनमें चार्जशीट दाखिल हुई। इसके इतर कई मामले तो थाने ही नहीं पहुंच पाते तो कई मामले थाने में ही समझौते के बाद खत्म हो जाते हैं। इतना ही नहीं उक्त मामलों में महज 22 फीसदी बलात्कारियों को ही सजा हुई। जबकि बलात्कार की शिकार प्रत्येक दामिनी रोज सजा पा रही है। जिंदगीभर भेडिय़े की हरकत उसे भीतर ही भीतर खाये जाती है।
    देश इस बार जागा था कि अपराधियों को फांसी से कम सजा पर नहीं मानेगा, चुप नहीं बैठेगा। देश की यह स्व स्फूर्त जाग्रति है। सोशल मीडिया की इसमें अहम भूमिका है। निरुत्तर सरकार देश को जवाब देने की जगह पुलिस को देश पर लाठियां भांजने का हुक्म देती है। लेकिन, इस बार गुस्सा पानी का बुलबुला नहीं था। युवा राजपथ पर डट गए, सह गए पानी की तेज धार। आंसू गैस के गोले क्या रूलाते आंखें तक 16 दिसंबर को ही सूख गईं थी। युवा जोश के सामने बेकार साबित हुए पुलिस के अश्रु गोले। पीठ, पैर और सीने पर लाठी खाकर भी मुंह से उफ नहीं निकली, निकली तो बस एक आवाज- वी वांट जस्टिस। बलात्कारियों को फांसी दो। देश की अस्मित की सुरक्षा की गारंटी दो..... सरकार फिर भी खामोश रही। सोनिया के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की चुप्पी आज भी कायम रही। युवराज हमेशा की तरह लापता थे। मंत्री फितरत के मुताबिक आज भी देश को टरकाने के मूड में दिखा। दिल्ली की महारानी एक बार भी पीडि़त के हाल जानने नहीं पहुंची। सब दूर से निराश युवा इंसाफ की आस लिए नए नवेले राष्ट्रपति प्रणव दा के पास भी गया था लेकिन वहां भी सन्नाटा ही पसरा था। न्याय नहीं मिलता देख आखिर युवा मन उखड़ गया। लेकिन, हारा नहीं। अब तो मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमाचल.... मुंबई यानी सारा देश साथ खड़ा हो गया दामिनी के हक के लिए। आधी आबादी के लिए। सृष्टि के शक्ति केन्द्र के सम्मान में सब दूर आवाज बुलंद हो उठी। जज्बा, उत्साह, उमंग, हौसला, गुस्सा और आक्रोश ऐसा दिखा कि सरकार से आर-पास की लड़ाई हो ही जाए। नारा बुलंद हुआ- कितना दम है दमन में तेरे, देखा है और देखेंगे। गूंजी मांग - जब तक इंसाफ नहीं होता ये आक्रोश ठंडा नहीं पड़ेगा। कानून कड़े बनाए। सुधार लाओ। सुरक्षा पुख्ता करो। बलात्कारियों को फांसी दो। 13 दिन से आक्रोश बरकरार था। अब अलविदा कह गई दामिनी। तो क्या गुस्से को ठंडा होने दिया जाए। सरकार तो यही चाहती है। लेकिन, आज फिर युवा देश ने कह दिया- अभी न्याय बाकी है, गुस्सा बाकी है, लड़ाई जारी है और जारी रहेगी इंसाफ होने तक। 29 दिसंबर को दामिनी चली गई हमें बेशर्म व्यवस्था से अपने अधिकार के लिए लडऩा सिखाकर। उसकी सीख जाया नहीं होने देना है, गुस्सा खत्म नहीं होने देना है। कभी नहीं जागने वाली नींद में जाने से पहले कह गई वो- अब और कोई दामिनी नहीं बननी चाहिए। न्याय चाहिए। मेरे हक में उठे हाथ, आवाज अब खामोश नहीं होने चाहिए। युवा मन में जो उबाल आया है वह ठंडा नहीं होना चाहिए। नींम बेहोशी से जो देश जागा है तो अब सोना नहीं चाहिए।
