मंगलवार, 19 मार्च 2024

राम मंदिर और संघ : समाज के लिए दृष्टिबोध है प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा का प्रस्ताव- ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ 

भगवान श्रीराम की जन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से जब समूचा देश अभिभूत है, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा ने ‘श्रीराममन्दिर से राष्ट्रीय पुनरुत्थान की ओर’ शीर्षक से प्रस्ताव पारित करके समाज के सामने बड़ा लक्ष्य प्रस्तुत किया है। ‘रामराज्य’ की संकल्पना को साकार करने के लिए नागरिकों के जीवन एवं उनके सामाजिक दायित्व में जिस प्रतिबद्धता की आवश्यकता है, उसका आग्रह इस प्रस्ताव में है। श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप समरस, सुगठित राष्ट्रजीवन खड़ा करने का जिस प्रकार का सकारात्मक वातावरण बन गया है, उसको पुष्ट करने की प्रेरणा संघ ने नागरिकों को दी है। संघ का मानना है कि श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा की घटना भारत के पुनरुत्थान के गौरवशाली अध्याय के प्रारंभ होने का संकेत है। नि:संदेह यही सच है। कहना होगा कि भारत की ‘नियति से भेंट’ अब जाकर हुई है। श्रीरामजन्मभूमि पर श्रीरामलला की प्राण प्रतिष्ठा से भारत के स्वदेशी समाज में आत्मगौरव की भावना का संचार हुआ है, वह आत्मविस्मृति की स्थिति से बाहर निकला है। सम्पूर्ण समाज हिंदुत्व के भाव से ओतप्रोत होकर अपने ‘स्व’ को जानने तथा उसके आधार पर जीने के लिए तत्पर हो रहा है। समाज में दिख रहा यह परिवर्तन ‘स्व’ की ओर भारत की यात्रा का द्योतक है। यह यात्रा भगवान श्रीराम के आदर्शों के अनुकूल हो, यह जिम्मेदारी भारतीयों की है। भारतीय समाज मंदिर निर्माण को ही अपने संघर्ष का उद्देश्य मानकर संतोष न कर ले, इसलिए संघ ने स्मरण कराया है कि राम मंदिर के पुनर्निर्माण का उद्देश्य तभी सार्थक होगा, जब सम्पूर्ण समाज अपने जीवन में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के आदर्शों को प्रतिष्ठित करने का संकल्प ले। श्रीराम के जीवन मे परिलक्षित त्याग, प्रेम, न्याय, शौर्य, सद्भाव एवं निष्पक्षता आदि धर्म के शाश्वत मूल्यों को आज समाज में पुनः प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सभी प्रकार के परस्पर वैमनस्य और भेदों को समाप्त कर समरसता से युक्त पुरुषार्थी समाज का निर्माण करना ही श्रीराम की वास्तविक आराधना होगी।

प्रतिनिधि सभा ने वैश्विक परिस्थितियों की ओर भी संकेत किया है। आज विश्व में जिस प्रकार जीवन मूल्यों का क्षरण हुआ है, मानवीय संवेदनाओं में कमी आई है, विस्तारवादी मानसिकता बढ़ी है, राजनीतिक वैमनस्यता एवं स्वार्थों के कारण हिंसा और संघर्ष बढ़े हैं, उनसे समूची मानवता कराह रही है। ‘रामराज्य’ की संकल्पना दुनिया को शांति और समृद्धि की ओर लेकर जा सकती है। भारत इसमें अग्रणी भूमिका निभा सकता है। नि:संदेह, भारत को ही पहले ‘रामराज्य’ के शाश्वत मूल्यों की स्थापना करनी होगी। संघ की ओर से प्रस्ताव के आखिर में समस्त भारतीयों से आह्वान किया गया है कि “बंधुत्वभाव से युक्त, कर्तव्यनिष्ठ, मूल्याधारित और सामाजिक न्याय की सुनिश्चितता करनेवाले समर्थ भारत का निर्माण करें, जिसके आधार पर वह एक सर्वकल्याणकारी वैश्विक व्यवस्था का निर्माण करने में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर सकेगा”। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि भारत रामराज्य के आधार पर विश्व को अनेक प्रकार की चुनौतियों का समाधान दे सकता है। 

