बुधवार, 28 मार्च 2012

ढंग से जुतियाओ तो बात बने


 ज म्मू-कश्मीर के अलगाववादी नेता सैयद अली शाह गिलानी पर भगत सिंह क्रांति सेना के कार्यकर्ताओं ने जूता उछाल दिया। शाह गिलानी नई दिल्ली में कश्मीर पर आयोजित सेमिनार में हिस्सा लेने पहुंचे थे। तेजिंदर पाल बग्गा के नेतृत्व में पहुंचे भगत सिंह क्रांति सेना के लोगों ने जूता उछालते हुए कहा कि देश के गद्दारों के साथ ऐसा ही सुलूक किया जाएगा। 
कुछ समय से देखने में आया है कि जूता खूब चल रहा है। शुरुआत में जूता विरोध में और क्रोध में चला। अब लगता है सुर्खियां बटोरने के लिए चल रहा है। भारत में सबसे पहले जूता गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर उछाला गया। ७ अप्रैल, २००९ को कथित पत्रकार जनरैल सिंह ने चिदंबरम को निशाना बनाया था। जनरैल सिंह १९८४ के सिख विरोधी दंगों के मामले में कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर को सीबीआई की ओर से क्लीनचिट दिए जाने से नाराज थे। उसके बाद तो हर कोई जूता चलाने निकल पड़ा। सुर्खियां बटोरने का आसान तरीका बन गया-जूता फेंकना। कांग्रेस के युवराज पर भी एक सभा में जूता उछाल दिया गया। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री भी नहीं बच सके। उन पर जूता फेंकने वाला तो पुलिस अधिकारी ही था। जम्मू-कश्मीर के एक अन्य अलगाववादी नेता यासीन मलिक पर भी अजमेर यात्रा के दौरान चप्पल फेंकी गई। संभवत: उनका विरोध कर रहे प्रदर्शनकारी पर जूता नहीं होगा, इसलिए उसने चप्पल ही फेंक दी। भ्रष्टाचारी और देश विरोधी बयान देने वालों को ही निशाना बनाया जा रहा हो ऐसा नहीं है, कुछ सिरफिरों ने भ्रष्टाचार के खिलाफ जन-जन जागरण में लगी अन्ना टीम को भी एक-दो बार निशाने पर लिया। अन्ना टीम के अतिसक्रिय सदस्य अरविंद केजरीवाल सहित किरण बेदी, कुमार विश्वास और मनीष सिसौदिया जब देहरादूर में सभा को संबोधित कर रहे थे तो शराब के नशे में धुत एक युवक ने मंच की ओर जूता उछाला दिया था। वहीं कालेधन के खिलाफ गांव-गांव तक रथयात्रा निकालने वाले योगगुरु बाबा रामदेव की ओर सीआरपीएफ के जवान ने जूता उछाल दिया था। 
पी. चिदंबरम से शाह गिलानी तक कई नाम हैं, जिन पर जूता उछाला जा चुका है। यह फेरहिस्त हो भी लंबी होगी इसकी संभावना नजर आ रही है। लेकिन, जूता चलाने और उछाने की (कु) परंपरा से कोई बदलाव आया, ऐसे दिखता नहीं। ऐसे में जूता चलाने वालों को जूता चलाने के कुछ नए तरीके सोचने होंगे। हवा में जूता उछालने का तरीका बेहद पुराना, घटिया और उबाउ हो गया है। जूता उछालकर सुर्खियां बटोरने वालों को मेरी सलाह है कि वे श्रीलाल शुक्ल की रागदरबारी का पारायण कर लें। उसमें जूता चलाने के नए और कुछ पारंपरिक तरीके दिए गए हैं। जूता चले तो कुछ इस ढंग से चले कि व्यवस्था में परिवर्तन आ सके अन्यथा कोई मतलब नहीं। सुर्खियां ही बटोरना है तो दिल्ली के विश्वविद्यालय जेएनयू के विद्यार्थियों से सीख लें। उन्हें चर्चित रहने के फण्डे बेहतर पता हैं। कभी वे हिन्दू देवी-देवताओं का अपमान कर महान कम्युनिस्ट बन जाते हैं तो कभी रामायण का (कु)पाठ कराने की जिद पाल कर चर्चित हो जाते हैं। यही नहीं हाल ही में उन महान सेकुलरों ने विश्वविद्यालय की मेस में सूअर और गाय का मांस परोसे जाने की मांग की है। ये भी जूतों के ही भूत हैं बातों से नहीं मानेंगे लेकिन सवाल वही कि जूता कैसे चलाएं कि कुछ बात बने।