    इन १३ दिन में राजनीति के पतन का शीर्ष भी दिखा तो हड़बड़ाए नेताओं का मानसिक दिवालियापन भी सामने आया। लोमहर्षक, बीभत्स, नृशंस अपराध के बाद भी नेता जुबान संभालकर बात नहीं कर पाते। प्रणव दा के बेटे अभिजीत कहते हैं कि कैंडल मार्च फैशन हो गया है। दिन में प्रदर्शन, शाम को कैंडल जलाने के बाद ये रंगी-पुती युवतियां पब में मौज उड़ाती हैं। एक महिला नेता कहती है कि जब छह लोगों ने घेर लिया था तो उसे वीरता दिखाने की क्या जरूरत थी, सरेंडर कर देना चाहिए था। महिला अधिकारी की हितैषी एक अन्य महिला कहती है कि इतनी रात फिल्म देखने जाएंगी तो यही होगा। घोर आपत्तिजनक हैं ये बयान। चाय की गुमठी और चौराहे पर पान की पीक थूकते लोग भी शायद इस समय ऐसी बात कर रहे हों। दूसरे नेता कहते हैं कि देश में अराजक स्थितियां हैं। सवाल उठता है कि इन स्थितियों के लिए कौन जिम्मेदार है? कौन संभालेगा देश? एक ने कहा कि माहौल ऐसा है कि मेरी बेटियां भी सुरक्षित नहीं। महोदय यह सफेद झूठ है। आपकी बेटियां जिस दिन असुरक्षित हो जाएंगी तो झट से कड़े कानून आ जाएंगे। तब दरिंदे 13 दिन तक जीवित नहीं रहेंगे। शर्म करो... संसद और विधानसभा में बैठकर काम करने की जगह अश्लील फिल्म देखते हो, दामिनी पर बहस होती है तो खीसें निपोरकर हंसते हो। कुछ काम करो ताकि आम आदमी की बेटी, पत्नी, बहू घर से बिना संकोच निकले, शान से सिर उठाकर सड़क पर चले और बिना किसी अपमानजनक स्थिति का सामना किए खुशी मन से घर लौट सके। कानून में सुधार लाओ। वैज्ञानिक तरीके से सबूत जुटाए जाएं। पुलिस को संवेदनशील बनाओ। गवाहों को सरंक्षण दो। फास्ट ट्रैक कोर्ट पर सुनवाई हो ताकि अपराधी बचकर न निकल सकें। उनमें खौफ पैदा हो। गलत काम की कीमत उन्हें चुकानी पड़े।
    आखिर में लंबी नींद से जागे हुए देश से अपील है। जिंदगी की जंग हारने से पहले दामिनी जगा गई है देश को। 13 दिन देश सोया नहीं, थका नहीं, डरा नहीं सरकार के वार से। इस जज्बे को बनाए रखना होगा वरना फिर किसी चलती बस में, होटल में, पब में या फिर किसी चाहरदीवारी के भीतर तार-तार कर दी जाएगी दामिनी।

रविवार, 23 दिसंबर 2012

ठाकरे पथ के राही प्रभात

 म ध्यप्रदेश में प्रभात झा ने महज ढाई साल में भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष पद को सुशोभित किया और शक्तिशाली भी बनाया। वरिष्ठ नेता कहते हैं कि जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की राजनीति में स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे अति सक्रिय नेता थे। उनका क्षण-क्षण पार्टी के विस्तार के लिए समर्पित था। पार्टी की जड़ें मजबूत करने में उनका अतुलनीय योगदान है। उन्होंने देश के कई प्रांतों में भाजपा को खड़ा किया। मध्यप्रदेश की राजनीति का सौभाग्य है कि इसे कुशाभाऊ ठाकरे ने सींचा। प्रदेश के इस छोर से उस छोर तक प्रवास किया, कई बार किया। कभी थके नहीं, कभी रुके नहीं, कभी थमे नहीं। छोटे से लेकर बड़े, सभी कार्यकर्ताओं के लिए वे सहज थे। दूसरे दल के नेताओं के लिए भी अनुकरणीय थे। प्रभात झा को ऐसे ही कुशल संगठनकर्ता का सानिध्य मिला। मार्गदर्शन मिला। सार्थक और सकारात्मक काम करने की प्रेरणा मिली। सच के लिए अडऩे और लडऩे का हौसला मिला। कुशाभाऊ ठाकरे के विराट व्यक्तित्व की तुलना प्रभात झा से नहीं की जा सकती लेकिन राजनीति की जिस राह पर प्रभात झा ने कदम रखा है, जिस राह पर वे बढ़ रहे हैं, उस राह पर स्वर्गीय ठाकरे के पग चिह्न हैं। वह राह ठाकरे की राह है। वह सही राह है। सकारात्मक और असली राह है।