इसके साथ ही संघ ने अपने प्रस्ताव में श्री अयोध्या धाम में राम मंदिर के निर्माण के महत्व, उसके साथ जुड़े श्रद्धाभाव, संघर्ष एवं समर्पण का स्मरण भी कराया है। याद रखें कि जिन लोगों ने वर्षों तक राम मंदिर का विरोध किया और वितंडावाद खड़ा किया, उनके द्वारा अब यह नैरेटिव स्थापित किया जा रहा है कि मंदिर का निर्माण तो सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के कारण हुआ है। देशवासियों को इस नैरेटिव में नहीं उलझना चाहिए। हमें भली प्रकार यह स्मरण रखना होगा कि राम मंदिर का निर्माण केवल सर्वोच्च न्यायालय के कारण संभव नहीं हुआ है। न्यायालय ने केवल निर्णय दिया है, लेकिन उसकी पृष्ठभूमि बनाने में कितने ही लोगों का योगदान है, यह भूलना नहीं है। देश की दिशा और दशा को रामराज्य की आकांक्षा के अनुरूप रखने के लिए समस्त भारतीयों को अपने जीवन की दिशा भी राष्ट्र जीवन के अनुरूप रखनी होगी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का यह प्रस्ताव उसके अब तक के प्रस्तावों से थोड़ा भिन्न है। इस प्रस्ताव में समाज का प्रबोधन है और उससे आवश्यक आग्रह है। यदि हम संघ के आग्रह को स्वीकार करके अपने दायित्वों का निर्वहन करते हैं, तो वह दिन दूर नहीं जब विश्व में भारत की विशिष्ट भूमिका एवं स्थान होगा। 


स्वदेश, ग्वालियर समूह के सभी संस्करणों में 19 मार्च, 2024 को प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित



गुरुवार, 14 मार्च 2024

सच का सामना करने की है दम तो देखिए- बस्तर : द नक्सल स्टोरी

कम्युनिस्टों की हिंसक एवं क्रूर विचारधारा एवं भारत विरोधी सोच को उजागर करती है सुदीप्तो सेन की फिल्म 

‘द केरल स्टोरी’ के बाद सुदीप्तो सेन ने फिल्म ‘बस्तर: द नक्सल स्टोरी’ के माध्यम से एक और आतंकवाद को, उसके वास्तविक रूप में, सबके सामने रखने का साहसिक प्रयास किया है। भारत में कम्युनिस्ट, नक्सल और माओवाद (संपूर्ण कम्युनिस्ट परिवार) के खून से सने हाथों एवं चेहरे को छिपाने का प्रयास किया जाता रहा है। लेफ्ट लिबरल का चोला ओढ़कर अकादमिक, साहित्यक, कला-सिनेमा एवं मीडिया क्षेत्र में बैठे अर्बन नक्सलियों ने कहानियां बनाकर हमेशा लाल आतंक का बचाव किया और उसकी क्रांतिकारी छवि प्रस्तुत की। जबकि सच क्या है, यही दिखाने का काम ‘बस्तर : द नक्सल स्टोरी’ ने किया है। फिल्म संवेदनाओं को जगाने के साथ ही आँखों को भिगो देती हैं। फिल्म जिस दृश्य के साथ शुरू होती है, वह दर्शकों को हिला देता है। जब मैं ‘बस्तर’ की विशेष स्क्रीनिंग देख रहा था, तब मैंने देखा कि अनेक महिलाएं एवं युवक भी पहले ही दृश्य को देखकर रोते हुए सिनेमा हॉल से बाहर निकल गए। जरा सोचिए, हम जिस दृश्य को पर्दे पर देख नहीं पा रहे हैं, उसे एक महिला और उसकी बेटी ने भोगा है। फिल्म में कुछ दृश्य विचलित कर सकते हैं। यदि उन दृश्यों को दिखाया नहीं जाता, तो दर्शक कम्युनिस्टों की हिंसक मानसिकता का अंदाजा नहीं लगा सकते थे। 76 जवानों को जलाकर मारने की घटना का चित्रांकन, कुल्हाड़ी से निर्दोष वनवासियों की हत्या करने के दृश्य, मासूम बच्चों को उठाकर आग में फेंक देने की घटना, यह सब देखने के लिए दम चाहिए। यह फिल्म अधिक से अधिक लोगों को देखनी एवं दिखायी जानी चाहिए। सुदीप्तो सेन को सैल्यूट है कि उन्होंने बेबाकी से लाल आतंक के सच को दिखाया है। हालांकि, कम्युनिस्ट हिंसा की और भी क्रूर कहानियां हैं, जिन्हें दिखाया जाना चाहिए था लेकिन फिल्म में समय की एक मर्यादा है। अपेक्षा है कि सुदीप्तो इस पर एक वेबसीरीज लेकर आएं।

