बुधवार, 14 दिसंबर 2011

अफजल बनाम कश्मीर की आग

 13  दिसंबर 2001 को देश के सर्वोच्च मानबिन्दु पर हमला हुआ था। दस बरस बीत गए लेकिन इस हमले को नाकाम करने में शहीद हुए वीरों के परिजनों की पीढ़ा कम नहीं हुई। उन्हें मलाल है कि संसद पर हमले और कई जवानों की हत्या का दोषी अफजल अब तक जिन्दा है। जेल में बिरयानी और सींक कबाब उड़ा रहा है। मलाई चाट रहा है। उसके ऐशो-ओ-आराम में पैसा देश की जेब से जा रहा है। इधर, कुछ सिरफिरे लोग उसको फांसी देने का जमकर विरोध कर रहे हैं। खुद कांग्रेसनीत यूपीए सरकार सालों से फाइल इधर से उधर कर रही है। पिछले साल जून में जम्मू-कश्मीर के लाटसाहब उमर अब्दुल्ला ने कहा था कि - अफजल को फांसी न दो वरना कश्मीर सुलग उठेगा और लोग सड़कों पर उतर आएंगे। मकबूल बट्ट की फांसी के बाद जो आग कश्मीर में लगी थी वही आग अफजल को फांसी देने पर लग जाएगी.... (पढ़ें - ... तो क्या मुसलमान देशद्रोही है?)  साल भर भी नहीं बीता कि सैयद अब्दुल रहमान गिलानी ने भी यही राग अलापा। गिलानी ने कहा है कि अफजल दोषी नहीं है। उसे फांसी नहीं होनी चाहिए। अगर अफजल को फांसी होती है तो कश्मीर में आग लग जाएगी। कश्मीर में अशांति फैल जाएगी। अफजल की फांसी बड़ी परेशानी का कारण बनेगी।
    ऐसा नहीं है कि राष्ट्रविरोधी बातें करने वालों की यह सिर्फ धमकियां हैं। २००६ में बकायदा अफजल की फांसी के विरोध में श्रीनगर और जम्मू के कई इलाकों में हिंसक प्रदर्शन किए गए। जम्मू कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के वरिष्ठ नेता यासीन मलिक ने इन प्रदर्शनों का नेतृत्व किया।  इसी साल जम्मू-कश्मीर विधानसभा में विधायक शेख अब्दुल रशीद ने अफजल गुरु की फांसी की सजा माफी के लिए एक प्रस्ताव रखा। इस प्रस्ताव का मुख्य विपक्षी पार्टी पीपुल्स डेमोके्रटिक पार्टी (पीडीपी) ने भी अफजल की क्षमादान याचिका का समर्थन किया। मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने ट्विट कर इसे अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ावा दिया।  देश की राष्ट्रीय अस्मिता पर हाथ डालने वाले अफजल गुरु की तरफदारी एक तरह से देशद्रोह है। शर्म की बात तो यह भी है कि देश की कथित १२५ साल पुरानी राजनीतिक पार्टी के कथित वरिष्ठ नेता अफजल को 'जी' लगाकर संबोधित करते हैं।
      मुझे ठीक-ठीक याद है कि हमले के छह-सात महीने बाद मैं संसद गया था। साथ में और भी दोस्त थे। वहां के प्रबंधन ने दो जवानों को हमें संसद घुमाने की जिम्मेदारी सौंपी। सुगठित शरीर के ऊंचे-पूरे जवान हमारे साथ हो लिए। मेरे एक दोस्त ने संसद की बाहरी दीवार में एक गहरा गड्ढा देखते हुए कहा-क्या यह गोली का निशान है। जवान का खून खौल गया। उसने हां में जवाब दिया। साथ ही कहा कि हमलावरों में से एक कुत्ता बच गया है। हमारे देश की राजनीति उसे लम्बे समय तक जिंदा रखेगी। पीढ़ा इसी बात की है। यह पीढ़ा दस बरस बाद १३ दिसंबर २०११ को भी दिखी। उस वक्त आतंकियों से लड़ते-लड़ते खेत रहे वीर जवानों के घरवालों ने दसवीं बरसी पर सरकार की ओर से आयोजित श्रद्धांजलि समारोह का बहिष्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि हमारी एक ही मांग है कि देश के दुश्मन को जल्द ही फांसी पर लटकाया जाए। अब उसका जीवित रहना हमसे सहन नहीं होता। शहीदों के परिजन ही क्या हर देशभक्त उस वक्त ठगा-सा महसूस करता है जब खबरें आती हैं कि अफजल और कसाब की सुरक्षा में करोड़ों रुपए सरकार फूंक चुकी है। जेल में अफजल और कसाब बिरयानी खा रहा हैं। लगता है कि वे बिरयानी नहीं खा रहे हमारी बोटी नोंच-नोंच कर खा रहे हैं और हमारा उपहास उड़ा रहे हैं। जवानों को ऐसी थोती श्रद्धांजलि मत दो मेरे देश के कर्णधारो। उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि देना है तो देश के गद्दारों को फांसी दे दो। राजनीति किसी ओर मुद्दे पर कर लेना। राजनीति के लिए ढेर मुद्दे हैं।

5 टिप्‍पणियां:

  1. अपने स्वार्थ के लिए ऐसे गंदे खेल खेलने वाले नेता भी देश द्रोही की श्रेणी में आते हैं ! इस पोस्ट को पढ़कर हर सच्चे भारतीय का ख़ून अवश्य खौल उठेगा !
    आभार !

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  2. @राजनीति किसी ओर मुद्दे पर कर लेना। राजनीति के लिए ढेर मुद्दे हैं।
    सच है| देशवासियों के "प्रतिनिधियों" को देशवासियों की भावनाओं की कद्र करना तो सीखना ही चाहिए!

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  3. भारतीय नेतृत्व की कमजोरी के कारन भारत को चारो तरफ बजट होना पड़ता है यहाँ तो देश द्रोहियों का स्वागत, सम्मान और देश भक्तो को देश द्रोही साबित करना ही सर्कार का लक्ष्य है.यही सेकुलारिस्तो की नियत है.

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  4. ऐसी घटनाओं के बारे में सुनकर और पढ़कर रूह काप उठता है ! हमारे देश में आतंकवादियों को लम्बे समय तक जेल में रखा जाता है जब की तुरंत फांसी दे देना चाहिए!

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  5. जिस देश में हर चीज राजनीति के नफे नुक्सान को देख के होती है हर नीति भी इसे देख के बनती हो वहाँ पे शहीदों के परिवार वालों को न्याय मिलेगा ... कहना बहुत मुश्किल है ...

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