    प्रभात झा ने ढाई साल पहले प्रदेशाध्यक्ष बनते ही अपने काम करने के तौर तरीके जाहिर कर दिए थे। मेरे स्वागत-सत्कार में कोई बैनर और होर्डिंग नहीं लगाया जाएगा। कार्यकर्ताओं को यही सबसे पहले निर्देश थे उनकी ओर से। वे जानते हैं, भारतीय जनता पार्टी के पितृपुरुष कभी नहीं चाहते थे कि भाजपा में व्यक्ति पूजा को महत्व दिया जाए। व्यक्तिवाद को बढ़ावा मिले। यह कैडर आधारित पार्टी है। यहां संगठन और सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं, व्यक्ति नहीं। उन्होंने दूसरा जरूरी काम किया कि पार्टी को पार्टी कार्यालय से चलाया, बंगले से नहीं। प्रभात झा से पूर्ववर्ती प्रदेशाध्यक्ष बंगले से ही सारे राजनीतिक कार्यक्रम संचालित करते थे। ऐसे में पार्टी कार्यालय खाली-खाली सा रहता था। प्रभात झा के प्रदेशाध्यक्ष बनने से पार्टी कार्यालय में रौनक बढ़ गई। लगने लगा कि यह सत्तारूढ़ पार्टी का कार्यालय है। प्रदेश के पार्टी कार्यालय में ही प्रदेशभर के कार्यक्रमों की रूपरेखा बनना शुरू हो गई।
    प्रभात झा का व्यक्तित्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में भी गढ़ा गया है। वहीं उन्होंने सीखा कि कार्यकर्ता को अपने कार्य से सीख दो, सिर्फ भाषण से नहीं। उन्होंने मंडल-मंडल में प्रवास शुरू कर मंत्रियों, विधायकों और पार्टी पदाधिकारियों को नींद से जगाना शुरू किया। उन्होंने सबको साफ शब्दों में कह दिया आपको जो जिम्मेदारी पार्टी ने दी है, जनता ने दी है उसका निर्वहन ठीक ढंग से किया जाए। अपने-अपने क्षेत्र में लोगों से मिलो, संपर्क करो, दौरे करो। कुर्सी मिल गई है तो काम करो वरना कुर्सी जाते देर नहीं लगेगी। एक साधारण से कार्यकर्ता को अहसास कराया कि भाजपा तुम्हारी पार्टी है, तुम्हारे सहयोग के बिना नहीं चल सकती। सेठ-साहूकारों की जगह उन्होंने आम कार्यकर्ता से १०-१० रुपए चंदा एकत्र कराया ताकि कार्यकर्ता में समर्पण का भाव जगे। स्वर्गीय कुशाभाऊ ठाकरे के बाद प्रभात झा ऐसे प्रदेशाध्यक्ष हैं जिन्होंने अपने एक ही कार्यकाल में प्रदेश के लगभग सभी मंडलों में प्रवास किया, एक बार नहीं कई जगह तो कई बार पहुंचे। उनके लगातार संपर्क और अथक मेहनत का ही नतीजा रहा कि भाजपा उनके कार्यकाल में कोई भी उपचुनाव नहीं हारी। कांग्रेस के गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में भी जीत का परचम पहराया। स्थानीय नगर पालिका और नगर पंचायतों के चुनाव में भी पार्टी को विजय मिली। प्रभात झा ने कभी भी किसी जीत को अपनी या किसी और व्यक्ति विशेष की मेहनत नहीं बताया। उन्होंने हर जीत के बाद यही कहा कि यह जीत पार्टी की जीत है, अनुशासन की जीत है, कार्यकर्ताओं की मेहनत की जीत है। वर्ष २०११ में प्रदेश में कई जगह स्थानीय निकायों के चुनाव चल रहे थे। प्रभात झा प्रदेशाध्यक्ष होने के नाते सभी जगह पहुंचकर कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ा रहे थे। शाजापुर नगरपालिका के अध्यक्ष पद के प्रत्याशी की आर्थिक स्थिति कुछ कमजोर थी। चुनाव खर्च उसके लिए मुश्किल खड़ी कर रहा था। प्रभात झा को इस बात का जैसे ही पता चला, उन्होंने तुरंत मौके पर ही उन्हें अपना एक माह का वेतन उस कार्यकर्ता को चुनाव लडऩे के लिए दे दिया। उनके इस प्रयास का असर बाकी कार्यकर्ताओं पर भी हुआ। शाजापुर नगरपालिका का अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लड़ रहे कार्यकर्ता के चुनाव प्रचार के लिए उसी दिन करीब १२ लाख रुपए जमा हो गए।