सोमवार, 11 मार्च 2024

मूल्यानुगत मीडिया के आग्रही थे प्रो. कमल दीक्षित

प्रो. कमल दीक्षित की पुस्तक- मूल्यानुगत मीडिया : संभावना एवं चुनौतियां


बाल सुलभ मुस्कान उनके चेहरे पर सदैव खेलती रहती थी। मानो उनका ‘कमल मुख’ निश्छल हँसी का स्थायी घर हो। कई दिनों से माथे पर नाचनेवाला तनाव भी उनसे मिलने भर से न जाने कहाँ छिटक जाता था। उनका सान्निध्य जैसे किसी साधु की संगति। उनके लिए कहा जाता है कि वे पत्रकारिता की चलती-फिरती पाठशाला थे। उनकी पाठशाला में व्यावसायिकता से कहीं बढ़कर मूल्यों की पत्रकारिता के पाठ थे। ‘व्यावहारिकता’ के शोर में जब ‘सिद्धांतों’ को अनसुना करने का सहूलियत भरी राह पकड़ी जा रही हो, तब मूल्यों की बात कोई असाधारण व्यक्ति ही कर सकता है। मूल्य, सिद्धांत एवं व्यवहार के ये पाठ प्रो. दीक्षित के लिए केवल सैद्धांतिक नहीं थे अपितु उन्होंने इन पाठों को स्वयं जीकर सिद्ध किया था। इसलिए जब वे मूल्यानुगत मीडिया के लिए आग्रह करते थे, तो उसे अनसुना नहीं किया जाता था। इसलिए जब वे पत्रकारिता में मूल्यों की पुनर्स्थापना के प्रयासों की नींव रखते हैं, तो उस पर अंधकार में राह दिखानेवाले ‘दीप स्तम्भ’ के निर्माण की संभावना स्पष्ट दिखाई देती थी।

शुक्रवार, 8 मार्च 2024

धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित होगा उज्जैन-इंदौर संभाग, मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव का सराहनीय निर्णय

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने उज्जैन-इंदौर संभाग को धार्मिक-आध्यात्मिक सर्किट के रूप में विकसित करने का सराहनीय निर्णय लिया है। यह निर्णय मध्यप्रदेश के विकास को नयी ऊंचाईयों पर ले जाने के साथ ही उसे बड़ी पहचान देगा। यह सर्वविदित है कि उज्जैन-इंदौर संभाग सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक रूप से समृद्ध क्षेत्र है। इस संभाग में दो ज्योतिर्लिंग प्रकाशमान हैं- महाकाल एवं ओंकारेश्वर। जिनके दर्शन के लिए देशभर से श्रद्धालु पहुँचते हैं। महाकाल लोक के निर्माण के बाद से तो उज्जैन आनेवाले श्रद्धालुओं की संख्या में कई गुना बढ़ोतरी हो गई है। इसी संभाग के मंदसौर में पशुपतिनाथ मंदिर, नलखेड़ा में बगुलामुखी माई का मंदिर, खंडवा में दादा धूनीवाले, इंदौर में खजराना गणेश मंदिर सहित अनेक और स्थान ऐसे हैं, जो धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के स्थान है।

बुधवार, 7 फ़रवरी 2024

आत्मविश्वास से भरे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बोले- अबकी बार 400 पार

अपने तीसरे कार्यकाल को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आत्मविश्वास से भरे हुए हैं। प्रधानमंत्री को देश की जनता पर विश्वास है कि इस बार पहले की अपेक्षा जनता की ओर से उन्हें और अधिक बड़ा जनादेश मिलेगा। लोकसभा में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की प्रत्येक पंक्ति इस आत्मविश्वास को व्यक्त करती है। दरअसल, प्रधानमंत्री मोदी के आत्मविश्वास के पीछे वर्तमान समय में बना देश का वातावरण है। अयोध्या में श्रीरामलला का मंदिर निर्माण ने जिस प्रकार की ऊर्जा का संचार समूचे देश में किया है, वह अचंभित करनेवाला है। देश में चल रही रामलहर को देखकर कोई भी बता सकता है कि भारत का समाज प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी की सरकार के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए लोकसभा चुनाव का बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहा है।