जूता चलाने की पद्धतियां 

रागदरबारी में वर्णित और मेरे अंचल में प्रचलित कुछ जूता चलाने की पद्धतियां यहां में प्रस्तुत कर रहा हूं ताकि जूता चलाने वाले अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। किसी को ढंग से जुतियाना (जूता मारना) हो तो पहले जूते को तीन दिन तक पानी में भिगाकर रखें। यह ध्यान रखें कि जूता फटा हुआ हो। क्योंकि फटा हुआ और तीन-चार दिन पानी में भिगाया हुआ जूता मारने में अच्छी आवाज करता है, दूर-दूर तक लोगों को सूचना मिल जाती है कि कहीं जूता चल रहा है। तीन दिन पानी में गीला होने से जूते का चमड़ा जरा हरिया जाता है, तब मार भी अच्छी पड़ती है। इस पद्धति का उपयोग देश और संस्कृति विरोधी कार्यों में संलिप्त लोगों के लिए करना चाहिए। जब बात पढ़े-लिखे आदमी को जुतियाने की हो तब गोरक्षक जूते का उपयोग करना चाहिए। गोरक्षक जूते से पिटाई करने में मार तो बढिय़ा पड़ जाती है पर आदमी बेइज्जती से बच जाता है। वह अपने बचाव में कह भी सकता है कि मेरी पिटाई ऐरे-गैरे जूते से नहीं गोरक्षक जूते से हुई है। इसके अलावा जुतियाने का सबसे बढिय़ा और शानदार तरीका है कि गिनकर सौ जूते मारने चलें, निन्यानबे तक आते-आते पिछली गिनती भूल जाएं और फिर से एक से गिनकर, नए सिरे से जूता लगाना शुरू कर दें। जूता चलाने में नवाचार तो होना ही चाहिए। इसलिए जूता चलाने का ख्याल मन में रखने वालों से निवेदन है कि वे इनमें से कोई फण्डा अपनाएं या फिर कुछ और नया करें। कुल मिलाकर जूता कुछ ऐसे चले कि बात बन जाए। 