    प्रभात झा भाजपा सरकार के श्रेष्ठ पालक साबित हुए। वे उच्चकोटि के पत्रकार रहे हैं। पत्रकारों को क्या खबर चाहिए, बेहतर जानते हैं प्रभात झा। अपने इसी चातुर्य का फायदा उन्होंने मुख्ममंत्री और भाजपा सरकार का संरक्षण करने में किया। वे ढाई साल तक पत्रकारों से लेकर कांग्रेसी नेताओं को अपने मायाजाल में ही उलझाकर रखे रहे। लगातार कांग्रेसी नेताओं पर बयानबाजी कर उन्हें घेरे रखा। उन्हें फुरसत ही नहीं दी कि वे भारतीय जनता पार्टी को सदन या सदन के बाहर घेर सकें। प्रदेश के लोकप्रिय मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से अधिक समाचार माध्यमों और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय प्रभात झा हो गए थे। यही कारण है कि प्रदेश में मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह राहुल ने उन्हें डेंजर की उपाधि से नवाजा। प्रभात झा का कार्यकाल पूरा होने पर अजय सिंह ने राहत की सांस लेते हुए कहा भी - अहा! हमारा डेंजर चला गया।
    हालांकि प्रभात झा को दूसरा कार्यकाल नहीं मिलना अप्रत्याशित है। उनके मुताबिक परमाणु विस्फोट जैसा ही है। २०१३ विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं। ढाई साल में प्रभात झा ने जो मेहनत की उसकी परीक्षा का समय आ रहा था। प्रभात झा की संगठन पर बढ़ती पकड़ और लोकप्रियता प्रदेश के मुख्यमंत्री को सशंकित करने लगी थी। उस पर भी प्रभात झा मुख्यमंत्री को हटाकर स्वयं प्रदेश के मुखिया बनना चाहते हैं, जैसी अफवाहों से बाजार गर्म था। इन सब कारणों से शिवराज सिंह चौहान प्रभात झा को फिर से भाजपा प्रदेशाध्यक्ष की कुर्सी पर देखना नहीं चाहते थे। वे अपने किसी विश्वस्त सिपहसलार को पार्टी संगठन की कमान सौंपना चाह रहे थे। वे ऐसे किसी चेहरे की तलाश में थे कि उनके सामने नरेन्द्र सिंह तोमर को आगे कर दिया गया। एक सुनियोजित योजना के तहत नरेन्द्र सिंह प्रदेश में अपनी वापसी के लिए प्रयासरत भी थे। आखिर  शिवराज सिंह चौहान का वरदहस्त पाकर नरेन्द्र सिंह तोमर प्रदेश अध्यक्ष बन गए हैं। हालांकि इसके पीछे राजनीति की लंबी कहानी है, जिसके बीज उत्तरप्रदेश के चुनावी संग्राम के समय ही बोए जा चुके थे। इसकी फसल नरेन्द्र सिंह तोमर काटेंगे। शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व में २०१३ के चुनाव जीतना तय बात है। यह भी तय बात है कि शिवराज सिंह चौहान की मुख्यमंत्री के पद पर ताजपोशी होगी। लेकिन, यह बात भी गांठ बांध ली जाए कि शिवराज सिंह चौहान अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाएंगे, मुख्यमंत्री की कुर्सी पर कोई और ही सुशोभित होगा। शिवराज सिंह चौहान जिस नरेन्द्र सिंह तोमर को अपना हितैषी और खास समझ रहे हैं तो उन्हें करीब तीन साल पुराना घटनाक्रम याद करना होगा। ये वही ठाकुर नरेन्द्र सिंह तोमर हैं जो शिवराज सिंह चौहान को ओबीसी कैटेगिरी का ठाकुर समझते हैं। उन्हें अपने से कमतर आंकते हैं। ये वही नरेन्द्र सिंह तोमर हैं जिन्होंने ग्वालियर में स्थापित महाराजा मानसिंह प्रतिमा को इसलिए दूध से धुलवा दिया था क्योंकि उसका अनावरण पिछड़ा वर्ग के शिवराज सिंह चौहान ने किया था। खैर, राजनीति में कब अपने पराए हो जाते हैं और पराए अपने, कहा नहीं जा सकता। फिलहाल तो यही कहना होगा कि भाजपा तमाम खामियों के बाद भी सच्ची लोकतांत्रिक पार्टी है। यही कारण है कि एक ऐसा आदमी जो स्वदेश के दफ्तर में जिस टेबल पर अपनी खबर लिखता था, रात में उसी टेबल पर सो जाता था, भारतीय राजनीति में उत्तरोत्तर सोपान चढ़ रहा है। प्रभात झा ने सिद्धांत, मूल्यपरक और स्वस्थ राजनीति की जो लकीर खींची है, उम्मीद है भाजपा उस पर आगे बढ़े। प्रभात झा ने यही किया, भाजपा को कांग्रेस संस्कृति से बाहर निकालकर सादगी, शुचिता और मूल्यों की राजनीति की धारा में लाए। 
