मंगलवार, 29 दिसंबर 2009

बस यूं ही बैठे-बैठे...

रविवार की सुबह वही रोज की तरह देरी से उठा करीब 11 बजे। जब से पत्रकारिता के पेशे में कदम रखा है तब से देर तक जागना और देर सबेरे उठने की गंदी आदत विकसित हो गई। आंख मिचते ही कुर्सी की ओर देखा अखबार रखे हैं या नहीं। घर में सबको पता है तो जो भी पढऩे के लिए अखबार उठाता है वापस वहीं मेरे सिरहाने रखी कुर्सियों पर रख देता है। मैंने मिचमिचाते हुर्ईं आखों से देखा रखा है मेरा अपना अखबार दैनिक भास्कर जहां मैं काम करता हूं। साथ में स्वदेश जहां पहली बार मैंने कलम को आड़ा-तिरछा चलाना शुरू किया था। एक और जिसके हम मुरीद हैं उसकी भाषा को लेकर जनसत्ता। आज रविवार था रविवार का जनसत्ता कुछ खास होता है। जैसे ही मैंने जनसत्ता का रविवारीय अंक देखा मन चार माह पीछे चला गया। रविवारीय की कवर स्टोरी पर नर्मदा के सहयात्री और प्रकृति के चितेरे अमृतलाल वेगड़ की इस बार नर्मदा यात्रा वृतांत छपा था। मां चाय लेकर आती उससे पहले तो मैं उसे पढ़कर खत्म कर चुका था और भूतकाल में गोते लगा रहा था। पहली बार मैंने अमृतलाल वेगड़ को जबलपुर के समदडिय़ा होटल में देखा था। वे वहां जबलपुर रत्न नईदुनिया, जबलपुर की निर्णायक मंडल के सदस्य के रूप में उपस्थित थे और मैं उस कार्यक्रम के आयोजन समिति का छोटा सा हिस्सा था। मैं उस समय नईदुनिया, जबलपुर में इंटर्नशिप कर रहा था। वो दिन तो अद्भुत था मेरे लिए। कई दिन तक रोमांचित करता रहा और मैं अपने भाग्य पर इठलाता रहा कि देखो एक ही दिन में जबलपुर के ही नहीं वरन देश के नामी चेहरों से मुलाकात करने का अवसर मिला। छ: नाम तो आज भी याद हैं एक तो अमृतलाल वेगड़, ज्ञान रंजन, चन्द्रमोहन जी जिन्हें सब बाबू के नाम से पहचानते हैं, चित्रकार हरि भटनागर, समाजसेवी चंद्रप्रभा पटेरिया और जस्टिस वीसी वर्मा। सब अपने-अपने क्षेत्र के धुरंधर हैं। उस दिन सबसे अधिक किसी ने प्रभावित किया तो चंद्रप्रभा पटेरिया और अमृतलाल वेगड़ जिनको कभी स्कूली शिक्षा के दौरान किताबों में पढ़ा था।

जहां मैं खड़ा था उसके ठीक सामने वाली कुर्सी पर श्री वेगड़ बैठे थे। बादामी रंग का कुर्ता और झकझकाती धोती पहन रखी थी उन्होंने। शहर के नागरिकों ने जबलपुर रत्न के लिए कुछ चुनिंदा लोगों के नाम भेजे थे। कमाल था की जूरी का प्रत्येक सदस्य रत्न के लिए नामांकित प्रत्येक व्यक्ति के बारे में खूब जानकारी रखते थे।

अमृतलाल जी जितने सहज थे कोई भी उतना सहज नहीं दिख रहा था। उनके बात करने के अंदाज से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। आज उनके यात्रा वृतांत को पढ़कर भी कुछ वैसा ही अनुभूति हुई। वाणी जितनी प्रभावशाली थी शब्द भी कहीं कमतर नहीं दिखे। शुरू से जब पढऩा आरंभ किया तो अंत पर आकर ही रूका। तब भी मैं यही सोच रहा था कि यह खत्म क्यों हो गया और क्यों नहीं लिखा। इस बार उनकी नर्मदा परिक्रमा में कुछ पुराने तो कुछ नए साथी शामिल हुए। अगर मैं जबलपुर होता तो मैं भी जाता नर्मदा परिक्रमा पर। जो नए साथी शामिल हुए उनमें से एक के नाम से में भली भांति परिचित हूं और एक के साथ समय व्यतीत किया और कुछ सीखा भी है। एक हैं राजीव मित्तल जो अभी लखनऊ में हिंदोस्तान के संपादक हैं। श्री राजीव जी का खूब नाम सुना था नईदुनिया के ऑफिस में अपने साथियों से, तो मिलने की भी इच्छा है देखें कब भाग्य उनसे मिलाता है। दूसरा नाम प्रमोद चौबे। ये नईदुनिया जबलपुर में कॉपीएडीटर हैं। कई दफा कॉपी कैसे लिखी जाती है, कैसे एडिट की जाती है इन्होंने ही सिखाया था। हमारी काफी मदद की। इसलिए कभी नहीं भूल सकता।

इतने मैं तो मां चाय लेकर आ गई। कहने लगी तुम बहुत देर से उठते हो, स्वास्थ्य खराब हो जाएगा। पेट निकल आएगा। जल्दी उठा कर जरा घूमने-फिरने जाया कर अच्छा रहता है।

मैंने मां से इशारे से कहा चाय मेज पर रख दो। उन्हें पता था अभी ये देर से उठना बंद नहीं करेगा। ऐसी बात नहीं है कि मैं उठ नहीं सकता। अब पिछले ही महीने रोज सुबह छ: बजे उठता था। बस यूं ही बैठे-बैठे फिर से जबलपुर चला गया.... यादों में। तभी अपनी बहन की एक कविता याद आई......
 मन पंछी है पंछी की तरह नील गगन में उड़ जाऊं मैं,
कोई न रोके कोई न टोके कोई न मुझको कैद करे.