शुक्रवार, 16 मार्च 2012

देशभक्तों पर तलवार, घोटालेबाजों को ढाल


 कां ग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) सरकार की चाल-चरित्र संदिग्ध है। जनता को उनकी नीति-नीयत भी विश्वसनीय नहीं है। यूपीए सरकार एक ओर तो भ्रष्टाचारियों और आतंकवादियों को बचाने में जुटी नजर आती है वहीं दूसरी ओर देश के लिए जीवन खपा देने वालों को अकारण ही प्रताडि़त करने में जी जान से जुटी है। इसका प्रमाण है भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चार शीर्षस्थ वैज्ञानिकों को कालीसूची में डालना और थल सेनाध्यक्ष के साथ किया गया गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार। 
सरकार ने गुपचुप तरीके से चार जाने-माने अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को काली सूची में डाल दिया। इससे भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर सहित पूर्व वैज्ञानिक सचिव ए. भास्करनारायण, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के उपग्रह केन्द्र के पूर्व निदेशक केएन शंकरा और एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के कार्यकारी निदेशक केआर श्रीधरमूर्ति भविष्य में किसी संवैधानिक पद पर नियुक्ति नहीं हो सकेंगे। सरकारी की इस कार्रवाई के खिलाफ देश के तमाम वैज्ञानिकों ने नाराजगी जाहिर की। जी. माधवन नायर कहते हैं कि प्रधानमंत्री इस आदेश की जांच कराएं और पता लगाएं कि मुझे मेरा अपराध बताए बिना कार्रवाई क्यों की गई। ए. भास्करनारायण ने भी कहा कि - हमने 37 साल से ज्यादा काम किया। रविवार सहित प्रति औसतन नौ से दस घंटे काम किया है। सारा जीवन देश की तरक्की के लिए न्योछावर कर दिया। लेकिन, एक दिन हमारे खिलाफ इस तरह की कार्रवाई की जा रही है।  
वहीं इसरो के पूर्व प्रमुख प्रोफेसर यूआर राव ने एंट्रिक्स-देवास मामले में बचाव का मौका दिए बिना चार वैज्ञानिकों के खिलाफ की गई कार्रवाई को बेतुका बताया। देश के दिग्गज वैज्ञानिक के. कस्तूरीरंगन ने भी मामले पर खेद जताते हुए कहा कि प्रकरण जल्द खत्म होना चाहिए। इससे देश के वैज्ञानिकों के मन पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। प्रधानमंत्री सलाहकार परिषद के प्रमुख प्रो. सीएनआर राव ने देश के शीर्ष वैज्ञानिकों पर अलोकतांत्रिक ढंग से की गई कार्रवाई को गलत बताया। उन्होंने बेहद तल्ख टिप्पणी में कहा कि नायर और उनके तीन सहयोगी अंतरिक्ष वैज्ञानिकों को कचरे की तरह उठाकर फेंक दिया गया है। उन्होंने एक बड़ा सवाल देश के सामने उठाया कि ऐसी कार्रवाई सरकार भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ क्यों नहीं कर रही? 
काली सूची में वैज्ञानिकों को डालने से पहले एंट्रिक्स-देवास सौदे में हुए घपले की जांच कर रही समितियों की रिपोर्ट के कुछ हिस्से जारी किए गए। कहा जा रहा है कि सरकार ने जानबूझकर रिपोर्ट के उन हिस्सों को जारी किया, जो उसके लिए सुविधाजनक हैं। सवाल तो यह भी उठ रहा है कि दो जांच समितियां क्यों? दो रिपोर्ट क्यों? पांच सदस्यीय दल में सिर्फ प्रत्यूष सिन्हा और राधाकृष्णन के नाम ही सार्वजनिक क्यों हुए बाकि के तीन सदस्य कौन? बहरहाल, रिपोर्ट के जारी हिस्सों से भी यह पता नहीं चलता है कि एंट्रिक्स-देवास सौदे में घपला हुआ था या यह सिर्फ नियमों के उल्लंघन का मामला है। दोनों समितियां इस नतीजे पर पहुंची हैं कि 2005 में इसरो की मार्केटिंग शाखा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन और बेंगलूरु की प्राइवेट कंपनी देवास मल्टीमीडिया के बीच अंतरिक्ष स्पेक्ट्रम के उपयोग के हुए करार में प्रक्रियाओं का उल्लंघन हुआ और सरकार को उस बारे में पूरी सूचना देने जैसी प्रशासनिक जिम्मेदारी का सही ढंग से पालन नहीं किया गया, लेकिन देवास कंपनी से संबंधित वैज्ञानिकों कोई लाभ मिला इसके सबूत नहीं आए हैं। केन्द्र सरकार ने इन्हीं रिपोर्ट को आधार बनाकर वैज्ञानिकों के खिलाफ कार्रवाई की है जबकि उसमें वैज्ञानिकों की मिलीभगत उजागर नहीं हो रही। इससे कार्रवाई के पीछे सरकार की मंशा पर सवाल खड़े होते हैं। 