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बुधवार, 19 दिसंबर 2012

सब समाज का है 'शिवराज'

 म ध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान समाज के प्रत्येक वर्ग के करीबी हो गए हैं। जब कोई अपना हो जाता है तो उसे उसके मुख्य नाम से नहीं बुलाते। उसके लिए प्यार से एक नया नाम यानी निकनेम रखते हैं। प्रदेश में लिंगानुपात बहुत अधिक है। लड़का-लड़की के भेद को कम करने के लिए मुख्यमंत्री ने लाडली लक्ष्मी योजना शुरू की। इसके बाद शिवराज सिंह प्रदेशभर की बच्चियों के 'मामा' बन गए। किसान खुशहाल हों तो प्रदेश भी तरक्की की राह पकड़ ले। यही सोचकर मुख्यमंत्री  ने किसानों के लिए जीरो फीसदी पर कर्ज मुहैया कराने की योजना शुरू की। यानी ब्याज जीरो, किसान हीरो का नारा देकर वे किसानों के मसीहा बन गए। किसान पुत्र बन गए। हाल ही में बुजुर्गों को मुख्यमंत्री तीर्थदर्शन योजना के तहत तीर्थ यात्रा पर भेजकर शिवराज इस युग के 'श्रवण कुमार' बन गए। काफिला रुकवाकर किसी की दुकान से जलेबी तो किसी ठेलेवाले से पोहा खाना, लोगों के कंधे पर हाथ रखकर उनका हालचाल पूछना और गांव-गांव संपर्क करने से उन्हें 'पांव-पांव वाले भैया' के नाम से पुकारा जाने लगा। योग और गीताज्ञान को स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम में शामिल कराकर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को संघ का खाटी 'स्वयंसेवक' कहलाने में गुरेज नहीं। भेष बदलकर, चोरी-छिपे जनता का हाल जानने सड़कों पर निकलकर 'विक्रमादित्य' बन गए शिवराज। प्रदेश में लोकप्रियता के चरम पर हैं शिवराज सिंह चौहान। मुख्यमंत्री की लोकप्रियता के बारे में एक लाइन में कुछ कहना हो तो - मध्यप्रदेश का मुखिया भारत के दिल पर काबिज है और आगे भी रहने वाला है।
    शिवराज सिंह चौहान की विनम्रता, पार्टी गाइडलाइन का पालन, वरिष्ठ नेताओं व पार्टी संगठन से सांमजस्य और विरोधियों की प्रशंसा करने के गुण उन्हें अन्य नेताओं से अलग करते हैं। 29 नवंबर, 2005 को उन्होंने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। सात साल से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल रहे शिवराज सिंह चौहान की शैली ऐसी है कि कोई उनसे नाराज नहीं होता। यहां तक कि विरोधी भी उनकी विनम्रता के मुरीद हो जाते हैं। विधानसभा की कार्यवाही में भी अकसर दिख जाता है कि कांग्रेस भाजपा सरकार को तो घेरने के प्रयास करती दिखती है लेकिन सीएम को निशाना नहीं बनाती। हाल ही में ग्वालियर में स्वर्गीय माधवराज सिंधिया प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में कांग्रेस के युवा मंत्री ज्योतिरादित्य ने मुख्यमंत्री की कार्यशैली, विनम्रता और वाकपटुता की खुलकर प्रशंसा की। सिंधिया ने मुख्यमंत्री की प्रशंसा उस वक्त की है जबकि प्रदेश कांग्रेस का एक धड़ा उन्हें कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट कर २०१३ के चुनाव फतेह करना चाहता है। भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी भी कहते हैं कि एक सफल शासक में जिस प्रकार की विनम्रता जरूरी है, शिवराज का व्यक्तित्व उस पहलू को बहुत उजागर करता है।
