शनिवार, 1 जनवरी 2011

दिख रहा है बदलाव

- हो रही है बात...
बदलाव दिखता है और आज मुझे यह दिखा। सुबह-सुबह अखबार देखे तो एक सुखद अनुभुति हुई कि हिन्दी के समाचार पत्रों में अंग्रेजी नववर्ष के धूम-धड़ाके के बीच सादगी, लेकिन मजबूति के साथ भारतीय नववर्ष और भारतीय परंपरा की बात की गई। ये आवाज और लेखनी आज से कुछ समय पहले तक कहीं गुम थी। दरअसल इसे पाश्चात्य संस्कृति में डूबे दिमागों ने पीछे धकिया दिया था। 
 क ई दिन से अंग्रेजी कलेण्डर बदलने पर समाचार-पत्रों द्वारा विशेष पाठ्य सामग्री प्रकाशित की जा रही थी। नए-पुराने फोटो। साल की खास घटनाएं तो कहीं दशक की खास उपलब्धियां और भी अन्य। नाना-दादा ने इस दौरान अखबार पर अधिक समय खर्च किया। क्योंकि समाचार पत्रों में खूब पठनीय सामग्री उपलब्ध थी। प्रतिदिन नए ले-आउट और प्रयोगवादी प्रस्तुतीकरण के माध्यम से अखबारों ने २०११ के आगमन से पूर्व एक माहौल बना दिया। ऐसा माहौल जैसे २०११ आते ही सबको कुछ न कुछ दे देगा। जैसे खुशियों का सैलाब-सा कहीं से बहकर आ रहा है। मेरी भी कामना है कि २०११ सबके की उम्मीदें, आशाएं और चाहतें पूरी हों।
    दरअसल मेरी प्रसन्नता का कारण आज के अधिकतर समाचार पत्रों के संपादकीय पृष्ठ (संपादकीय पृष्ठ अखबार की आत्मा है) थे। संपादकीय, मुख्य आलेख, अन्य लेख, व्यंग और पाठकों के पत्रों में भारतीय नववर्ष का जिक्र था। कहीं-कहीं तो विशेष आग्रह था कि हमें इस नववर्ष के धूम-धड़ाके में अपने नववर्ष (अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें) को भूलना नहीं चाहिए। हमें अपनी संस्कृति को भी उतना ही महत्व देना चाहिए, जितना हम अन्य को दे रहे हैं अर्थात् हमें इसी उमंग, उल्लास और जोश के साथ चैत्र प्रतिपदा को पडऩे वाले भारतीय नववर्ष का स्वागत करना चाहिए। आज से कुछ समय पहले इस तरह के आलेख और आग्रह न तो समाचार पत्रों में देखे जाते थे और न ही टीवी चैनल्स पर, लेकिन परिवर्तन आया है। हमारे देश की नई पौध अपने गौरव चिह्नों को शनै: शनै: चिह्नित कर रही है। यह पत्रकारिता और साहित्य जगत का सकारात्मक चेहरा है। जिसकी तस्वीर धीमे-धीमे स्पष्ट हो रही है। 
        मेरी ओर से सभी सज्जन लोगों को २०११ की हार्दिक शुभकामनाएं और आग्रह कि अपने नववर्ष को भी इसी जोश-ओ-खरोश के साथ मनाएं, उसका स्वागत करें और माहौल बनाएं।