निराधार आरोप : वर्ष २००५ में इसरो की मार्केटिंग शाखा एंट्रिक्स कॉरपोरेशन और बेंगलूरु की प्राइवेट कंपनी देवास मल्टीमीडिया के बीच हुए करार के तहत मल्टीमीडिया ब्रॉडबैंड सेवाओं के लिए १००० करोड़ रुपए में देवास को दो खासतौर पर तैयार उपग्रह और ७० मेगा हटर््ज का एक बैंड स्पेक्ट्रम देना तय हुआ था। बाद में मीडिया में खबरें आई थी कि यह सौदा बहुत कम कीमत पर किया गया है, यह देवास को सीधे-सीधे लाभ पहुंचाने की कोशिश है। एंट्रिक्स-देवास सौदे में कैग ने देश का दो लाख करोड़ रुपए के आर्थिक नुकसान की बात कही थी। इससे सरकार के कान खड़े हो गए क्योंकि इसरो प्रधानमंत्री कार्यालय से सीधे जुड़ा है और सीधे तौर पर उसे ही रपट करता है। आरोपों की जांच के लिए पूर्व कैबिनेट सचिव बीके चतुर्वेदी और अंतरिक्ष आयोग के सदस्य रोड्डम नरसिम्हा की जांच समिति ने संधि को खंगालना शुरू किया। अनेक वैज्ञानिकों और अधिकारियों से पूछताछ के बाद निष्कर्ष आया कि सौदे की शर्तों में कहीं कुछ आपत्तिजनक नहीं था। समिति के अनुसार देवास को कम कीमत पर स्पेक्ट्रम बेचने की बात निराधार है। अंतरिक्ष के स्पेक्ट्रम के लिए देवास को दूरसंचार विभाग, सूचना प्रसारण विभाग से लाइसेंस लेने जरूरी थे और ट्रांस्पोंडर ली और ट्राई द्वारा निर्धारित की जाने वाली अन्य राशि भी देनी थी। प्रत्युष सिन्हा की रिपोर्ट भी घोटाले की बात को तो खारिज करती है लेकिन प्रक्रिया में अनियमितता की बात कहती है। प्रक्रिया में अनियमितता के लिए चारों वैज्ञानिक कहां दोषी है यह बताने में रिपोर्ट असमर्थ है। एंट्रिक्स की ओर से करार पर हस्ताक्षर करने वाले श्रीधर मूर्ति कहते हैं कि प्रक्रिया में कोई अनियमितता नहीं बरती गई। सब कुछ पांच मंत्रालयों की रजामंदी और उनकी देखरेख में किया गया है तो फिर हम कहां दोषी हैं? 3 नवंबर को 2004 को इंसेट कॉर्डीनेशन कमेटी (आईसीसी) की शाखा टैग के पास प्रपोजल गया। टैग में वित्त, संचार, सूचना, प्रसारण, पर्यटन और उड्डयन मंत्रालय के सचिव सदस्य हैं। किसी ने आपत्ति नहीं ली। इधर, अब प्रत्युष सिन्हा कमेटी कह रही है कि आईसीसी के पास प्रपोजल भेजा ही नहीं। इसी तरह 26 मई 2005 को सैटेलाइट बनाने का प्रपोजल कैबिनेट भेजा गया। दिसंबर 2005 में इसके लिए राशि स्वीकृत हो गई। फाइल पर वित्त मंत्रालय की ओर से मेंबर फाइनेंस के हस्ताक्षर हैं। लेकिन, अब सरकार कह रही है कि कैबिनेट को इस बारे में कोई जानकारी नहीं। 29 अक्टूबर 2009 को कैबिनेट में संधि के तहत बनने वाली दूसरी सैटेलाइट के लिए भेजे गए प्रस्ताव को भी मंजूरी दे दी। लेकिन, अब प्रत्युष सिन्हा कमेटी दावा कर रही है कि देवास कंपनी और एंट्रिक्स के बीच सौदा गुपचुप तरीके से हुआ। इससे सरकार को पूरी तरह अलग रखा गया। जाहिर है वैज्ञानिकों को जानबूझ कर फंसाया जा रहा है। जबकि सौदे के लिए साफ तौर पर यूपीए सरकार जिम्मेदार है। 