    किसान परिवार में जन्मे और किरार जाति (पिछड़ा वर्ग) से संबंध रखने वाले शिवराज सिंह चौहान का भाषण देना का अंदाज भी निराला है। जिस तरह कथावाचक अपने श्रोताओं को बांधकर रखता है वैसे ही शिवराज सिंह चौहान अपनी बात आहिस्ता-आहिस्ता जनता के मन में गहरे तक उतार देते हैं। सरकार की उपलब्धि पर वे मंच से जनता की हामी भरवा लेते हैं और केन्द्र सरकार के खिलाफ अपनी बात पर लोगों की मुहर भी लगवा लेते हैं।
    जाति फैक्टर का भारतीय राजनीति में बड़ा महत्व है। किसी भी प्रांत की राजनीति पर नजरें दौड़ा लें तो जाति बड़ा कारक सामने आता है। उत्तरप्रदेश में यादव, ब्राह्मण और दलित राजनीति का बोलबाला है। बिहार में भी भाजपा के आने से पहले यही हाल था। शिवराज सिंह चौहान इस मामले में भी अन्य राजनेताओं से अलग दिखते हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा में पाए गुणों के कारण ही वे समरस समाज का स्वप्न देखते हैं और जातिगत राजनीति से दूर रहते हैं। वर्ष २००५ में पहली बार मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवराज सिंह चौहान को ग्वालियर आने के लिए उनके जातिगत समाज ने बुलावा भेजा। किरार समाज ने अपनी जाति के साधारण से किसान पुत्र को बुलंदी चूमने पर सम्मानित करने का निर्णय लिया था। वीरागंना लक्ष्मीबाई समाधिस्थल के सामने मैदान में मुख्यमंत्री के सम्मान का समारोह आयोजित किया गया। मंच से किरार जाति के नेताओं ने समाजहित की चिंता करते हुए कुछ अपेक्षाएं अपने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के समझ व्यक्त कीं। माइक संभालते ही मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने सम्मान के लिए समाज को धन्यवाद दिया। इसके बाद उन्होंने भरे मंच और मैदान में कहा- शिवराज किसी एक समाज का नहीं है। उसे प्रदेश के हर समाज, प्रत्येक वर्ग की चिंता का गुरुतर दायित्व प्रदेश की सारी जनता ने दिया है। इसीलिए आपसे माफी मांगते हुए कहता हूं कि मैं महज किरार समाज का नहीं वरन् सब समाज का हूं।
    भारतीय राजनीति में किसी भी नेता के लिए जाति के बड़े-बड़े नेताओं के सामने इस तरह की बात कहना इतना आसान नहीं होता लेकिन जिसे समाज को समरस बनाना हो उसके लिए इतना कठिन भी नहीं होता है। वरना वोटों और कुर्सी के भूखे नेता ऑनर किलिंग तक का समर्थन कर जाते हैं। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का यही व्यक्तित्व है, जिसके आगे विपक्ष टिक नहीं पा रहा है और भाजपा के लिए मिशन-२०१३ की राह भी आसान दिख रही है। 

शनिवार, 1 दिसंबर 2012

इमेज सेट करने का खालिस षड्यंत्र

 के न्द्र सरकार यानी यूपीए-२ भ्रष्टाचार के मामलों में अपनी साख बुरी तरह खो चुकी है। पहले सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियों ने सरकार की जमकर किरकिरी कराई। बाद में, महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक (कैग) ने सारी ठसक छीन ली। यह अलग बात है कि सरकार और उसके नुमाइंदों ने बेशर्मी की मोटी चादर ओढ़ रखी है। बेहयाई की हद देखिए, जिसने भी सरकार के कामकाज के तरीके पर अंगुली उठाई, सरकार चून बांधकर (फोकस करके) उसके पीछे पड़ गई। चाहे वह बाबा रामदेव हों या अन्ना हजारे या फिर अरविंद केजरीवाल। सरकार के नुमाइंदों ने सब को चोर, ठग और सिरफिरा करार दे दिया। यूपीए-२ अब सीएजी को बदनाम करने के लिए प्रोपेगंडा रच रही है। भारतीय राजनीति के इतिहास में आपातकाल के काले पृष्ठ को छोड़ दिया जाए तो संवैधानिक संस्था को इस तरह कभी निशाना नहीं बनाया गया है। सीएजी को घेरना, उसकी विश्वसनीयता, निष्पक्षता और ईमानदारी पर सवाल खड़े करना बेहद हल्की राजनीति का उदाहरण भर है।
        भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी कांग्रेस ने सीएजी के पूर्व अधिकारी आरपी सिंह के दावे को हथियार बनाकर भारतीय जनता पार्टी और सीएजी विनोद राय पर हमला बोल दिया है। आरपी सिंह ने दावा किया है कि सीएजी ने टूजी घोटाले में १.७६ लाख करोड़ के घाटे का जो आंकड़ा पेश किया है वह सही नहीं है। असल घाटा तो २६४५ करोड़ रुपए था। आरपी सिंह ने यह आरोप भी लगाया है कि रिपोर्ट पर जबरन दस्तखत कराए गए हैं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया है कि घाटे का आंकड़ा बड़ा दिखाने के लिए लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने सीएजी पर दबाव डाला था। इन आरोपों को मुद्दा बनाकर यूपीए की सर्वेसर्वा सोनिया गांधी से लेकर हाल ही में प्रमोशन पाए सूचना प्रसारण मंत्री मनीष तिवारी, कानून मंत्री अश्विनी कुमार और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने भाजपा और संवैधानिक संस्था सीएजी पर सीधा हमला बोला है। इस मसले पर जरा गौर करें तो स्थिति स्पष्ट हो जाएगी कि यूपीए-२ किसी भी हद तक जाकर अपनी इमेज सेट करने की कोशिश कर सकती है। एक ऐसे व्यक्ति की बातों को आधार बनाकर संवैधानिक संस्था पर आरोप लगाए जा रहे हैं, जिसने टूजी पर हुए भारी बवंडर के बीच तो चुप्पी साधे रखी। भ्रष्टाचार के आरोप में कई मंत्री-संत्री जेल की सैर कर आए लेकिन आरपी सिंह कुछ बोले नहीं। इतना ही नहीं इन महाशय ने लोक लेखा समिति और टूजी घोटाले की जांच कर रही जेपीसी के समझ भी यह सच्चाई नहीं उगली थी। सेवानिवृत्त होने के १४ महीने बाद मुंह खोला है। आरपी सिंह के रवैए को देखकर भाजपा के इस आरोप में दम दिखती है कि आरपी सिंह कांग्रेस के हाथ खेल रहे हैं। कांग्रेस सीएजी को झूठा साबित करके अपना दामन उजला दिखने की कोशिश में हैं। जबकि कांग्रेस का दामन कोयले में भी खूब काला हो चुका है। यूपीए-२ के मंत्री कपिल सिब्बल ने तो शुरुआत में ही 'जीरो लॉस' की थ्योरी पेश की थी, जिससे सरकार की जमकर थू-थू हुई। बाद में, सरकार ने टूजी मामले की जांच कराई और अपने ही मंत्रियों को इस मामले में जेल की हवा खिलवाई। यह सवाल उठता है कि यदि आरपी सिंह के दावे सही हैं तो क्या सरकारी एजेंसियों की जांच गलत है? क्या सुप्रीम कोर्ट गलत है? चलो एक बार को मान भी लें कि आरपी सिंह का यह दावा सच है कि घाटे का आंकडा १.७६ लाख करोड़ बहुत अधिक ज्यादा है लेकिन फिर भी सरकार ने खेल तो खेला ही न। घोटाला छोटा ही सही, हुआ तो। फिर सरकार अपने को पाक-साफ दिखने की जद्दोजहद क्यों कर रही है? क्यों नहीं अपनी गलती मानकर देशवासियों से माफी मांग लेती? क्यों नहीं भ्रष्टाचार के दोषियों को सजा देती? लेकिन नहीं, कांग्रेसनीत सरकार गलती स्वीकार करने की जगह आरपी सिंह को ढाल बनाकर सीएजी पर अंगार उगल रही है।