मंगलवार, 22 दिसंबर 2009

ये पाकिस्तान कहाँ से घुस आया

रमैया- ये कक्का एक बात पूछें तुमसे.. चार-छ: दिन से बहुत ही परेशान हैं समझ ही नहीं आ रही।
पंचू- पूछो का बात है जो तिहाए भेजा में ना घुस रही।
रमैया- अरे कछू नाहीं है बात तो एक बिलान भरी है मतलब बहुत ही छोटी है पर तुम तो जानत हो हमाओ दिमाग तो बऊ ते छोटो है। जे बड़े-बड़े बुद्धिजीवियों की भांति नाहीं चलत है।
पंचू- हां बा तो हम सब जानत हैं हम। तुम तो अपनी बात बताओ का दिक्कत आ गई।
रमैया- कछु नाहीं है बा बात ए सोच-सोच के हमारो दिमाग भन्ना गयो मतलब चक्करघिन्नी हो जा रहो है। बात असल में जो है कि जो पार्षदी के चुनाव भए ना अभे। वही में शिवपुरी जिला की एक खबर है जो हमने एक नहीं सगरे अखबारन में पढ़ी और हमाए रिश्तेदार ने भी बताई।
पंचू- का पढ़ लओ तेने जो तेओ दिमाग चकरघिन्नी हो रहो है।
रमैया- का भयो कि शिवपुरी के दो अलग-अलग वार्र्डों से कांग्रेस के टिकट पर इरशाद पठान और आजाद खां अज्जू ठाडे भए हते। तो उनमें से इरशाद तो जीत गए और आजाद खां हार गए। आजाद अपनी हार से भुन-भुनाए बैठे हुए थे। उन्हें हराने वाली भाजपा की मीना बाथम का जुलूस शाम के निकर रहो थो जुलूस तो जुलूस होतो है। बामें तो खूब फटाके फटाते हैं और ढ़ोल-ढमाका भी खूब होता है। अब तो बा और आ गयो है का कहत हैं बासे... हां डीजे। तो मीना बाथम ेके कारकर्ता निकार रहे थे जुलूस धूम-धमाके से तबहीं आजाद खां जो हार से जला-भुना बैठा था निकर आया घर से और बोलन लगो कि जुलूस हमारे घर के आगें से नहीं निकरेगो... विरोधा-विरोधी में बात यहां तक पहुंच गई की नौबत हाथा-पाई तक आ गई।
पंचू- तो फिर का भयो?
रमैया- फिर का होतो उधर तो भीड़-भाड़ थी ही माहौल गरमा गया। दोओ पक्ष के लोग जुर गए। मामले ने सांप्रदायिक रंग लेना शुरू कर दिया। अब है बात परेशान करने वाली एक ओर जहां जय श्री राम और भारत माता की जै के नारे लग रहे थे तो दूसई ओर से पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लग रहे थे।
पंचू- अरे.. राम राम
रमैया- हां कक्का जई तो समझ में नहीं आ रही कि जै पाकिस्तान कहां से गुस आया बीच में? और आजाद के भैय्या ने भी तो रैली निकाली थी तब तो ऐसे कछु भओ नहीं। हां तनिक विरोध तो उधर भी हुआ था पर ज्यादा हो-हल्ला नहीं भयो। न तो मारा-पीटी भई ना गाली-गलांैज भई और ना सांप्रदायिक झगड़े की नौबत आई। फिर इते काए ऐसो भयो? बहुत दिमाग घूम रहो है कछु पल्ले नहीं पड़ रहो।
पंचू- रमैया रे। जै बात तो काफी गहरी लग रही है। भैय्या जां तो म्हारो दिमाग भी भन्ना गयो है, हमऊं जई सोच में पड़ गए की जो पाकिस्तान कहां से घुस? अरे बिन्ने जय श्री राम के नारे लगाए और भारत माता की जै बोली तो जेऊ अल्ला हो अकबर का नारा लगा लेते पर पाकिस्तान की जै काए बोली? हमारे समझ में तो नहीं आ रही। रहने दे रमैया अभी कछु बात नहीं करो जा मामले में अगर कछु कहेंगे तो अपुन भी सांप्रदायिक घोषित हो जाएंगे समझे।
रमैया- सई कह रहे हो पंचू कक्का जो तो सही बात है उनकी हरकतों पर जो तुमने ऊंगली उठाई सोई तुम दीन-हीन, छोटी सोच के लोग हो जाओगे रहन देते हैं दिमाग को का है भन्नात रहेगो। अच्छा एक बात और है?
पंचू- तू ऐसी ही बात लेकें आतो है। अब का है?
रमैया- जे है कि वन्देमातरम कहबे में तो इनको धर्म भ्रष्टï हो जातो है जे काफिर हो जाते हैं धरती की जै बोलवे में फिर पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगावे में जे धर्मच्युत नहीं होत का?
पंचू- हे मौडा रहन दे तू अबाहल कोई बुद्धिजीवी इते आ गयो और बाने जे सब बातें सुन लर्ईं तो तेरो और मेरो भेजो फ्राई कर देगो समझत काए नाने तू। माना मेरे भैय्या मान जा। और कछु हो तो बोल....
रमैया- ला भैय्या एक बीड़ी पिला दे......
पंचू- जै ले दो निकार ले जा बिंडल में थे एक मेरे काए जला दिओ और एक तू ले ले। राहत मिलेगी नहीं तो दिमाग फट जागो जा बात के बारे में सोचत-सोचत के जै पाकिस्तान कहां से घुसो आयो।