सेना प्रमुख की उम्र विवाद के मामले में भी सरकार के ढुलमुल रवैए की खासी आलोचना हो रही है। सरकार चाहती तो उम्र के मामूली विवाद को आपसी सहमति से निपटा सकती थी। लेकिन, उसकी नीयत साफ नहीं थी, इसलिए यह नहीं हो सका। थक-हारकर सेना अध्यक्ष वीके सिंह को सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा। हालांकि बाद में उन्होंने वहां से अपनी याचिका वापस ले ली है। इस मामले में जनरल वीके सिंह का कहना है कि यह कार्यकाल बढ़ाने का मुद्दा नहीं है। बल्कि बात व्यक्तिगत और प्रोफेशनल सम्मान की है, जो एक सैनिक के रूप में उन्हें बहुत अजीज है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिका में कहा था कि उनकी जन्मतिथि 10 मई 1951 है। वे जन्मतिथि में सुधार की स्वीकृति का लाभ नहीं उठाएंगे और अवकाश ग्रहण की निर्धारित तिथि यानी 31 मई 2012 को ही रिटायर हो जाएंगे। इधर, उनकी इस भावनात्मक अपील के बाद भी रक्षा मंत्रालय अपने रुख पर अड़ा रहा। यूपीए सरकार की ओर से थल सेना अध्यक्ष जनरल वीके सिंह के लिए अपनाए गए रवैए पर पूर्व सैन्य अधिकारियों ने नाराजगी जाहिर की। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जीएस नेगी ने कहा कि मामला पहले ही सुुलझा लेना चाहिए था। जिस प्रकार से सरकार कदम उठा रही है उससे लगता है कि सरकार को अपने चीफ पर भरोसा नहीं। यह सेना के लिए ठीक नहीं इससे सेना के मनोबल पर असर पड़ेगा। वहीं, रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल ओपी कौशिक का भी मानना है कि सरकार के इस कदम से सेना और देश के नागरिकों का मनोबल गिरा है। 
यहां एक बार फिर से प्रधानमंत्री वैज्ञानिक सलाहकार परिषद के प्रमुख प्रोफेसर सीएनआर राव के सवाल पर लौटते हैं कि- सरकार ऐसी कार्रवाई भ्रष्ट राजनेताओं के खिलाफ क्यों नहीं कर रही। सवाल मौजूं है। यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में करीब 62 बड़े घोटाले सामने आए हैं। इनमें अनेक नेताओं के संलिप्त होने की बात सामने आई है। एक तरफ तो सरकार बिना दोष सिद्ध हुए वैज्ञानिकों को काली सूची में डाल देती है दूसरी ओर तमाम नेताओं का खुलकर बचाव करती रही है। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में ही शुरुआत में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी ए.राजा का बचाव करते दिखे। कपिल सिब्बल तो टूजी स्पेट्रम में घोटाला हुआ है मानने को ही तैयार नहीं थे। जब भी टूजी घोटाले में पी. चिदंबरम का नाम आता है सरकार तुरंत बचाव में कूद आती है। सरकार ने लंबे समय तक राष्ट्रमंडल खेल घोटाले के प्रमुख आरोपी सुरेश कलमाड़ी का भी बचाव किया। गाए-बगाहे आज भी कांग्रेस के महासचिव कलमाड़ी को पाक साफ साबित बताते हैं। कांग्रेस की दिल्ली की सरकार की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित पर भी राष्ट्रमंडल में खेलों में हुए घोटले में लिप्त होने के आरोप लगे। लेकिन, उनके खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई। इतना ही नहीं सरकार देश के जाने-माने वैज्ञानिकों और सेना के अधिकारी के खिलाफ कड़ी कार्रवाई को जितनी तत्पर दिखती है उतनी तो देश पर आतंकी हमला करने वाले अजमल कसाब और अफजल गुरु को फांसी के फंदे पर लटकाने को भी नहीं दिखती। उलटा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता उनके नाम पर चुनावों में वोट मांगते नजर आते हैं। बाटला हाउस को फर्जी साबित करते नहीं थकते। 
बहरहाल, दोनों मसलों को देखा जाए तो कांग्रेसनीत यूपीए सरकार अपनी कार्यप्रणाली से यही प्रतीत करा रही है कि वह देश के प्रतिष्ठत संस्थानों से खेल रही है। सरकार की नीति-नीयत साफ नहीं। 
मध्यप्रदेश भाजपा की पत्रिका चरैवेति के मार्च के अंक में प्रकाशित आलेख. 