गुरुवार, 25 जनवरी 2024

धार्मिक पर्यटन का केंद्र है भारत

अयोध्या धाम में श्रीरामलला के दर्शन

धर्म और अध्यात्म भारत की आत्मा है। यह धर्म ही है, जो भारत को उत्तर से दक्षिण तक और पूरब से पश्चिम तक एकात्मता के सूत्र में बांधता है। भारत की सभ्यता और संस्कृति का अध्ययन करते हैं तो हमें साफ दिखायी देता है कि धार्मिक पर्यटन हमारी परंपरा में रचा-बसा है। तीर्थाटन के लिए हमारे पुरखों ने पैदल-पैदल ही इस देश को नापा है। भारत की सभ्यता एवं संस्कृति विश्व समुदाय को भी आकर्षित करती है। हम अनेक धार्मिक स्थलों पर भारतीयता के रंग में रंगे विदेशी सैलानियों को देखते ही हैं। दरअसल, भारत को दुनिया में सबसे ज्यादा धार्मिक स्थलों का देश कहा जाता है। एक अनुमान के अनुसार, देशभर में पाँच हजार से अधिक सुप्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। हालांकि, हमारे लिए तो प्रत्येक धार्मिक स्थल श्रद्धा का केंद्र है। भारत के शहर-शहर में कई ऐसे स्थान हैं, जहाँ देशभर से लोग पहुँचते हैं। मथुरा, वृंदावन, अयोध्या, काशी, उज्जैन, द्वारिका, त्रिवेंद्रम, कन्याकुमारी, अमृतसर, जम्मू-कश्मीर, पुरी, केदारनाथ, बद्रीनाथ इत्यादि ऐसे स्थान हैं, जहाँ न केवल भारतीय नागरिक बड़ी संख्या में पहुँचते हैं अपितु विदेशी और भारतीय मूल के नागरिक श्रद्धा के साथ आते हैं। पिछले आठ-दस वर्षों में भारत के धार्मिक पर्यटन में उत्साहजनक वृद्धि हुई है। विश्व के सबसे लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल धार्मिक स्थलों को पुनर्विकसित कराया है, अपितु आगे बढ़कर धार्मिक पर्यटन का प्रचार-प्रसार भी किया है। जिसके परिणाम हमें धार्मिक पर्यटन में हो रही वृद्धि के रूप में दिखायी देते हैं। विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जानकारी के अनुसार, देश के कुल पर्यटन में 60 प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी धार्मिक पर्यटन की है। आज देश के पर्यटन उद्योग में 19 प्रतिशत की वृद्धि दर अर्जित की जा रही है जबकि वैश्विक स्तर पर पर्यटन उद्योग केवल 5 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज कर रहा है।

बुधवार, 24 जनवरी 2024

श्रीरामलला का चित्र ही बन गया संपादकीय

 “रघुवर छबि के समान रघुवर छबि बनियां”

22 जनवरी, 2024 को दैनिक समाचारपत्र स्वदेश, भोपाल समूह ने अपने संपादकीय में शब्दों के स्थान श्रीरामलला का चित्र प्रकाशित किया है

‘स्वदेश’ ने श्रीराम मंदिर में रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा के प्रसंग पर अपनी संपादकीय में प्रयोग करके इतिहास रच दिया। ‘स्वदेश’ ने 23 जनवरी, 2024 के संस्करण में संपादकीय के स्थान पर ‘रामलला’ का चित्र प्रकाशित किया है। यह अनूठा प्रयोग है। भारतीय पत्रकारिता में इससे पहले ऐसा प्रयोग कभी नहीं हुआ। यह पहली बार है, जब संपादकीय में शब्दों का स्थान एक चित्र ने ले लिया। वैसे भी कहा जाता है कि एक चित्र हजार शब्दों के बराबर होता है। परंतु, स्वदेश ने संपादकीय पर जो चित्र प्रकाशित किया, उसकी महिमा हजार शब्दों से कहीं अधिक है। यह कोई साधारण चित्र नहीं है। इस चित्र में तो समूची सृष्टि समाई हुई है। यह तो संसार का सार है।