           कांग्रेस सीएजी को झूठा और नीचा दिखाने का कोई भी मौका हाथ से नहीं जाने देना चाहती है। हालांकि हर बार उसे ही मुंह की खानी पड़ती है। इस मामले में भी आरपी सिंह ने जैसे ही खुद को घिरता देखा तो पलटी खा गए, साथ में कांग्रेस और यूपीए-२ को भी औंधा (उल्टा) करा दिया। दो दिन ही बीते कि आरपी सिंह ने कह दिया कि १.७६ लाख करोड़ के घाटे का आंकड़ा जारी कराने में भाजपा के वरिष्ठ नेता और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने कोई दबाव नहीं डाला। पूर्व में मीडिया ने उनके बयान को गलत अर्थ में पेश किया। आरपी सिंह के पलटी खाते ही भाजपा सोनिया गांधी सहित कांग्रेसनीत यूपीए सरकार पर मुखर हो गई। टूजी स्पेक्ट्रम मामले में इससे भी कांग्रेस के बयान उसके गले की फांस बन गए थे। हाल ही में टूजी स्पेक्ट्रम की निराशाजनक नीलामी के बाद भी सरकार के ढोलों ने जमकर हल्ला मचाया था कि देखा, हमने तो पहले ही कहा था कैग ने मनगढंत आंकडे पेश किए हैं। सरकार को कोई घाटा नहीं हुआ। कैग की मिलीभगत है भाजपा के साथ, उसने जबरन यूपीए सरकार को बदनाम करने की कोशिश की। दो दिन बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने नीलामी में विसंगति पाई और सरकार की जमकर खिंचाई कर दी। मतलब साफ है, यहां भी सरकार ने सीएजी की रिपोर्ट को झूठ का पुलिंदा साबित करने के लिए नीलामी ही गलत ढंग से कर दी। 
            यूपीए-२ सरकार सीएजी से इतनी परेशान है कि उसने सीएजी के पर कतरने की तैयारी तक कर रखी है। दरअसल, जल्द ही सीएजी जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीनीकरण योजना (जेएनएनयूआरएम), मनरेगा, किसान कर्ज माफी योजना और उर्वरकों की सबसिडी में हुए घोटाले और अनियमितता को लेकर संसद में रिपोर्ट पेश करने वाली है। इससे फिर कांग्रेस की छवि पर बट्टा लगना है। इसलिए सरकार के अंदरखाने के लोगों ने सीएजी को नख-दंतहीन संस्था बनाने के प्रयास शुरू कर दिए हैं। यह बात यूं साफ होती है कि प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री वी. नारायणसामी ने ११ नवंबर को बहुसदस्यीय महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक का प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव की भनक लगते ही विपक्ष ने जमकर विरोध किया। अपने मौन के लिए विख्यात प्रधानमंत्री को आखिर बोलना पड़ा। कहा कि कई सदस्यों का महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक बनाने की सरकार की कोई मंशा नहीं है। प्रधानमंत्री ने तब भले ही कांग्रेस और सरकार की किरकिरी होने से बचाने के लिए ऐसा जवाब दिया। असल में तो सरकार सीएजी को नापने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। दरअसल, सरकार का सोचना है कि सीएजी की गलत साबित करने के बाद ही जनता के बीच उसका चेहरा चमकदार दिखेगा।
          इधर, केन्द्र सरकार ने दूसरे उपाय भी शुरू कर दिए हैं अपनी छवि सुधारने के लिए। कांग्रेस के नेता दबी जुबान में स्वीकार कर रहे हैं कि कसाब को टांगकर सरकार ने जनता को अपनी ओर खींचने की कोशिश की है। वरना, देश की संसद पर हमला करने वाले अफजल का नंबर पहले था। खैर, सब जानते हुए जनता इस बात के लिए सरकार की पीठ थपथपा रही है। लेकिन, वह सरकार के घोटालों को भूलना नहीं चाहती। कसाब की फांसी के बदले केन्द्र सरकार की १०० गलतियों को माफ करना नहीं चाहती। २१ नवंबर को कसाब की फांसी की खबर सुनकर देशवासियों ने एक-दूसरे को बधाई संदेश भेजे। इनमें उन्होंने एक-दूसरे को याद दिलाया कि केन्द्र सरकार ने यह काम बढिय़ा किया है लेकिन उसके द्वारा किए गए घोटालों को हमें भूलना नहीं है।
कांग्रेस सीएजी पर सवाल उठाकर और कसाब को फांसी पर लटकाकर इतनी आसानी से अपनी इमेज सेट नहीं कर पाएगी। दरअसल, ये जो पब्लिक है, ये सब जानती है। खास बात यह है कि इस बार पब्लिक माफ करने के मूड में दिख नहीं रही।