गुरुवार, 8 मार्च 2012

मेरे हिस्से में जूठन ही आया


8 मार्च, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

जब मैं इस दुनिया में आई
तो लोगों के दिल में उदासी
चेहरे पर झूठी खुशी पाई।
थोड़ी बड़ी हुई तो देखा,
भाई के लिए आते नए कपड़े
मुझे मिलते भाई के ओछे कपड़े।

काठी का हाथी, घोड़ा, बंदर आया
भाई थक जाता या
खेलकर उसका मन भर जाता
तब ही हाथी, घोड़ा दौड़ाने का,
मेरा नंबर आता।

मैं हमेशा से ये ही सोचती रही
क्यूं मुझे भाई का पुराना बस्ता मिलता
ना चाहते हुए भी
फटी-पुरानी किताबों से पढऩा पड़ता।
उसे स्कूल जाते रोज रुपया एक मिलता
मुझे आठाने से ही मन रखना पड़ता।

थोड़ी और बड़ी हुई, कॉलेज पहुंचे
भाई का नहीं था मन पढने में फिर भी,
उसका दाखिला बढिय़ा कॉलेज में करवाया
मेरी इच्छा थी बहुत इच्छा थी लेकिन,
मेरे लिए वही सरकारी कन्या महाविद्यालय था।

और बड़ी हुई
तो शादी हो गई, ससुराल गई
वहां भी थोड़े-बहुत अंतर के साथ
वही सबकुछ पाया।
जब भी बीमार होती तो
किसी को मेरे दर्द का अहसास न हो पाता
सब अपनी धुन में मगन -
बहू पानी ला, भाभी खाना ला
मम्मी दूध चाहिए, अरे मैडम चाय बना दे।

और बड़ी हो गई,
उम्र के आखरी पडाव पर आ गई
सोचती थी, काश अब खुशी मिलेगी
लेकिन, हालात और भी बद्तर हो गए
रोज सबेरा और संध्या बहू के नए-नए
ताने-तरानों से होता।

दो वक्त की रोटी में भी अधिकांश
नाती-पोतों का जूठन ही मिलता।
अंतिम यात्रा के लिए,
चिता पर सवार, सोच रही थी-
मेरे हिस्से में हरदम जूठन ही क्यों आया।
- लोकेन्द्र सिंह -
(काव्य संग्रह "मैं भारत हूँ" से)

रविवार, 4 मार्च 2012

हे! उज्ज्वला, क्यों दामन मैला कर रही है?

 हा ल ही में एक समाचार पढ़ा-मध्यप्रदेश के उज्जैन शहर में कुछ महिलाएं जुआ खेलते पकड़ी गईं। उनके पास से लाखों रुपए और प्लास्टिक के ताश बरामद किए गए हैं। मन ने मन में ही उद्घोष किया-हे! उज्ज्वला, पतित पुरुष की होड़ में तू कितना और गर्त में गिरेगी। उसके रचे व्यूह में फंसकर तेरे धवल वस्त्रों पर पहले ही बहुत कीचड़ लग गया है। उसने तुझे बाजारवाद और बुद्धिवाद में ऐसा फंसाया है कि तेरी पवित्रता को वह सरे बाजार बेच रहा है तेरी ही सहमति से। तुझे इसमें भी नारी स्वतंत्रता दिखती है। हां, तथाकथित नारी स्वतंत्रता के नाम पर ही यह सब किया जा रहा है। तुझे बहकाया जा रहा है। दरअसल, कुछ दंभी पुरुष स्त्री की उच्च सत्ता को स्वीकार नहीं करते। उस प्रवृत्ति के पुरुष सदैव से उसको अपने जैसा पतित बनाने के लिए षड्यंत्र करते आ रहे हैं। उनकी संतति आज भी इस कर्म में संलग्न है। दंभी पुरुष ने एक अरसा पहले उज्ज्वल नारी को कीचड़ में धकेलने के लिए स्त्री स्वतंत्रता और सम-अधिकार नाम का अस्त्र विकसित किया। नारी स्वतंत्रता अस्त्र का दुरुपयोग वह जमकर कर रहा है। इसका प्रतिसाद भी मिल रहा है।
    पतित पुरुष (सभी नहीं) और उसके फेर में फंसी दिग्भ्रमित नारी ने स्त्री स्वतंत्रता के नाम पर उज्ज्वला के मन में कचरा भी भर दिया। नारी से कहा गया कि मनुष्य जितना पतित कर्म कर सकता है तुम भी कर सकती हो। पुरुष तौलिया लपेटकर सड़क पर घूम सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? पुरुष शराब पीकर नाली में पड़ा रह सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? पुरुष स्त्रियों को छल सकता है उन्हें क्षणिक दैहिक सुख के लिए इस्तेमाल कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? पुरुष गाली-गलौज कर सकता है तो स्त्री क्यों नहीं? इन सवालों के जवाब कुछ नहीं है। क्योंकि ये स्त्री स्वतंत्रता से जुड़े सवाल नहीं। ये तो उसकी गुलामी के लिए बुने गए जाल के तार हैं। दंभी और कुंठित पुरुष तो चाहता ही था कि वह स्त्री की मांसल देह को देख सके। इधर, कथित स्वतंत्रता के नाम पर स्त्री देह दिखाऊ वस्त्र पहनकर उसकी मंशा पूरी कर रही है। पुरुष तो वर्षों से चाहता था कि स्त्री होश खो दे और उसके बाहुपाश में आ गिरे। ताकि वह उससे जैसे चाहे वैसे खेल सके। स्त्री आज हर तरह का नशा कर रही है। होश गंवाकर उसने पुरुष के धूर्त पुरुष के साथ जो किया, उसके तमाम एमएमएस आज बाजार में हैं। स्त्री जब तक श्रेष्ठ थी या है लंपट पुरुष की पहुंच से बहुत दूर थी या है। हालात बदल गए। पुरुषों का उपभोग करने के नाम पर खुद ही उपभोग हो रही है।
    भारत एक ऐसा देश है जहां नारी को श्रेष्ठ सत्ता माना गया है। वंदनीय, पूजनीय माना गया। स्त्री पर कई तरह की बंदिशें लगाई जाती रही हैं यह एक सफेद झूठ है। जो स्त्री की आबरू लूटने बैठे समाज के द्वारा लगातार बोला गया। इतनी बार बोला गया कि वह सच के जैसा लगने लगा। लेकिन, यह सच नहीं है। सच तो यह है कि श्रेष्ठता के साथ ही उसे सम्मान के साथ जीने के पूरी आजादी थी और है। पाबंदी इतनी-सी थी कि वह कुछ मैले कामों से दूर रहे। इसे पाबंदी कहना ठीक नहीं। इसे तो अपेक्षा कह सकते हैं, भरोसा भी कह सकते हैं। ऐसा भी नहीं है कि यह अपेक्षा और भरोसा सिर्फ स्त्री से ही है, पुरुष को भी बुराइयों से उतना ही दूर रहना चाहिए। चूंकि स्त्री को ईश्वर ने विशिष्ट बनाया है। उसे कुछ विशेष ताकतें दीं। ईश्वर पवित्र लोगों को सृष्टि के संचालन की शक्तियां प्रदान करता है। स्त्री की कोख से जीवन का अंकुर फूटता है। गंदली जमीन पर विषैली पौध ही उगेगी। इससे समाज दूषित होगा। समाज स्वच्छ रहे। अच्छाई बढ़े ताकि बुराई को हराया जा सके। इसके लिए अच्छी पौध की जरूरत है। अच्छी पौध साफ और पवित्र जमीन पर उगेगी। इसलिए स्त्री को अपनी जमीन साफ रखने की जरूरत है। और फिर स्वच्छता में जो आनंद है वह गंदगी में कहां। तो फिर क्यों वह आंख बंद किए अंधेरे में दौड़े जा रही है। क्यों नहीं वह समझती की अच्छे समाज के निर्माण की उसकी भूमिका अहम है, पुरुष से भी अधिक जिम्मेदारी उसके ऊपर है। पुरुष आवारा है। ऐसे में स्त्री भी उच्छृंखल हो जाएगी तो कैसे समाज चलेगा।
    मायावी पुरुष ने तुझे फंसाने के लिए कैसे-कैसे खेल रचे हैं। तू देख क्यों नहीं रही उज्ज्वला। उसने बाजारवाद का ऐसा मोहपाश फेंका है कि तू उसमें उलझ गई है। वह फैशन के नाम पर तुझसे नग्न परेड कराता है। कला के नाम पर तेरा जिस्म दिखाता है। सीमेंट का ही विज्ञापन क्यों न हो तेरा शरीर बेचकर पैसा बनता है। कथित आजादी के नाम पर तुझसे स्लट वॉक कराता है। देवी, मां, बहन, भाभी, पत्नी तेरी ये सारी पहचान छीनकर उसने तुझे सेक्स सिंबल बनाकर रख दिया है। तू पता नहीं किस आजादी और सम-अधिकार के भ्रमजाल में फंसकर यह सब किए जा रही है। खुद को खोए जा रही है। याद रखना पतित के पास समाज ताकत नहीं रहने देता। जब तेरे पास सत्य की ताकत नहीं होगी तो अधम पुरुष तुझसे जो उसका जी चाहेगा कराएगा। तुझे करना होगा तब चाहे तेरी मर्जी हो या न हो। तू अभी जिसे स्वतंत्रता मान रही है वह तब धरी रह जाएगी।
    हे! उज्ज्वला, धवला अब भी समय है, सम्भल जा। रोक ले अपने कदमों को जो पुरुष के इशारे पर दलदल की ओर बढ़ रहे हैं। अब भी तू अपनी देवीमय गरिमा को बनाए रख सकती है। अब भी तू पवित्रता और श्रेष्ठता के मामले में पुरुष को चुनौती दे सकती है। तुम नहीं संभली तो वह दिन दूर नहीं जब तुम कीचड़ में सनी होगी और पुरुष तुम पर हंस रहा होगा।
    आखिर में स्पष्ट कर देता हूं कि मैं इस बात का पक्ष कतई नहीं ले रहा कि पुरुष के लिए कोई मर्यादा नहीं, कोई बंधन नहीं। उच्छृंखल व्यवहार उसका भी बर्दाश्त नहीं। वह भी समाज के संचालन का अभिन्न हिस्सा है। उसे भी उन तमाम बुराइयों से दूर रहना चाहिए जो उसके पतन का कारण बनती हैं। जिस तरह समाज में व्यसन में लिप्त स्त्री का सम्मान नहीं है उसी तरह उदण्ड पुरुष को भी समाज हिकारत की नजरों से देखता है। उसकी आजादी वहीं तक है जहां तक दूसरों को परेशानी न हो। एक चेतावनी उसके लिए भी है। वह भी भौतिक चकाचौंध में अपनी जिम्मेदारी भूल रहा है।
    अपनी बात : एक व्यवहारिक कहावत है कि :-
     यदि एक लड़का शिक्षित होता है तो एक व्यक्ति शिक्षित होता है।
    जबकि एक लड़की शिक्षित होती है तो एक पीढ़ी शिक्षित होती है।
यह भी व्यवहारिक सत्य है :-
यदि एक लड़का आवारा होता है तो एक व्यक्ति आवारा होता है।
जबकि एक लड़की आवारा होती है तो एक पीढ़ी आवारा होती है।
स्मिता सिल्क और विद्या बालन। स्मिता शिल्क के जीवन पर आधारित फिल्म डर्टी फिक्चर भी यही संदेश देती है कि अमर्यादित व्यवहार से तात्कालिक प्रसिद्धी तो पाई जा सकती है लेकिन अनंतसुख नहीं।